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प्रधानमंत्री सिंचाई योजनाः कम पानी में अधिक उपज का हुनर सीखेंगे किसान

महत्वाकांक्षी जिलों के किसान कम पानी में अधिक उपज का हुनर सीखेंगे। कृषि विज्ञान केंद्रों पर प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत विविध उपकरणों का प्रदर्शन किए जाएंगे।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 29 Dec 2018 06:55 PM (IST)Updated: Sat, 29 Dec 2018 06:55 PM (IST)
प्रधानमंत्री सिंचाई योजनाः कम पानी में अधिक उपज का हुनर सीखेंगे किसान

लखनऊ, जेएनएन। महत्वाकांक्षी जिलों के किसान कम पानी में अधिक उपज का हुनर सीखेंगे। इसके लिए इन जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) पर प्रधानमंत्री सिंचाई योजना के तहत स्प्रिंकलर और ड्रिप इरीगेशन के प्रदर्शन किए जाएंगे। हर जिले के 25-25 गांव भी जरूरत के अनुसार इनसे संतृप्त होंगे। इस वित्तीय वर्ष में इन जिलों में 7090 हेक्टेयर रकबा को सिंचाई की इन दक्ष विधाओं से आच्छादित किया जाएगा।

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पर ड्राप मोर क्राप योजना 

नीति आयोग ने चिकित्सा, पोषण, शिक्षा, कृषि, जलसंसाधन, वित्तीय समावेशन, कौशल विकास और आधारभूत संरचना सहित 49 संकेतकों के जरिये प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े आठ जिलों फतेहपुर, चंदौली, सोनभद्र, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच और चित्रकृट को महत्वाकांक्षी जिलों के रूप में चुना है। इनमें ही पर ड्राप मोर क्राप योजना के तहत लघु सिंचाई विभाग यह कार्यक्रम चला रहा है। इसके तहत सात जिलों के केवीके पर स्प्रिंकलर और ड्रिप के डिमांस्ट्रेशन लगेंगे। मकसद यह है कि किसान आकर इसे देखें। वहां के वैज्ञानिकों से इसके लाभ के बारे में जानें और अपनाएं।

7090 हेक्टेयर रकबा सिंचिंत करने का लक्ष्य

मौजूदा वित्तीय वर्ष में संबंधित जिलों में ड्रिप एवं स्प्रिंकलर से 7090 हेक्टेयर रकबे को संतृप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। कम बारिश के कारण जिन जिलों में अक्सर सूखा पड़ता है, वहां अधिक रकबे का लक्ष्य रखा गया है। मसलन सर्वाधिक लक्ष्य सोनभद्र और चित्रकूट का क्रमश: 1967 और 1693 हेक्टेयर है। किसानों को इस विधा के प्रति जागरूक करने के लिए हर जिले में प्रशिक्षण के 50-50 कार्यक्रम होंगे। निदेशक उद्यान डॉ.आरपी सिंह के अनुसार प्रशिक्षण के साथ ड्रिप और स्प्रिंकलर लगाने का काम शुरू हो गया है। 

पानी बचत के साथ पर्यावरण संरक्षण

निदेशक उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण डॉ.आरपी सिंह ने बताया कि सिंचाई के दक्ष तरीकों में 75 फीसद या इससे अधिक पानी का प्रयोग होने से कम पानी में अधिक रकबे की सिंचाई होती है। प्रदेश में अधिकांश सिंचाई बोरवेल और पंपिंगसेट से होती है। अधिक पानी लगने से डीजल के साथ कृषि की भी लागत भी बढ़ती है। साथ में प्रदूषण भी। दक्ष विधाओं के प्रयोग से इन सबकी बचत होती है। 


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