Move to Jagran APP

सुर्ख लाल और रसीला.. मेहनत का फल, यूं उग रही है ये कामयाबी की पौध

15 दिसंबर से आने लगती है स्ट्रॉबेरी। 150 रुपये से लेकर 450 रुपये प्रतिकिलो तक बिक रही बाजार में।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 28 Feb 2019 01:28 PM (IST)Updated: Fri, 01 Mar 2019 09:18 AM (IST)
सुर्ख लाल और रसीला.. मेहनत का फल, यूं उग रही है ये कामयाबी की पौध
सुर्ख लाल और रसीला.. मेहनत का फल, यूं उग रही है ये कामयाबी की पौध

लखनऊ, [पवन तिवारी]। स्ट्रॉबेरी। नाम सुनते ही एक ग्लैमरस सा फल जेहन में आता है। शॉपिंग मॉल, प्लाजा या ब्रांडेड रिटेल आउटलेट्स की शान बढ़ाने वाली स्ट्रॉबेरी। आकर्षक पैकिंग देखकर अंदाजा लगाते होंगे कि कहीं बाहर से आती होगी। विदेश से या कश्मीर, हिमाचल और दार्जिलिंग के पहाड़ों से। ना..ना..जनाब। अभी बाजार में जो स्ट्रॉबेरी इठला रही है वो आपके शहर लखनऊ और इसके आसपास के इलाकों की है।

loksabha election banner

यह मेहनत का फल है। रसीला और सुर्ख। थोड़ी-मोड़ी नहीं, बड़ी मात्र में पैदा कर रहे हैं हमारे कर्मठ किसान। यह बात तो पुरानी हो गई। नई बात यह है कि अब स्ट्रॉबेरी की नर्सरी भी यहीं तैयार होती है। पहले इसके पौधे हिमाचल, उत्तराखंड और सिक्किम से लाए जाते थे। बेहद नाजुक होते हैं। इतने कि कड़े एहतियात के बावजूद कई पौधे तो रास्ते में मुरझा कर खत्म हो जाते थे। बड़ा झंझटी काम था। किसानों को खुद अपनी गाड़ी लेकर वहां जाना पड़ता है। लखनऊ के कर्मठ किसानों ने वह पौधा उगा लिया है, जिनकी शाख पर लदे फल उनकी जिंदगी में वैभव और खुशहाली का रंग घोलते हैं। बात पहले स्ट्रॉबेरी की खेती से शुरू करते हैं। लखनऊ के बंथरा इलाके में बीघे भर में फैले खेत में हरे-भरे पौधों के बीच स्ट्रॉबेरी सितारों की तरह टिमटिमाती रहती है। पहली नजर में लगेगा कि किसी ने करीने से फूलों का बगीचा सजाया हो। इस बगीचे के बागवां हैं धीरेंद्र सिंह। युवा, उत्साही और सौम्य। मूल रूप से लालगंज (रायबरेली) के रहने वाले धीरेंद्र एक नामचीन कंपनी में नौकरी करते थे।

 

यूं उगी कामयाबी की पौध

धीरेंद्र बताते हैं कि हर साल पौधे लाने के लिए वे अपनी एसयूवी से हिमाचल प्रदेश के सोलन जाते थे। यह यात्र खर्चीली तो थी ही, खतरों से भरी होती थी। पौधों को सूखने से बचाने के लिए नॉन स्टाप यात्र करनी पड़ती है। वे सोचते कि काश पौधे हमें लखनऊ में ही मिल जाएं। फिर आइडिया आया कि क्यों न पौधे उगाएं। उनकी इस सोच को धरातल पर लाने में मदद की केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक डा. शैलेंद्र राजन और प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार ने। पौध तैयार करने में बड़ी मशक्कत करनी होती है, लेकिन यह किसी सपने के पूरे होने जैसा है।

 

कुछ नया करने की छटपटाहट

जिंदगी में कुछ नया करने की छटपटाहट उनको स्ट्रॉबेरी की रसीली खेती तक खींच लाई। कानपुर रोड पर बंथरा में एक बीघे में स्ट्रॉबेरी पैदा करते हैं। करीब 20 हजार पौधे लग जाते हैं। एक पौधे से 250 से लेकर 750 ग्राम फल की पैदावार होती है। किसी किसी में तो एक किलो तक फल मिल जाते हैं। मोटा हिसाब मानें तो एक सीजन की पैदावार होगी कोई 10 हजार किलो। लखनऊ की स्ट्रॉबेरी 15 दिसंबर से आने लगती है। फरवरी पीक समय है। मई तक स्ट्रॉबेरी फलती है। बाजार में यह 150 रुपये से लेकर 450 रुपये प्रतिकिलो तक बिकती है। पहाड़ों से आने वाली स्ट्रॉबेरी यहां 600 रुपये किलो के हिसाब से मिलती है।

 

क्या कहते हैं स्ट्रॉबेरी उत्पादक ?

स्ट्रॉबेरी उत्पादक धीरेंद्र सिंह का कहना है कि लखनऊ में उगाए स्ट्रॉबेरी के पौधे यहां के अलावा गोंडा, अयोध्या (फैजाबाद) के किसानों ने भी लिए। अभी पौधों की बिक्री नहीं की जाती, किसानों को यह प्रयोग के तौर पर दिए गए हैं। कहते हैं कि हम इतने पौधे उगा लेंगे कि अगले सीजन से किसी किसान को बाहर नहीं जाना पड़ेगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.