जालसाजों का जालः आयकर अफसरों के पासवर्ड से चपरासियों ने लगाया चूना
आउटसोर्सिंग से आयकर विभाग में साफ-सफाई और चपरासी का काम कराने के लिए लाए गए कर्मचारियों को कंप्यूटर पर बैठा दिया और वह पासवर्ड सौंप दिया गया।
लखनऊ (जेएनएन)। आउटसोर्सिंग के जरिये उन युवाओं को आयकर विभाग में लाया तो इसलिए गया था कि साफ-सफाई और चपरासी का काम कराया जा सके, लेकिन अफसरों ने उन्हें अपने कंप्यूटर पर बैठा दिया और वह पासवर्ड भी सौंप दिया, जो किसी को भी न बताने की हिदायत थी। चपरासी से खुद मुख्तार बन बैठे इन बाहरी लोगों ने जालसाजों के साथ साठगांठ की और करोड़ों रुपये का आयकर रिफंड लूट लिया। दो साल से चल रही चोरी का खेल खुलने के बाद अब आयकर अधिकारियों ने चुप्पी साध ली है। वे इस पर बात भी नहीं करना चाहते कि चपरासियों को कंप्यूटर पर बैठने की अनुमति किसने दी?
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आयकर दाताओं के रिफंड की रकम किसी और के खाते में क्रेडिट कराने का खेल सिर्फ अधिकारियों की लापरवाही और आउटसोर्सिंग से आए शातिर या बेवकूफ चपरासियों तक सीमित नहीं है। खुद आयकर विभाग की अपनी प्रणाली के सुराख भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। चौंकाने वाली बात है कि आयकर विभाग रिफंड क्लेम करने वाले आयकर दाता के हस्ताक्षर का कभी मिलान ही नहीं करता। पैन कार्ड में हस्ताक्षर होते है, लेकिन विभाग के पास सिर्फ पैन नंबर पहुंचता है। यानी किसी आयकर दाता के नाम से फर्जी बैक खाता खोल कर जिन्होंने फर्जी हस्ताक्षर से क्लेम कर दिया, उन्हें आयकर विभाग ने बिना हस्ताक्षर का मिलान किए रिफंड की रकम सौंप दी है।
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राहत की आड़ में खेल
टीडीएस का विवरण वैसे तो फॉर्म 26-एएस पर दिखता है और इसी अनुसार रिफंड की रकम तय होती है, लेकिन वेतन देने वाला (इंप्लायर) या कोई अन्य भुगतान करने वाला (डिडक्टर) जब ठीक से टीडीएस रिटर्न दाखिल नहीं करता या आयकर विभाग के सिस्टम में कोई चूक हो जाती है तो फॉर्म 26-एएस ऑनलाइन नहीं दिखता। ऐसे में मैनुअल टीडीएस फॉर्म-16 के जरिये रिटर्न फाइल कर रिफंड का क्लेम कर दिया जाता है। रिफंड मिलने में देर की शिकायतों पर सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (सीबीडीटी) ने आयकर दाताओं का उत्पीडऩ रोकने के लिए इंडीविजुअल मामलों में रिफंड अदायगी में देर न करने का निर्देश दे रखा है। इसी निर्देश की आड़ लेकर जालसाज विभाग की कमजोरियों का फायदा उठा रहे है।
वैरीफिकेशन भी दरकिनार
आयकर के एसेसमेंट अधिकारियों को यह अधिकार दिया गया है कि फॉर्म 26-एएस जेनरेट न होने पर वे मैनुअल फार्म-16 के जरिए किए गए क्लेम को सत्यापित कर एक लाख रुपये तक का रिफंड क्रेडिट कर सकते है। इसमें भी 25 हजार रुपये तक के रिफंड के लिएए वैरीफिकेशन की जरूरत नहीं होती, जबकि 25 हजार से एक लाख रुपये के बीच के रिफंड के सत्यापन के लिए इंप्लायर या डिडक्टर को नोटिस भेजा जाता है। विभागीय कर्मचारियों की मिलीभगत से जालसाज स्पीड पोस्ट से भेजे जाने वाले नोटिस को बीच रास्ते में हासिल कर फर्जी हस्ताक्षर कर रिपोर्ट दे रहे है। इसी के आधार पर विभाग रिफंड जारी कर दे रहा है।
बैंकों पर सवाल
आयकर दाताओं के नाम से फर्जी बैंक खाते खोलने वालों ने बैंकों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए है। आयकर के एक अधिकारी का कहना है कि नियम के तहत केवाइसी (नो योर कस्टमर) के बिना बैक खाते नहीं खोले जा सकते है। जिन बैंकों में फर्जी खाते खोले गए, वहां यदि केवाइसी हुई तो खाते कैसे खुल गए और यदि केवाइसी नहीं हुई तो बैकों की लापरवाही या मिलीभगत की भी जांच होनी चाहिए। हालांकि आयकर विभाग रिफंड के चेक पर आयकर दाता के बैक खाते का भी नंबर दर्ज कर करता है, लेकिन फर्जी खाता खोलने वाले रिटर्न पर इसी खाते का नंबर दर्ज कर देते है तो आयकर के चेक पर भी इसी फर्जी खाते की संख्या छप कर आ जाती है और इसी खाते में चेक कैश भी हो जाता है।
बचते रहे आयकर अधिकारी
आयकर दाताओं के रिफंड किसी और को दिए जाने का मामला खुलते ही आज ज्वाइंट कमिश्नर एम.अनीथा ने फोन स्विच ऑफ कर लिया, जबकि आयकर आयुक्त द्वितीय आनंद अग्रवाल ने भी इस मामले में कुछ भी कहने से मना कर दिया। हालांकि उनका कहना था कि विभाग ने जरूरी कार्यवाही शुरू कर दी है।
एसोसिएशन ने चेताया था
आयकर कर्मचारी महासंघ के महासचिव जेपी सिंह बताते है कि कुछ समय पहले एसोसिएशन ने बाहरी लोगों से कंप्यूटर पर काम कराए जाने का विरोध किया था। इस पर छह-सात महीने तक तो आउटसोर्सिंग वाले कर्मचारी साफ-सफाई और चपरासी का काम करने लगे, लेकिन फिर धीरे से कंप्यूटर की कुर्सियों पर बैठने लगे। सिंह कहते है कि कर निर्धारण अधिकारी किसी भी बाहरी व्यक्ति से अपने इंट्रानेट पर काम कराते है तो गड़बड़ी के लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगे।