दल में नहीं हर दिल में बसे डा.भीमराव आंबेडकर, सवर्णों की राजनीतिक चेतना में भी शामिल हुए बाबा साहेब
बीबीएयू के सहायक प्रोफेसर के शोध के अनुसार भारत के संविधान निर्माण में भूमिका निभाने वाले भारतरत्न डा.भीमराव आंबेडकर किसी एक दल तक सीमित नहीं हैं बल्कि अब वह दलितों के साथ सवर्ण लोगों की राजनीतिक चेतना में धीरे-धीरे शामिल हो रहे हैं।
लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय की ओर से लगातार नए शोध किए जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण को लेकर हाल में लहसुन पर किए गए शोध को विश्व स्तर पर पहचान मिली तो कुलपति प्रो.संजय सिंह के दिशा निर्देश में योग को अपनाने को लेकर किया गया शोध भी काफी चर्चित रहा। एक बार फिर पंचायत चुनाव में बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के प्रभाव को लेकर शोध किया गया है।
विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डा.अजय कुमार व अन्य संस्थानों के सहयोग से किए गए पायलट सर्वे में लखनऊ, उन्नाव, बाराबंकी, हरदोई व सीतापुर के सीमित क्षेत्र के अंदर किए गए फील्डवर्क में पाया गया कि भारत के संविधान निर्माण में भूमिका निभाने वाले भारतरत्न डा.भीमराव आंबेडकर किसी एक दल तक सीमित नहीं हैं बल्कि अब वह दलितों के साथ सवर्ण लोगों की राजनीतिक चेतना में धीरे-धीरे शामिल हो रहे हैं। शोध के मुताबिक 90 के दशक में डा.आंबेडकर को लेकर एक समुदाय विशेष के दल ने उनकी विचारधारा को जनआंदोलन बनाकर जाति विरोधी नायक के तौर पर पेश किया। इससे सवर्ण समाज उन्हें अपना विरोधी मान बैठा। अब स्थितियां बदली हैं। अब सवर्ण भी डा.आंबेडकर को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते हैं। मदारी पासी-एका शोध संस्थान और लखनऊ इंस्टीट्यूट फॉर दलित एंड सबाल्टर्न स्टडीज के संयुक्त प्रयास और सामाजिक कार्यकर्ता मनोज पासवान के सहयोग से यह शोध किया गया।
शोध के मुख्य बिंदु: चुनावी प्रयोगों में डा.आंबेडकर की विचारधारा से पैदा हुए राजनैतिक प्रभाव और सामाजिक चेतना से हुए बदलाव का नतीजा है कि कोई भी दल व समूह अब डा.आंबेडकर को उपेक्षित नही कर सकता है।
बाराबंकी जिले के एक गांव मे ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ रहे एक सवर्ण जाति के युवक के चुनाव प्रचार के पर्चे में डा.आंबेडकर की भी फोटो लगी थी जबकि 90 के दशक में उनकी मूर्ति को लगाने को लेकर विवाद था।
-लखनऊ जिला पंचायत में 25 सदस्य चुने जाते हैं इस बार के चुनाव में नौ सीटें अनारक्षित वर्ग के लिए थी जिसमे छह सीटों पर अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़े वर्ग के लोग चुनाव जीते हैं जबकि अनारक्षित वर्ग से सिर्फ दो उच्च जाति के और एक मुस्लिम उम्मीदवार की जीत हुई।
आमतौर पर अनारक्षित वर्ग के लिए आरक्षित सीटो पर अनुसूचित जाति समुदाय के लोग चुनाव नही लड़ते है. लेकिन अब स्थितियां बदली हैं।
लखनऊ की अमवा मुर्तजापुर गांव के 30 वर्षीय अनुसूचित जाति के श्रवण कुमार ने अनारक्षित सीट पर ग्राम प्रधान का चुनाव जीता है। आरक्षित वर्गों को दी जाने वाली सरकारी सहूलियतों की वजह से वह प्रधान बने।
पांच जिलों में पंचायत के मतदाताओं की संख्या :
लखनऊ-10.84 लाख
उन्नाव-20.55 लाख
बाराबंकी-23.10 लाख
हरदोई-26. 20 लाख
सीतापुर-30.86 लाख