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केजीएमयू में कोरोना मरीज के लिए हुआ प्लाज्मा डोनेशन, लगा रक्तदान शिविर

केजीएमयू में कोरोना के मरीजों के लिए हुआ प्लाज्मा डोनेशन ठीक हो चुके मरीज ने किया दान।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 15 Jun 2020 11:40 AM (IST)Updated: Mon, 15 Jun 2020 11:40 AM (IST)
केजीएमयू में कोरोना मरीज के लिए हुआ प्लाज्मा डोनेशन, लगा रक्तदान शिविर
केजीएमयू में कोरोना मरीज के लिए हुआ प्लाज्मा डोनेशन, लगा रक्तदान शिविर

लखनऊ, जेएनएन। रक्तदान दिवस पर घर से महादानी निकले। इस दौरान अस्पतालों में पहुंचकर रक्तदान किया। वहीं, कोरोना से ठीक हो चुके मरीज ने प्लाज्मादान किया। यह गंभीर मरीजों की जिंदगी बचाने में काम आएगा।

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केजीएमयू, बलरामपुर अस्पताल, सिविल समेत कई अस्पतालों में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। केजीएमयू की ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्रा के मुताबिक, शिविर में 77 यूनिट रक्त संग्रह किया गया। इस दौरान कोरोना से ठीक हो चुके राजधानी निवासी 29 वर्षीय कपिल ने प्लाज्मा दान किया। 

बलरामपुर अस्पताल के निदेशक डॉ. राजीव लोचन ने कहा कि अस्पताल में 13 लोगों ने रक्तदान किया। वहीं, सिविल अस्पताल के ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ. अजय शंकर ने बताया कि 25 यूनिट रक्त संग्रह किया गया। वहीं, लोहिया संस्थान के ब्लड बैंक इंचार्ज डॉ. वीके शर्मा ने कहा कि रक्तदान दिवस पर 60 यूनिट रक्त संग्रह किया गया।

ब्लड बैंक में स्कैनिंग, शारीरिक दूरी

कोरोना संक्रमण को लेकर ब्लड बैंक में सुरक्षा के पूरे उपाए किए गए। रक्तदान के दौरान सैनिटाइजेशन, शारीरिक दूरी का ध्यान रखा जा रहा है। वहीं, रक्तदाता का पूरा ब्योरा जुटाया जा रहा है। लिहाजा, लोग रक्तदान से घबराए नहीं, मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए आगे आएं।

क्या है प्लाज्मा थेरेपी 

ये थेरेपी गंभीर और खतरनाक स्थिति में पहुंच चुके मामलों में काम करती है। इसमें कोरोना वायरस से उबर चुके मरीज़ से एंटीबॉडीज़ ली जाती हैं और उन्हें बीमारी व्यक्ति के शरीर में डाला जाता है। जिससे शरीर की इम्यूनिटी को नई ताक़त मिलती है और वह इस बीमारी से लड़ पाती है। 

क्या हैं फायदें

एक दिलचस्प बात ये है कि एक स्वस्थ व्यक्ति के दान किए गए प्लाज़्मा सेल्स से दो मरीज़ों का इलाज किया जा सकता है। हमारे शरीर में बह रहे खून का 50 प्रतिशत प्लाज़्मा होता है और इसे कई बार दान भी किया जा सकता है। साल 1918-1920 में स्पैनिश फ्लू महामारी के दौरान भी मरीज़ों के इलाज में प्लाज़्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया गया था। यहां तक कि, इबोला और एच1एन1 यानी स्वाइन फ्लू के प्रकोप के समय भी WHO ने इसी थेरेपी को अपनाने की सलाह दी थी।  

हालांकि, इस थेरेपी को लेकर काफी रिसर्च की जानी है, लेकिन अपनी तक के नतीजे साकारात्मक देखे गए हैं। शोध में पाया गया कि कॉनवेलेसेन्ट प्लाज़्मा थेरेपी कुछ समय के लिए नए कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इम्यूनिटी पैदा करती है।


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