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रायबरेली के रेल पहिया कारखाने पर लगा कोरोना का ग्रहण, मार्च से शुरू होना था उत्पादन

पहले लॉकडाउन के चलते मशीनों के ट्रॉयल का काम प्रभावित रहा। लंबे इंतजार के बाद उत्पादन की बारी आई थी। रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) को दिखाने के लिए सैंपल तैयार किए गए थे। इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर आ गई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

By Rafiya NazEdited By: Published: Tue, 27 Apr 2021 05:00 PM (IST)Updated: Tue, 27 Apr 2021 05:00 PM (IST)
रायबरेली के रेल पहिया कारखाने पर लगा कोरोना का ग्रहण, मार्च से  शुरू होना था उत्पादन
1683 करोड़ की लागत से लगी रायबरेली के रेल पहिया कारखाने में फैक्ट्री में मार्च से शुरू होना था उत्पादन।

रायबरेली, जेएनएन। कोरोना महामारी यहां खुले रेल पहिया कारखाने के लिए ग्रहण बन गई है। पहले लॉकडाउन के चलते मशीनों के ट्रॉयल का काम प्रभावित रहा। लंबे इंतजार के बाद उत्पादन की बारी आई थी। रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन (आरडीएसओ) को दिखाने के लिए सैंपल तैयार किए गए थे। इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर आ गई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

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आधुनिक रेल डिब्बा कारखाना के बगल में ही 1683 करोड़ की लागत से रेल पहिया कारखाने की स्थापना हुई है। हालांकि, अभी सिर्फ कारखाने का ही निर्माण हो पाया है। प्रशासनिक भवन का काम चल ही रहा है। इस फैक्ट्री में जर्मनी से मंगाई गई अत्याधुनिक मशीनें लगवाई गई हैं, ताकि उत्पादन न सिर्फ गुणवत्तापरक रहे, बल्कि रफ्तार भी तेज हो। जर्मन इंजीनियरों को ही इन्हें इंस्टाल करने और परीक्षण करने की जिम्मेदारी दी गई थी। यह काम चल ही रहा था, तभी पिछले साल कोरोना ने अपने पैर जमा लिए। इसके कारण लॉकडाउन लगा और यहां काम देख रहे करीब 30 विदेशी इंजीनियरों को वापस जाना पड़ा। नवंबर से शुरू हुई इनकी वापसी मार्च 2021 तक चलती रही। लौटने के बाद इन्होंने करीब 60 से 70 रेल पहिए बनाए। अप्रैल में लखनऊ से आरडीएसओ की टीम को आकर इनकी जांच करनी थी। इससे पहले ही महामारी ने दोबारा अपना कहर बरपाना शुरू कर दिया। नतीजा, टीम जांच को नहीं आ सकी।

पूर्व में हुई जांच के दौरान दिए थे कुछ सुझाव: कारखाना के महाप्रबंधक एके झा का कहना है कि 31 मार्च को एक बार आरडीएसओ की टीम आई थी। टीम ने कारखाने में बने 15 पहियों के सैंपल देखे थे। इन्हें सराहा भी था। इसी के साथ बेहतरी के लिए और कुछ सुझाव टीम ने दिए थे। इन्हीं पर अमल करते हुए दाेबारा सैंपल तैयार किया गया है। अप्रैल में टीम को फिर से आना था, लेकिन कोरोना संकट के चलते वह नहीं आ सकी।

फिर लौट गए परदेसी इंजीनियर

इस समय महामारी ने और भी विकराल रूप ले लिया है। इसका असर कारखाने पर साफ दिख रहा है। कोरोना के कहर के चलते ही नवंबर से मार्च के बीच वापस आए जर्मनी के 30 इंजीनियर फिर अपने देश वापस चले गए। इसके पीछे बीमारी का डर था या लॉकडाउन की चिंता, यह तो अफसर ही जाने। हालांकि इसकी वजह से काम प्रभावित होगा। 


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