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जिनकी जिम्मेदारी वही भूले पर्यावरण संरक्षण, एनजीटी ने सुनाई खरी-खरी

औद्योगिक प्रदूषण, नदी संरक्षण व भूगर्भ जल से जुड़े कई मामलों में प्रभावी कार्रवाई न होने से नाराज एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य महकमों को आड़े हाथों लेते हुए खरी-खरी सुनाई है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 08:08 PM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 08:08 PM (IST)
जिनकी जिम्मेदारी वही भूले पर्यावरण संरक्षण, एनजीटी ने सुनाई खरी-खरी

लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। केंद्र व राज्य के ऐसे विभाग जिन पर पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी है, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेशों का अनुपालन करने में नाकाम साबित हुए हैं। औद्योगिक प्रदूषण, नदी संरक्षण व भूगर्भ जल से जुड़े कई मामलों में प्रभावी कार्रवाई न होने से नाराज एनजीटी ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य महकमों को आड़े हाथों लेते हुए खरी-खरी सुनाई है। यही नहीं, विभाग आदेशों का अनुपालन कराने की दिशा में ईमानदार प्रयास कर रहे हैं या नहीं, इसकी मॉनीटरिंग की जिम्मेदारी रिटायर्ड जज को सौंप दी है।

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मामला पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विषाक्त भूजल व दूषित जलापूर्ति से जुड़ी दोआबा पर्यावरण समिति की याचिका से जुड़ा है। तीन वर्ष पूर्व दिए गए आदेशों का अनुपालन जिम्मेदार विभागों द्वारा न किए जाने से ट्रिब्यूनल असंतुष्ट है। सख्त कदम उठाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व जज एसयू सिद्दीकी की अध्यक्षता में एक मॉनीटरिंग कमेटी गठित करनी पड़ी है। आठ अगस्त, 2018 को जारी आदेश के अनुसार यह कमेटी स्वतंत्र व्यवस्था के रूप में एनजीटी के विभिन्न आदेशों के क्रियांवयन का समग्र अनुश्रवण करेगी। कमेटी समस्या के निदान के लिए कार्ययोजना भी बनवाएगी। कमेटी की अगली बैठक 24 सितंबर को है। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में मुख्यसचिव व संबंधित जिलाधिकारियों व एसडीएम की भी जिम्मेदारी तय की है।

ये है मामला

दोआबा पर्यावरण समिति द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिंडन, काली, कृष्णा नदियों के इर्द-गिर्द कैडमियम, निकिल, लेड, जिंक, मरकरी, आयरन से विषाक्त भूगर्भ जल व दूषित जलापूर्ति से नागरिकों की सेहत बिगडऩे का मामला वर्ष 2015 में एनजीटी के समक्ष उठा था। ट्रिब्यूनल ने इस पर तत्काल कार्रवाई के आदेश देते हुए सुरक्षित जलापूर्ति मुहैया कराने व दोषी उद्योगों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए थे। परंतु जिम्मेदार महकमों द्वारा विगत तीन वर्षों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

ट्रिब्यूनल ने शैलेश सिंह की एक याचिका पर बीती 18 सितंबर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय भूजल प्राधिकरण द्वारा उद्योगों की संयुक्त जांच करने में हीलाहवाली व देरी से नाराज होकर इन महकमों के आला अफसरों को ऐसे सुस्त अफसरों के खिलाफ कार्रवाई के सख्त निर्देश दिए हैं

ट्रिब्यूनल के ताजा आदेश

  • प्रदूषित भूजल उगलते हैंडपंप तत्काल सील करें
  • जल निगम प्रभावित जिलों में ग्रामीणों को स्व'छ पेयजल उपलब्ध कराए
  • भूजल उपचारित करने की योजना दो माह में लागू की जाए
  • केंद्रीय व राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व जल निगम की संयुक्त टीम भूजल पर औद्योगिक उत्प्रवाह के साथ कीटनाशक, उर्वरक से पडऩे वाले प्रभाव की पड़ताल करें।
  • प्रदूषित उत्प्रवाह फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ छह सप्ताह के भीतर कार्रवाई कर पर्यावरण क्षति की भरपाई की जाए
  • नागरिकों को सुरक्षित पानी मुहैया कराने की कार्ययोजना राज्य स्तर पर मुख्यसचिव तथा राष्ट्रीय स्तर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तैयार कर लागू कराए

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