जागरण संवादीः मानवता के प्रसार के लिए राष्ट्रवाद आवश्यक
साहित्यकारों के बीच जागरण संवादी में गर्मागर्म बहस छिड़ी। सत्य की जीत और मानवता के प्रसार के लिए राष्ट्रवाद का आवश्यक होना सत्र का निष्कर्ष रहा।
लखनऊ (जेएनएन)। साहित्यकारों के बीच जागरण संवादी के पांचवें सत्र में शुक्रवार को राष्ट्रवाद को लेकर गर्मागर्म बहस छिड़ी। सत्य की जीत और मानवता के प्रसार के लिए राष्ट्रवाद का आवश्यक होना साहित्य और राष्ट्रवाद विषयक सत्र का निष्कर्ष रहा।
नेशनल बुक ट्रस्ट के चेयरमैन, वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार बलदेव भाई शर्मा, मार्क्सवादी विचारक और वरिष्ठ साहित्यकार जगदीश्वर चतुर्वेदी, वरिष्ठ साहित्यकार नीरजा माधव और कवि अरुण कमल ने अपनी राय बहुत ही सशक्त तरीके से रखी। सत्र का आगाज बलदेव भाई शर्मा के विचारों से हुआ। उन्होंने कहा कि भारत में जो राष्ट्रवाद रहा है, वह यूरोप से अलग है।
भारतीय राष्ट्रवाद का मूल भाव मानवता रही है। ये मानवता का पोषक है। उन्होंने जयशंकर प्रसाद की रचना उल्लेखित करते हुए कहा कि मनु जब अपने जीवन का उद्देश्य पूछता है तब उसको बताया जाता है कि औरों के लिए सुख करो और अपने लिए सुख पाओ। इसी तरह से उन्होंने लोकमान्य तिलक की रचना गीता रहस्य का भी उद्हरण दिया।
बलदेव भाई शर्मा ने बताया कि राष्ट्रीयता के विपरीत जो भी काम करे उसके ऊपर प्रहार करना आवश्यक है। अर्जुन जब अपने परिवारीजनोंं पर प्रहार करने से विचलित हुए तब गीता में उनको यही ज्ञान मिला कि सत्य की जीत के लिए विपक्षी का संहार आवश्यक है। राष्ट्रीयता और साहित्य में कोई विभेद नहीं है।
एक ओर तो साहित्य और राष्ट्रवाद को एक दूसरे का पूरक बता कर बलदेव भाई शर्मा शांत हुए तो जगदीश्वर चतुर्वेदी के वक्तव्यों ने सभागार के माहौल को यकायक तब्दील कर दिया। वरिष्ठ साहित्यकार श्री चतुर्वेदी ने शुरुआत से ही राष्ट्रवादी विचारधारा को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि पता नहीं क्यों सरकारें बदलते ही साहित्य के विषय बदलने लगते हैं। ये हक किसी भी सरकार को नहीं कि वह साहित्य के विषय तय करना शुरू कर दे।
हिंदी की ये त्रासदी रही है कि सरकार के हिसाब से सृजन के विषय तय होते रहे हैं। ये विमर्श कभी नहीं होता कि आखिर ऐसा क्यों होता है। किसानों का उत्पीडऩ, मजदूरों के दमन की कोई बात नहीं होती है। ये कैसा राष्ट्रवाद है, जिसमें ज्वलंत समस्याओं पर कोई चर्चा ही नहीं की जाती है। साहित्य का दायरा विचारधारा का नहीं है। महात्मा गांधी प्रखर राष्ट्रवादी थे, मगर रवींद्र नाथ टैगोर और मुंशी प्रेमचंद्र का इस बात को लेकर हमेशा विरोध रहा था। उन्होंने ये कह कर सनसनी फैला दी कि प्रजातंत्र में राष्ट्रवाद विषाणु है।
वरिष्ठ साहित्यकार नीरजा माधव ने कहा कि साहित्य ही वह है जो राष्ट्रहितों को सर्वाेपरि रखता है। ये स्वत: स्फूर्त होता है। तुलसी के युग से राष्ट्रवाद की बात होती थी। वे मानस के माध्यम से एक साहित्यिक दुर्ग खड़ा कर रहे थे। कवि अरुण कमल ने कहा कि महादेवी वर्मा ने कहा है कि राष्ट्रीयता और साहित्य मगर उन्होंने राष्ट्रवाद शब्द नहीं लिखा है। हमको बर्मा जैसा बौद्ध और पाकिस्तान जैसा मुस्लिम राष्ट्रवाद नहीं चाहिए। हमको एक ऐसा राष्ट्रवाद चाहिए जो सबकी बात करता हो। इस सत्र का संचालन आइएएस अधिकारी हरिओम ने किया।