अब गुलिस्ता में अपनी पहचान बनाएंगे पाच 'गुमनाम' फूल
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान ने नागालैंड व मणिपुर में की खोज, एनबीआरआइ जल्द रखेगा इनविशेष फूलों के नाम। भारत ही नहीं वैश्रि्वक टेक्सोनॉमी तक में दर्ज नहीं हैं ये फूल। दुनिया में सत्तर फीसद वनस्पतियों की पहचान ही हो पाई है अब तक।
लखनऊ [रूमा सिन्हा]। कुदरत ने पेड़-पौधों के रूप में पृथ्वी को अनगिनत तोहफों से नवाजा है, लेकिन अभी तक केवल सत्तर फीसद वनस्पतियों की पहचान ही हो पाई है। 30 फीसद अब भी गुमनाम हैं। यानी इनका वर्गीकरण और नामकरण नहीं हो सका है। केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीएसआइआर) के लखनऊ, उप्र स्थित घटक राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) द्वारा नागालैंड व मणिपुर में पाए जाने वाले पाच ऐसे फूलों की पहचान की गई है, जो अब तक पुष्प जगत के वर्गीकरण (टेक्सोनॉमी) में दर्ज नहीं थे। विश्व इन फूलों को अब एनबीआरआइ द्वारा दिए गए नामों से जानेगा। इनका वर्गीकरण-नामकरण जल्द होगा। पूर्वोत्तर के राज्य जैव विविधता की दृष्टि से बेहद धनी हैं। एनबीआरआइ इस क्षेत्र की तस्वीर बदलने के लिए काम कर रहा है। डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी (डीबीटी) के इम्फाल स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ बायो रिसोर्सेस एंड सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आइबीएसडी) के निदेशक दीनबंधु साहू के सहयोग से एनबीआरआइ नागालैंड व मणिपुर में मौजूद छोटे से लेकर बड़े पेड़ों तक का विस्तृत डाटा बेस तैयार कर रहा है। इसी कोशिश में वैज्ञानिकों को फूलों की ऐसी पाच प्रजातिया मिली हैं, जो भारत ही नहीं बल्कि वैश्रि्वक टेक्सोनॉमी में अभी तक दर्ज नहीं हैं।
एनबीआरआइ के एंजियोस्पर्म टेक्सोनॉमी हर्बेरियम डिवीजन की असिस्टेंट प्रोफेसर प्रियंका अग्निहोत्री बताती हैं कि यह पहली बार है जब पूवरेत्तर के जैव विविधता का वृहद स्तर पर डाटा बेस तैयार किया जा रहा है। वर्गीकरण में पादप प्रजातियों के एंजियोस्पर्म, ब्रायोफाइट, लाइकेन व टेरीडोफाइट्स समुदायों को शामिल किया गया है। वैज्ञानिकों की टीम ने यहा से करीब 3500 पौधे एकत्र किए हैं, जिसमें से पचास फीसद पौधों का विस्तृत डाटा बेस तैयार कर लिया गया है। इसमें पौधों का माइक्रोस्कोपिक विवरण, औषधि के रूप में प्रयोग आदि हर तरह की जानकारी को कलमबद्ध किया जा रहा है। जो प्रजातिया खतरे में हैं।
डॉ. प्रियंका संभावना जताती हैं कि नागालैंड व मणिपुर में आगे भी ऐसी कई प्रजातिया सामने आ सकती हैं, जिनका टेक्सोनॉमी में उल्लेख ही नहीं है। संस्थान के डॉ. संजीव नायक कहते हैं कि इन पौधों का क्वाटिटेटिव असेसमेंट भी किया जा रहा है, जिससे पता चल सके कि इन वनस्पतियों की संख्या कितनी है। पौधों से बदलेगी पूवरेत्तर की तस्वीर:
एनबीआरआइ के निदेशक प्रो. एसके बारिक कहते हैं कि पूवरेत्तर के सबसे बड़े प्राकृतिक संसाधन यानी पेड़-पौधों के जरिए यहा की तस्वीर बदलने की कोशिश की जा रही है। संस्थान ने ऐसी वनस्पतियों की पहचान की है, जिनका प्रयोग स्थानीय लोग दातों की समस्या व आर्थराइटिस के लिए करते हैं। यह काफी प्रभावी है। इससे हर्बल फामरुलेशन व प्रोडक्ट तैयार किए जा सकते हैं। इससे पूवरेत्तर के राज्यों की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने में मदद हो सकती है। इसके अलावा वहा कई तरह के लैग्यूम (फलियों वाले पौधे) की भी पहचान की गई है। इनमें महत्वपूर्ण पोषक तत्व मौजूद हैं। यदि एक-दो हानिकारक तत्व इनसे अलग कर दिये जाएं तो यह खाने लायक हो जाएंगे। संस्थान इसी कोशिश में लगा है।