यहां के पत्थर तक बयां करते हैं सआदत अली की शानों शौकत के किस्से
हयात बख्श कोठी (राज भवन), फरहत बख्श कोठी (छत्तर मंजिल), लाल बारादरी, दिलकुशा, ला मार्टिनियर, आदि सआदत अली खां की ही देन हैं।
लखनऊ, (दुर्गा शर्मा)। कैसरबाग स्थित सआदत अली खां का मकबरा, एक ऐसी जगह जहां बेजुबां पत्थर भी कलात्मक कहानी कहते हैं। एक नायाब शख्सियत शानों शौकत के साथ यहां आराम फरमा हैं। लखनऊ को इमारतों के शहर का खिताब यूं ही नहीं मिला है। इसके पीछे जिन लोगों की सोच है, उनमें से एक हैं-सआदत अली खां। कैसरबाग से लेकर दिलकुशा कोठी तक लगभग सभी विशेष इमारतें इन्हीं की बनवाई हुई है।
यामिन उद्दौला नवाब सआदत अली खां आसफुद्दौला के बेटे और अवध के छठे नवाब थे। उन्होंने अपने नवाबी काल में जहां राज-काज में एक मुकाम कायम किया वहीं शहर की शानों शौकत में भी इजाफा किया। नवाब सआदत अली खां ने छत्तर मंजिल में रहते हुए इसकी भव्यता को और बढ़ाया। बगल में उनकी बनवाई लाल बारादरी में दरबार लगता था। 1814 में नवाब साहब ने इस दुनिया को अलविदा कहा। उनसे पहले उनकी बेगम खुर्शीद जदी का इंतकाल हो चुका था और सआदत अली खां ने उनका मकबरा बनवाना शुरू कर दिया था। उनके वारिस गाजीउद्दीन हैदर ने कैसरबाग में अपने महल को तुड़वा कर उसकी जगह सआदत अली का मकबरा बनवाया था।
मकबरा तीन मंजिला है। यह इमारत लखौरी ईट से बनी है जिसको जोडऩे के लिए चूने का इस्तमाल हुआ है। मकबरे का फर्श बलुआ पत्थर का बना है। इसके चारों तरफ मेहराब हैं, जिनसे अंदर दाखिल होते है। इसके कोनों में घुमावदार सीढिय़ां हैं जिनसे छत तक या तहखाने में पहुंचा जा सकता है। ऊंची शानदार गुंबद है। अगर हम गुंबद को ध्यान से देखें तो उसके ऊपर का हिस्सा फूलों के गुलदस्ते जैसा है। मकबरे का फर्श शतरंज की बिसात जैसे काले और सफेद मार्बल का है। पीछे की तरफ सआदत अली खां की तीन बेगमों की कब्रें हैं और पूरब की तरफ उनकी तीन बेटियां दफन हैं। गुंबद के ठीक नीचे वो जगह है जहां पर नवाब साहब दफन हैं, पर उनकी मजार तहखाने में है।
छत्तर मंजिल से आए कैसरबाग
लखनऊ के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह ने जब कैसरबाग का निर्माण करवाया तब नवाब की रिहाइश छत्तर मंजिल से निकल कर वहां पहुंची थी। सआदत अली खां ने नदी किनारे कोठी दिल आराम, मुनावर बख्श कोठी, खुर्शीद मंजिल (आज का लामार्टिनियर गल्र्स स्कूल) और चौपड़ घुड़साल (लॉरेंस टेरेस और लखनऊ क्लब) भी बनवाया था।