भूखे प्यासे लखनऊ पहुंचे उत्तर भारतीय बोले, पूछ-पूछकर किया जा रहा हमला
अहमदाबाद एक्सप्रेस से लखनऊ पहुंचे बिहार और यूपी के यात्रियों ने बयां किया दर्द। यहां से वह दूसरी ट्रेनों से आगे को रवाना हुए।
लखनऊ, जेएनएन। चारबाग स्टेशन के प्लेटफार्म दो पर दोपहर 3:24 बजे अहमदाबाद-लखनऊ एक्सप्रेस पहुंची। ट्रेन के रुकते ही उतर रहे यात्रियों के चेहरे पर अपने घर लौटने की खुशी की जगह गुजरात का वह खौफनाक मंजर साफ दिख रहा था। कोई बिना खाना खाए ही सामान लेकर भाग निकला तो कोई बिना रिजर्वेशन कराए बोगी के शौचालय के पास बैठकर सफर करता रहा।
बिहार जाने वाले यात्री अहमदाबाद एक्सप्रेस से लखनऊ पहुंचे। यहां से वह दूसरी ट्रेनों से आगे को रवाना हुए। जबकि गोरखपुर सहित प्रदेश के कई अन्य जिलों के भी यात्री लखनऊ तक आए। यात्रियों ने बताया कि जिसको जहां जगह मिली वह सवार हो गया। रास्ते में टीटीई ने भी जुर्माना लगाने में कोई कोताही नहीं बरती। एक-एक सीट पर छह से सात लोग बैठने को मजबूर रहे। जबकि गैलरी तक में बच्चों, महिलाओं और वृद्धों ने कभी खड़े होकर तो कभी दूसरों की सीटों पर बैठकर लखनऊ तक का सफर तय किया। बोगी में इतनी अधिक भीड़ थी कि कोई वेंडर तक खानपान सामग्री बेचने नहीं आया। इन पीडि़तों ने लखनऊ पहुंचकर इस तरह अपनी पीड़ा बयां की।
रोजी रोटी के लिए उठा रहे जोखिम
एक तरफ जहां गुजरात में हो रही ङ्क्षहसा के बीच उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग वहां से पलायन कर रहे हैं। वहीं रोजी रोटी के लिए लोगों का यहां से जाना अब भी जारी है। समस्तीपुर के रहने वाले विनय अपने एक दर्जन साथियों के साथ पहले बिहार से लखनऊ पहुंचे और फिर यहां से अहमदाबाद एक्सप्रेस से गुजरात रवाना हुए। विनय बताते हैं कि वह लोग जामनगर के हिम्मतनगर में मूंगफली के गोदाम में काम करते हैं। सेठ गुजराती हैं और उन्होंने कहा कि तुम लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी मेरी है। इस कारण हम लोग गुजरात जा रहे हैं।
पीडि़तों ने बयां किया दर्द
गुजरात में कई इलाकों में उत्तर भारतीयों खासकर बिहारियों और यूपी वालों को ढूंढकर उनसे मारपीट हो रही है। मुझे भी एक दर्जन लोगों ने लाठी लेकर दौड़ा लिया। किसी तरह जान बचाकर घर पहुंचा और जरूरी सामान उठाकर अहमदाबाद स्टेशन पहुंच गया। यहां से लखनऊ आ रही ट्रेन में सवार हो गया। अब आगे बिहार जाना है।
विक्की
मैं मेहसाणा में रहता हूं। वहां के हालत अधिक गंभीर है। उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर हमले हो रहे हैं। डर के कारण बिना टिकट के ही मैं वहां से भाग निकला। रास्ते भर भूख के कारण बेहाल रहा। समस्तीपुर जाना था, इसलिए जो भी ट्रेन मिली उसमें सवार हो गया।
विनय कुमार
गुजरात में खुद को बचाने के लिए पुलिस की मदद लेनी पड़ रही है। पुलिस सहयोग कर रही है लेकिन इसके बाद भी कहीं न कहीं हमले हो रहे हैं। हर समय किसी अप्रिय घटना की आशंका बनी रहती है। मुझे दीपावली पर गोरखपुर अपने घर जाना था। लेकिन हालात देखकर भाग निकला।
जयनाथ राजभर
गुजरात में पहले कभी डर नहीं लगता था। अब जो कुछ हो रहा है उसे लेकर परिवार की चिंता बढ़ गई है। पत्नी और छोटे बच्चों के साथ कुछ अनहोनी न हो जाए इसके लिए उनको साथ लेकर चला आया। अब हालात ठीक होने का इंतजार है।
राजेश कुमार
मेरा घर फैजाबाद में है। वहां चुन चुनकर यूपी और बिहार के लोगों को पीटा जा रहा है। हमको गुजराती समुदाय के जान पहचान के लोग शक की नजर से देख रहे हैं। असुरक्षा की भावना के चलते सबको लेकर इमरजेंसी में निकल आया।
वंशराज