कोरोना काल में बढ़ रहा बच्चों में अवसाद, हो रहे चिड़चिड़े, मानसिक व शारीरिक दिक्कतों में भी इजाफा
लखनऊ में डिजिटल ओपीडी में पहले की अपेक्षा बढ़ गए केस बच्चों में हो रही है अवसाद की दिक्कतें।
लखनऊ, [कुसुम भारती]। कोरोना काल में बच्चों की मासूम दुनिया बिल्कुल बदल चुकी है। अब शाम को पार्कों में खेलते-कूदते बच्चों की जगह सन्नाटा दिखाई देता है। शॉपिंग मॉल्स में बंजी जंपिंग करते बच्चों का शोर अब सुनाई नहीं देता। उनकी वो मस्ती, वो शैतानियां कहीं खो सी गईं हैं। बच्चे, पार्क, मॉल्स सब अपनी जगह है, बस जिंदगी कुछ बदल सी गई है। लगभग तीन महीने पहले तक किसी बच्चे ने सोचा भी नहीं होगा कि आने वाला समय उनके लिए कुछ दुश्वारियां लेकर आएगा। जो न केवल उनकी आजादी, बल्कि उनका बचपन भी छीनने वाला होगा। दरअसल, कोरोना वायरस के डर से पिछले तीन महीनों से बच्चे घरों में कैद हैं। जिसके चलते वे अवसाद का शिकार हो रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर ऑनलाइन पढ़ाई का बोझ भी उनके मासूम मन पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि घूमने-फिरने सहित बच्चों की आउटडोर एक्टिविटी बंद होने और स्कूल लाइफ पर ब्रेक लगने का सीधा असर उनके मन-मस्तिष्क पर पड़ रहा। ऐसे में, बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं। विशेषज्ञों, बच्चों और कुछ अभिभावकों ने साझा किए अनुभव।
स्क्रीन एडिक्शन के बढ़ गए मामले :
केजीएमयू में चाइल्ड साइकियाट्रिक डिपार्टमेंट में एडिशनल प्रोफेसर व मनोचिकित्सक डॉ. अमित आर्या कहते हैं, बच्चों का रूटीन बदल गया है। उनकी आउटडोर एक्टिविटी बंद हो गई है। जिसके चलते बच्चों में इमोशनल और बिहैवियर बदलाव आ रहा है। दूसरी ओर डिजिटल क्लास के चलते बच्चों का समय मोबाइल और कंप्यूटर पर बढ़ रहा है। जिसके चलते उनमें स्क्रीन एडिक्शन बढ़ रहा है। वहीं, स्क्रीन टाइम बढ़ने से छोटे बच्चे जहां मोबाइल एडिक्शन का शिकार हो रहे हैं, वहीं, किशोरों को पोर्नोग्राफी की लत लग रही है।
एग्रेसिव हो रहे बच्चे :
कई-कई घंटे तक जब बच्चे ऑनलाइन क्लास में पढ़ाई करते हैं, तो क्लास के बाद कुछ देर वे अपने मनोरंजन के लिए मोबाइल और लैपटॉप पर समय बिताना चाहते हैं। ऐसे में, जब माता-पिता मना करते हैं तो बच्चे एग्रेसिव हो जाते हैं और बहस करते हैं। जब उनकी बात नहीं मानी जाती तो उनमें गुस्सा व एग्रेशन पैदा होता है।
एडीएचएडी का हो रहे शिकार :
एक्टिव व चंचल किस्म के बच्चे अटेंशन डिफेक्ट हाइपर एक्टिविटी डिसॉर्डर (एडीएचडी) का शिकार हो रहे हैं। ऐसे बच्चों में हिंसक प्रवृति भी पनप रही है।
कोरोना का डर बढ़ा रहा डिप्रेशन:
कोरोना काल में बच्चों का घर से बाहर निकलना बंद हो गया है। सोशल गैदरिंग कम हो गई है। वहीं, कुछ माता-पिता अपने बच्चों को कोरोना और पुलिस का डर दिखाते हैं, तो कुछ बच्चे कोरोना के बारे में घर के बड़ों से सुन-सुनकर परेशान रहते हैं। ऐसे में, किशोरों में एंजायटी, डिप्रेशन, सेल्फ हार्म (खुद को नुकसान पहुंचाना) जैसी प्रवृति भी बढ़ रही है। अनिश्चत्ता का माहौल बना हुआ है।
ऑनलाइन बुलिंग को लेकर सीडब्लूसी ने बनाई गाइडलाइन :
