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बाहरी बिगाड़ रहे उत्तर प्रदेश भाजपा का भीतरी गणित

भाजपा उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी महाराजगंज की जिस सीट पर विधानसभा चुनाव लड़े, वहां उन्हें अन्य दलों से आए नेताओं से चुनौती मिलेगी तो कैम्पियरगंज क्षेत्र से तैयारी में जुटे आरएसएस पृष्टभूमि वाले छात्र नेता रहे प्रदेश मंत्री डा. समीर सिंह के समर्थकों में पूर्व मंत्री

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sun, 08 Feb 2015 03:06 PM (IST)Updated: Sun, 08 Feb 2015 03:10 PM (IST)
बाहरी बिगाड़ रहे उत्तर प्रदेश भाजपा का भीतरी गणित

लखनऊ (अवनीश त्यागी)। भाजपा उत्तर प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी महाराजगंज की जिस सीट पर विधानसभा चुनाव लड़े, वहां उन्हें अन्य दलों से आए नेताओं से चुनौती मिलेगी तो कैम्पियरगंज क्षेत्र से तैयारी में जुटे आरएसएस पृष्टभूमि वाले छात्र नेता रहे प्रदेश मंत्री डा. समीर सिंह के समर्थकों में पूर्व मंत्री फतेहबहादुर के परिवार की भाजपा में आमद से बेचैनी है। कई दलों में घूम घर वापसी करने वाले पूर्व सांसद गंगाचरण राजपूत की चाहत अपने पुत्र को चरखारी सीट पर उपचुनाव में उम्मीदवार बनाने की मानी जा रही है।

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प्रदेश संगठन के विरोध के बावजूद पार्टी में शामिल हुई अनुराधा चौधरी से पुराने जाट नेताओं की नींद उड़ी है। परिवारीजन को आगे का भाजपा की सियासत में दखल बढ़ा रहे बसपा के राज्यसभा सदस्य जुगुल किशोर को लेकर लखीमपुर खीरी के पुराने भाजपाई नाखुश हैं, वहीं बुलंदशहर में बहुचर्चित पूर्व विधायक अनिल शर्मा को पार्टी में शामिल करना बड़े खेमे को हजम नहीं हो पा रहा। ऐसे हालात कमोबेश सभी जिलों में बनते जा रहे हैं। अन्य दलों से बड़ी संख्या में भर्ती होने वाले बाहरी नेताओं ने भाजपा के आंतरिक समीकरण गड़बड़ा दिया। चिंता केवल टिकट अथवा चुनाव की सियासत तक सीमित नहीं वरन संगठन को बचाकर रखने का संकट भी बताया जा रहा है।

अच्छे दिनों में बुरे वक्त की आहट

दरअसल अच्छे दिन आते ही भाजपा जिस तरह अन्य दलों के नेताओं की पहली पसंद बन चुकी है, जिससे पुराने कार्यकर्ताओं को पार्टी में वजूद बचा कर रखना मुश्किल दिख रहा है। एक पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष का मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली की स्थिति देख कर भाजपा में पुराना कैडर व मुद्दों को बचाने का संकट है।

पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को ठौर नहीं

पार्टी में हाशिए पर पहुंचने की फिक्र आम कार्यकर्ता को ही नहीं बल्कि बड़े नेताओं को भी है, जो भी उपेक्षा के शिकार हैं। पार्टी के अहम फैसलों में पूर्व प्रदेश अध्यक्षों को शामिल करने की परम्परा लगभग समाप्ति की ओर है। टिकटों के चयन के अलावा संगठनात्मक कार्यक्रमों के निर्धारण को वरिष्ठ नेताओं से परामर्श नहीं हो पा रहा है। पूर्व प्रदेश अध्यक्षों का कार्यालय में बैठने का स्थान खत्म को असहज स्थिति बताते हुए एक पूर्व विधायक का कहना है कार्यकर्ताओं से दूरी बढ़ाने का नुकसान उठाना पड़ेगा।

संवाद घटा व संबोधन बढ़ा

संगठन की बैठकों में निचले स्तर के कार्यकर्ता व पदाधिकारियों से संवाद कम हो रहा है। बड़े नेताओं के एकतरफा संबोधन होने से सही फीडबैक नहीं मिल पाता है। निजी कंपनियों के सर्वे आदि के फैसलों का भी नकारात्मक प्रभाव दिखने लगा है। कार्यकर्ताओं से संवादहीनता के कारण छावनी परिषद के चुनाव में अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली और उपचुनावों में भी कमोबेश यही हाल रहा।

बाहरी को टिकट की गारंटी नहीं

प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी का कहना है कि अन्य दलों से आने वाले किसी भी नेता को टिकट का आश्वासन नहीं दिया जा रहा है। कार्यकर्ताओं कासम्मान किसी सूरत में कम नहीं होगा।


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