लखनऊ की सड़कों पर खटारा वाहनों का खतरनाक फर्राटा, कमर्शियल वाहन सबसे आगे
लखनऊ में हादसों की एक बड़ी वजह वाहनों की फिटनेस है। तमाम दावों के बावजूद जर्जर वाहन खुलेआम शहरी क्षेत्र और हाइवे पर फर्राटा भरते हैं। इनमें हादसों को न्योता देने वाली ट्रैक्टर-ट्रालियां बालू मौंरग ढोने वाले ट्रक और अन्य कमर्शियल वाहन हैं।
लखनऊ [नीरज मिश्र]। हादसों की एक बड़ी वजह वाहनों की फिटनेस है। तमाम दावों के बावजूद जर्जर वाहन खुलेआम शहरी क्षेत्र और हाइवे पर फर्राटा भरते हैं। इनमें हादसों को न्योता देने वाली ट्रैक्टर-ट्रालियां, बालू, मौंरग ढोने वाले ट्रक और अन्य कमर्शियल वाहन हैं। हाल यह है कि लखनऊ संभाग में नए ट्रैक्टर को छोड़ दिया जाए तो बहुत कम में ही ट्रैक्टर ऐसे होंगे जिनमें रिफ्लेक्टर लगे होंगे। ट्रालियों में तो अधिकांश में न बैक लाइट मिलेगी न रिफ्लेक्टर। यहां तक कि नंबर प्लेट तक ट्रालियों में नहीं मिलेगी। जबकि इन्हें रजिस्टर्ड होना चाहिए। बैक लाइट, पार्किंग लाइट की तो बात ही भूल जाइए। यही वजह है कि ट्रांसपोर्टनगर स्थित शहीद पथ पर जब बीते वर्ष सितंबर माह में आईएनसी सेंटर की स्थापना हुई तो पहले माह में करीब 91 फीसद वाहन फेल हो गए। मशीनों ने जब वाहनों को परखा तो लाइट और तकनीकी जांच प्रक्रिया को अधिकांश वाहन पास नहीं कर सके। यही हाल सवारी वाहन ट्रक और अन्य गाड़ियों का है। खटारा वाहन सड़कों पर फर्राटा भर रहे हैं।
हाइवे पर ओवरलोड खड़ी ट्रैक्टर-ट्रालियां यमदूत से कम नहीं
नियम ताक पर रखकर हाइवे पर फर्राटा भरती या फिर रुकी ओवरलोड ट्रैक्टर-ट्रालियां किसी यमदूत से कम नहीं हैं। ट्रालियों में माल भरते वक्त न तो मानकों का ख्याल रखा जाता है और न ही आगे की विजिबिल्टी साफ होती है। रिफ्लेक्टर तक न होने से यह गाड़ियां सबसे ज्यादा खतरनाक होती हैं। सर्दी के मौसम कोहरे के चलते इन्हें बचाने के चक्कर में हादसे होते हैं। ट्रैक्टर ट्राली और जुगाड़ वाहनों से आंचलिक क्षेत्र, राजमार्गों और हाईवे पर इन्हीं की वजह से ज्यादातर दुर्घटनाएं होती हैं।
कृषि कार्य के लिए ली ट्रैक्टर ट्राली, ढो रहे भवन सामग्री और सवारीदरअसल कृषि कार्य के नाम पर ली जाने वाले ट्रैक्टर ट्रालियों में छूट का प्रावधान है। लोग इन वाहनों को कृषि कार्य के लिए निकलवा लेते हैं। छूट का लाभ लेकर वाहन स्वामी इसका उपयोग कमर्शियल रूप में करता है। नियम विरुद्ध तरीके से बारातों में लोगों को ढोने के लिए ट्रैक्टर ट्राली का ग्रामीण क्षेत्रों में जमकर उपयोग होता है। उसके बाद भवन सामग्री ढोने में इसे लगा दिया जाता है।
लाइसेंस तक की जांच नहीं, किशोर चलाते हैं ट्रैक्टर-ट्राली
ट्रैक्टर ट्राली चलाने वाले लोगों की ठीक ढंग से जांच तक नहीं होती है। यहां तक नौसिखिए और किशोरों के हाथ में ड्राइविंग की कमान होती है। इनके ड्राइविंग लाइसेंस तक की जांच की व्यवस्था एजेंसियों के पास नहीं है।
कार्रवाई के कारण
- वित्तीय वर्ष-2018-19, 2019-20, 2020-21
- रेट्रो रिफ्लेक्टर न होने पर चालान-1531- 3268-1176
- ट्रैक्टर-ट्राली- 109-107-65
- डग्गामार बस-1751-1686-2517
- आइएनसी सेंटर ने दिखाया आइना
- फिटनेस में कितने पास कितने फेल
सितंबर 19
वाहनों की जांच-103पास-16फेल-87
अक्टूबर 19
जांच-1288पास-486फेल-802
नवंबर 19
जांच-2328पास-1294फेल-1034
दिसंबर 19 जांच-2475पास-1620 फेल-855
जनवरी 20
जांच-2266पास-1462फेल-804
फरवरी 20
जांच-2147पास-1572फेल-576
मार्च 20
जांच-1116पास-799फेल-317
मई 20
जांच-196 पास-147फेल-49
जून 20
जांच-1744पास-1291फेल-453
लखनऊ गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के महामंत्री पंकज शुक्ला ने बताया कि कमर्शियल वाहनों की उम्र निर्धारित है। पंद्रह साल तक की गाड़ियों को ही चलाने की अनुमति है।लेकिन नीति ही स्पष्ट नहीं है। नीति स्पष्ट कर उसे लागू करें। उम्रदराज वाहन अपने आप रुकने लगेंगे। हादसों का कारण बनने वाले वाहनों को हटाया जाना चाहिए लेकिन तय नियमों के तहत। ,
जो वाहन होंगे फिट वही चलेंगे
आरटीओ रामफेर द्विवेदी ने बताया कि इंस्पेक्शन एंड सर्टिफिकेशन सेंटर यूपी का पहला अत्याधुनिक जांच सेंटर है। पहले जो जांच मेनुअली होती थी अब उसे मशीन कर रही है।। मानवीय हस्तक्षेप कतई खत्म कर दिया गया है। जो वाहन फिट होंगे वही चलेंगे। तय शर्तों और नियमों पर ही वाहन चलेंगे। शुरुआती दौर में लाइट की बीम के चलते अधिकांश गाड़ियां फेल हो जाती थीं। अब लोगों ने इसमें भी सुधार किया है।