कोरोना काल में ऑनलाइन क्लास के दौरान बच्चों में ऑनलाइन बुलिंग जैसे कि अभद्र व्यवहार, अपशब्द बोलना जैसी प्रवृति भी पनप रही है। जिसके लिए चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्लूसी) ने अपनी गाइडलाइन भी बनाई है।
डिजिटल ओपीडी में आ रहे हफ्ते में 20 मामले :
केजीएमयू में मनोचिकित्सक विभाग में चल रही डिजिटल ओपीडी में हफ्ते में ऐसे 10 से 20 मामले सामने आ रहे हैं। जो पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गए हैं। वहीं, पहले हफ्ते में करीब पांच से दस मरीज हाइपर एक्टिविटी और बिहैवियर समस्याओं के आते थे।
20 प्रतिशत बच्चों में आ रहीं दिक्कतें:
केजीएमयू में प्रॉब्लोमेटिक यूज्ड ऑफ टेक्नोलॉजी क्लिनिक में कंसल्टेंट व मनोचिकित्सक डॉ. आदर्श त्रिपाठी कहते हैं, बच्चों की लाइफ स्टाइल में अचानक बदलाव आया है। वे स्कूल, पार्क, घूमने-फिरने जाते थे, जिस पर पूरी तरह से रोक लग गई है। बड़े तो फिर भी ऑफिस और दूसरे कामों के लिए निकल रहे हैं। वहीं, बच्चे घरों में रहकर टीवी, मोबाइल और ऑनलाइन क्लास करते हुए बोर हो रहे हैं। कुछ समय पहले तक डॉक्टर ही बच्चों को मोबाइल से दूर रहने की सलाह देते थे। आज बच्चे कई-कई घंटे ऑनलाइन क्लास कर रहे हैं। ऐसे में, बहुत देर तक स्क्रीन इस्तेमाल करने और एक ही जगह पर घंटों बैठने से उनमें सिरदर्द, आंखों में दर्द, जलन, थकान, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, अवसाद जैसे लक्षण पैदा हो रहे हैं। लगभग 50 में से 20 प्रतिशत बच्चों में ऐसी दिक्कतें जन्म ले रही हैं।
अभिभावक-टीचर करें सहयोग:
- बच्चों की पढ़ाई को लेकर अभिभावकों और टीचरों को आपस में सामंजस्य स्थापित कर उनका सहयोग करना चाहिए।
- मां-बाप अपने व्यस्त शेड्यूल से थोड़ा समय निकालकर बच्चों पर ध्यान दें। उनके साथ समय बिताएं।
- बच्चों के लिए रूटीन बना लें और उसके अनुसार काम करें।
- बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार काम बांट दें। घर के छोटे-छोटे काम कराएं ताकि उनका आत्मविश्वास बढ़े।
- कुछ रुचिकर व क्रियात्मक काम कराएं, बुक पढ़ने को दें, ताकि बेवजह मोबाइल की लत से छुटकारा मिले।
- डिप्रेस्ड, परेशान बच्चों पर ज्यादा ध्यान दें। भावनाओं के बारे में बातें करें।
- कोरोना को लेकर उनको बिल्कुल न डराएं, नहीं तो इसके दूरगामी परिणाम खराब हो सकते हैं।
- उनको सोशल डिस्टेंस, मास्क, हैंड सैनिटाइजर, हैंडवॉश आदि का महत्व समझाएं।
- बच्चों की ऑनलाइन क्लास का समय दो से तीन घंटे तक होना चाहिए।
- ऑनलाइन लेक्चर का टाईम कम करें।
- पढ़ाई के बीच में गैप व ब्रेक देना चाहिए।
थेरेपी के जरिए इलाज :
डॉ. अमित आर्या कहते हैं, अवसादग्रस्त बच्चों का इलाज करने के लिए थेरेपी, काउंसिलिंग और दवाएं चलाते हैं। बिहैवियर थेरेपी, एंगर मैनेजमेंट टेक्नीक, सोशल स्किल ट्रेनिंग, पेरेंटस बिहैवियर ट्रेनिंग के जरिए अलग-अलग समस्याओं का इलाज किया जाता है।
डिजिटल ओपीडी में की जा रही ऑनलाइन काउंसिलिंग:
कोरोना काल में बच्चों में किसी भी तरह की मानसिक समस्याओं से जुड़े परामर्श के लिए केजीएमयू में चल रही डिजिटल ओपीडी में फोन पर ऑनलाइन काउंसिलिंग के लिए संपर्क किया जा सकता है। टेली कंसल्टेंशन की सुविधा के जरिए दवाएं व परामर्श दिया जा रहा है।