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ओडिशा दिवस पर संस्कृति व परंपरा का संगम

लखनऊ: ओडिशा के पकवानों, धार्मिक परंपराओं और संस्कृति को अपने आंचल में समेटे उड़िय

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Apr 2018 05:45 AM (IST)Updated: Mon, 02 Apr 2018 05:45 AM (IST)
ओडिशा दिवस पर संस्कृति व परंपरा का संगम
ओडिशा दिवस पर संस्कृति व परंपरा का संगम

लखनऊ: ओडिशा के पकवानों, धार्मिक परंपराओं और संस्कृति को अपने आंचल में समेटे उड़िया समाज के लोगों ने रविवार को ओडिशा दिवस मनाया। गोमतीनगर के संगीत नाटक अकादमी में नए वर्ष के रूप में मनाए जाने वाले इस समारोह में शास्त्रीय व लोक नृत्य को जब मलेशिया के कलाकारों ने पदमश्री रामली इब्राहिम के निर्देशन में गंजाम व रामायण के प्रसंगों के माध्यम से पेश किया तो पूरा सभागार भक्ति के रंग से सराबोर हो उठा।

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राज्यपाल राम नाईक की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि शामिल हुए। उडिया समाज लखनऊ, अयोध्या शोध संस्थान व संस्कृति विभाग के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में प्रमुख सचिव पर्यटन अवनीश अवस्थी, ओडिया समाज के अध्यक्ष जीबी पटनायक, सचिव डॉ.डीआर साहू, अयोध्या शोध संस्थान के वाईपी सिंह, संस्कृति सचिव जगतराज की मौजूदगी में उड़िया समाज की वार्षिक पत्रिका निर्मल्या व अयोध्या शोध संस्थान के पचांग का विमोचन भी किया गया।

नाथ संप्रदाय से भगवान जगन्नाथ का गहरा नाता-सीएम

ओडिया समाज के आग्रह पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजधानी में भगवान जगन्नाथ का मंदिर बनाने का आश्वासन दिया। उन्होंने समाज के लोगों से कहा कि वह जमीन की तलाश करें और हम उनकी मदद करेंगे। सीएम ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम देश व समाज को जोड़ने और संस्कृति को समझने का अवसर देते हैं। नाथ संप्रदाय का भगवान जगन्नाथ से गहरा नाता रहा है। नाथ संप्रदाय के लोग वहां लोगों का इलाज करने जाते थे। श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को साकार करने के लिए पीएम मोदी कहते हैं कि पूरा देश एक साझी विरासत है। देश में सात पुरी में से एक है जगन्नाथपुरी, वहीं से रामायण का प्रचार-प्रसार हुआ है। हमारे देश में अलग-अलग प्रदेश हैं सबकी अपनी अपनी संस्कृति व विरासत है। उसके बावजूद हम एक है। राजनैतिक मतभेद हमारे कितने भी हों मगर देश के किसी भी कोने में संकट होता है तो हम साथ खड़े होते हैं, यही हमारी पहचान है।

जनधन से बने भगवान जगन्नाथ का मंदिर : राज्यपाल

ओडिशा दिवस के मौके पर राज्यपाल राम नाईक ने सभी को बधाई दी और कहा कि पदमश्री सम्मान से सम्मानित रामली इब्राहिम के बारे में जब सुना तो थोड़ा चौंक गया, क्योंकि राम भी है और इब्राहिम भी। यही नाम हमको आपस में जोड़ते हैं। उन्होंने कहा कि पूरे देश में अलग-अलग राज्यों के स्थापना दिवस मनाए जाते हैं। उनकी संस्कृति उनकी भाषा सब अलग है उसके बाद भी हम एक है हमारे भाव एक हैं। उन्होंने समाज के लोगों को पैसे से जमीन खरीदने और फिर जन धन से निर्माण करने का आह्वान किया।

रामायण के वनागमन प्रसंग का वर्णन

मलेशिया से आए कलाकारों ने ओडिशा के पारंपरिक नृत्य के माध्यम से रामायण के वनागमन प्रसंग को जब मंच पर पेश किया तो पूरा सभागार तालियों से गुंजायमान हो उठा। मंगलाचरण से कार्यक्रम का आगाज हुआ इसके बाद रामली इब्राहिम व उनके साथियों ने प्रहलाद प्रसंग के माध्यम से नरसिंह वध प्रसंग का मंचन किया। नृत्य के माध्यम से सत्य की विजय का संदेश दिया। तो गोटी पुआ की लोक संस्कृति व परंपरा भी मंच पर देखने को मिली। नव रस की प्रस्तुति में कलाकारों ने श्रंगार, हास्य, करुणा, रौद्र, वीभत्स व शांत रसों का प्रदर्शन कर तालियां बटोरी। रामभजन व योगिनी मोक्ष की प्रस्तुति देखकर लोग आंनदित हो गए। कलाकारों में रामली इब्राहिम, गीतिका, तनमीमी, गोथामी, कृथाना, हरिथेरन, विक्नेश्वरन सहित कई कलाकारों ने अपनी कला का परिचय दिया।

इसलिए लिए होता ओडिशा दिवस

अंबेडकर विवि की प्रो.सुनीता मिश्रा ने बताया कि पूर्वी बंगाल और बिहार के कुछ हिस्से को लेकर एक अप्रैल 1936 में ओडिशा के रूप में एक नए राज्य का गठन किया गया था। ओडिशा सरकार की ओर से हर वर्ष स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाने वाला पर्व धीरे-धीरे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में तब्दील हो गया। राजधानी में भी समाज के लोगों की ओर इसे सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाते हैं।

लजीज पकवानों का फूड फेस्टिवल

ओडिशा के खानपान से लोगों को रूबरू कराने के लिए आयोजन स्थल पर फूड फेस्टिवल का भी आयोजन किया गया। ओडिशा की प्रसिद्ध मिठाई फिरनी से लोगों ने एक दूसरे का मुंह मीठा कराया। दही बड़ा, आलूदम, कद्दू की खीर व पीठा के साथ ही मछली से बने पकवान माछोबेसर जैसे पकवानों का लोगों ने लुफ्त उठाया।


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