Move to Jagran APP

Pitru Paksha 2020: पितृपक्ष में महालक्ष्मी की कृपा के लिए व्रत रखना श्रेयस्कर, जान‍िए क्‍या है महत्‍व

Pitru Paksha 2020 इस पक्ष में आने वाली अष्टमी को लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। इसे गजलक्ष्‍मी व्रत कहा जाता है।गोमती के घाटों पर द्वितीया श्राद्ध पर किया पिंडदान।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 04 Sep 2020 05:59 PM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 07:16 AM (IST)
Pitru Paksha 2020: पितृपक्ष में महालक्ष्मी की कृपा के लिए व्रत रखना श्रेयस्कर, जान‍िए क्‍या है महत्‍व
Pitru Paksha 2020: पितृपक्ष में महालक्ष्मी की कृपा के लिए व्रत रखना श्रेयस्कर, जान‍िए क्‍या है महत्‍व

लखनऊ, जेएनएन। पितृ पक्ष में तहां पूर्वजों को याद कर उन्हें पिंडदान करने का अवसर मिलता है वहीं इस पक्ष में व्रत रखने से महालक्ष्मी की कृपा भी मिलती है। इस पक्ष में आने वाली अष्टमी को लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। इसे गजलक्ष्‍मी व्रत कहा जाता है। इस दिन सोना खरीदने का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन खरीदा गया सोना आठ गुना बढ़ता है। इस दिन हाथी पर सवार मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है। आचार्य अनुज पांडेय ने बताया कि पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करने से उनकी विशेष कृपा मिलती है। इस पक्ष में समय में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। नई वस्तुएं, नए परिधान नहीं खरीदते और ना ही पहनते हैं। बावजूद इसके इस पक्ष में की अष्‍टमी तिथि को बेहद शुभ माना जाता है। 10 सितंबर को पड़ने वाली अष्टमी पर गजलक्ष्‍मी व्रत, महालक्ष्मी व्रत, हाथी पूजा करके विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

loksabha election banner

वहीं शुक्रवार को पितृ पक्ष के द्वितीया का श्राद्ध आदि गंगा गोमती के घाट पर किया गया। तिलांजलि और पिंडदान के दौरान परिवारीजनों की आंखें नम हो गईं। सुबह पिंडदान व तिलांजलि के बाद दोपहर में उनकी पसंद का भोजन बनाया। पहले पूर्वजों के नाम से निकाला और फिर कौआ, गाय व अन्य बेजुबानाें काे खिलाकर उनकी आत्मा काे तृप्त करने का विधान किया। कुड़िया घाट, लक्ष्मण मेला स्थल के साथ ही झूलेलाल घाट व लल्लू मल घाट पर शारीरिक दूरी के साथ लोगों ने श्राद्ध किया।

आचार्य एसएस नागपाल ने बताया कि बताया कि 17 सितंबर तक हमारे पितृ घर में विराजमान होंगे। मान्यता है कि पूर्वज घर में विराजमान होकर सुख, शांति व समृद्धि प्रदान करते हैं। जिनकी कुंडली में पितृ दोष हो, उनको अवश्य तर्पण करना चाहिए। श्राद्ध करने से हमारे पितृ तृप्त होते हैं। जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा को हुई है, वे पूर्णिमा को सुबह पिंडदान करके दोपहर में पूर्वजों की पसंद का भोजन खिलाते हैं। गायत्री परिवार के उमानंद शर्मा ने बताया कि शारीरिक दूरी के साथ एक साथ 18 लोगों ने पिंडदान कर किया। पूर्वजों को जलदान व पिंडदान के रूप मेें समर्पित किया गया भोजन ही श्राद्ध कहलाता है। देव, ऋषि और पितृ ऋण के निवारण के लिए श्राद्ध कर्म जरूरी माना गया है। अपने पूर्वजों का स्मरण करने और उनके मार्ग पर चलने और सुख-शांति की कामना ही श्राद्ध कर्म है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.