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अब चुनावी साल में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रहे अपने सांसद, विधायक और मंत्री

भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है और क्षेत्र में अपने सांसदों का आकलन कर रही है। कई ऐसे भी सांसद हैं जिनकी निष्क्रियता से कार्यकर्ता खफा हैं।

By Ashish MishraEdited By: Published: Thu, 29 Mar 2018 12:13 PM (IST)Updated: Thu, 29 Mar 2018 12:13 PM (IST)
अब चुनावी साल में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रहे अपने सांसद, विधायक और मंत्री
अब चुनावी साल में भाजपा की मुश्किलें बढ़ा रहे अपने सांसद, विधायक और मंत्री

आनन्द राय, लखनऊ । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक में तीन वर्ष पहले बलिया के भाजपा सांसद भरत सिंह ने यह कहकर सबको चौंका दिया था कि केंद्र सरकार अपनी उपलब्धियां गिना रही है, लेकिन धरातल पर कुछ दिख नहीं रहा है। पर, कुछ ही समय बाद उनके तेवर बदल गए। तब मोदी ने बलिया से ही उज्ज्वला योजना का शुभारंभ किया था। अब बहराइच की भाजपा सांसद साध्वी सावित्री बाई फुले ने दलितों के आरक्षण के सवाल पर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। वह एक अप्रैल को केंद्र की नीतियों के खिलाफ राजधानी में रैली करने जा रही हैं। भाजपा की मुश्किल बढ़ाने वाले ऐसे और भी कई अपने हैं।

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भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी है और क्षेत्र में अपने सांसदों का आकलन कर रही है। कई ऐसे भी सांसद हैं जिनकी निष्क्रियता से कार्यकर्ता खफा हैं। कुछ सांसद विवाद का सबब भी बने हैं। जैसे धौरहरा की सांसद रेखा वर्मा पर सीतापुर के महोली विधायक शशांक त्रिवेदी पर हमला करने के आरोप लगे। कैसरगंज के भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह ने तो निकाय चुनाव में भाजपा की कार्यशैली और टिकट बंटवारे पर ही सवाल उठाकर मुश्किल खड़ी कर दी। बाराबंकी की सांसद प्रियंका सिंह रावत की अधिकारियों से बार-बार होने वाली टसल हो या भाजपा की सरकार बनते ही सहारनपुर में सांसद राघव लखनपाल और पुलिस के बीच का विवाद, ऐसी घटनाओं ने भी संगठन और सरकार को नए सिरे से चिंतन पर विवश किया है।

कई और सांसद हैं जिनके व्यवहार को लेकर सवाल उठे। यहां तक कि कार्यकर्ता भी प्रदर्शन पर उतर आए। अति पिछड़ों और अति दलितों के श्रेणीवार आरक्षण को लेकर भाजपा गठबंधन के साझीदार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के तीखे तेवर किसी से छिपे नहीं हैं। वह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की तारीफ कर रहे हैं, लेकिन प्रदेश संगठन और सरकार पर लगातार हमलावर हैं। भाजपा इन स्थितियों से वाफिक है और बेहतर विकल्प भी तैयार कर चुकी है।

बदले समीकरण हैं विद्रोही तेवर की बड़ी वजह

सांसद सावित्री बाई फुले के विद्रोही तेवर के पीछे बदले हुए सियासी समीकरण हैं। फुले ने जिस तरह मोर्चा खोला है उससे इतना तो साफ हो गया है कि वह 2019 में अपने लिए नया मार्ग प्रशस्त कर रहीं हैं। यह भी सही है कि फ्रंट पर सावित्री हैं, लेकिन नेपथ्य में कई और माननीय भी हैं। कुछ समय पहले से ही यह चर्चा तेज है कि भाजपा अपने निष्क्रिय और विवादित सांसदों का टिकट काटकर नये चेहरों को मौका देगी। अभी तक ऐसे लोगों को कोई राह नहीं सूझ रही थी, लेकिन सपा-बसपा गठबंधन से कइयों की उम्मीद जगी है।

पूर्वांचल से लेकर पश्चिम तक कई सपा-बसपा में अपने लिए ठिकाने की तलाश में हैं। सरकार के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर भले सरकार में रहने का दावा कर रहे हैं, लेकिन उनके दल के भी विपक्ष में तार जुड़े दिख रहे हैं। राज्यसभा में उनकी ही पार्टी के विधायक कैलाश सोनकर पर क्रास वोटिंग के आरोप भी लगे हैं। यहां तक कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने सोनकर पर भाजपा-सुभासपा गठबंधन के साथ विश्वासघात करने और पैसे के बल पर बिकने तक का आरोप लगाया है।  


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