सेटेलाइट से पकड़ी जाएगी स्टांप शुल्क की चोरी, हेराफेरी करने वालों पर पैनी नजर
हेराफेरी कर स्टांप चोरी करने वालों पर आसमान से रखी जाएगी नजर। नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी से ली जाएगी मदद।
लखनऊ, [राजीव बाजपेयी]। जमीन और संपत्तियों की खरीद-फरोख्त में स्टांप चोरी करने वालों की अब खैर नहीं है। निबंधन विभाग अब स्टांप शुल्क चोरों पर शिकंजा कसने के लिए सेटेलाइट इमेज की मदद लेने की योजना बना रहा है। सेटेलाइट तस्वीरों से संपत्ति के मूल स्वरूप का पता लगाकर उसके आधार पर स्टांप शुल्क वसूल किया जाएगा।
संपत्तियों की खरीद-फरोख्त में स्टांप शुल्क कम देना पड़े, इसलिए बैनामे या अनुबंध में अभिलेखों में हेरफेर कर राजस्व की चपत लगाई जा रही है। तमाम रियल एस्टेट कंपनियां और बिल्डर गलत मूल्यांकन कर राजस्व की चपत लगा रहे हैं। निबंधन विभाग पहले से ही कम रजिस्ट्रियों के चलते लक्ष्य प्राप्ति के संकट से जूझ रहा है। सहायक महानिरीक्षक निबंधन प्रथम एसके त्रिपाठी के मुताबिक संपत्तियों का उचित मूल्यांकन कर स्टांप शुल्क वसूला जाए, इसके लिए तमाम कदम उठाए जा रहे हैं। स्टांप चोरी को तकनीक की मदद से आसानी से पकड़ा जा सके इसके लिए सेटेलाइट की मदद लेने पर विचार किया जा रहा है। बीते दिनों गाजियाबाद में आयकर विभाग ने टैक्स चोरी के मामले में जमीन की जांच के लिए हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग की मदद ली और 15 करोड़ की चोरी पकड़ी।
विभाग ने बेचे गए भूखंड की जब पुरानी तस्वीरें मांगीं तो पता चला कि जिस जमीन को कृषि योग्य बताकर बेचा गया है, वहां पर व्यावसायिक कांप्लेक्स खड़ा है। आयकर विभाग ने इसी आधार पर नोटिस जारी कर पंद्रह करोड़ रुपये जमा करने के लिए कहा है। सहायक महानिरीक्षक के मुताबिक दूसरे भूखंडों या संपत्तियों कीरजिस्ट्री के दौरान सही स्थिति का पता लगाने में सेटेलाइट इमेज मदद कर सकती है। दरअसल, जमीन की भौगोलिक स्थिति और उपयोगिता को देखकर स्टांप शुल्क का निर्धारण कियाा जाता है। इसलिए बिल्डर और प्रॉपर्टी डीलर जमीन की वास्तविक स्थिति को छिपाकर रजिस्ट्री या अनुबंध कराते हैं ताकि स्टांप शुल्क कम देना पड़े। यही वजह है कि तमाम बार व्यावसायिक प्रापर्टी को कृषि योग्य दिखाकर बैनामा कराते हैं।