नानाजी देशमुख की कर्मभूमि के कण-कण में रोमांच, फिर चर्चा में गोंडा का जयप्रभा गांव
गोंडा से 27 किमी दूर गोंडा-बलरामपुर मार्ग पर राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख का दीनदयाल शोध संस्थान जयप्रभा ग्राम शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन व सदाचार की खुशबू से महकता है।
लखनऊ, [जागरण स्पेशल]। महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्मे स्वर्गीय नानाजी देशमुख ने उत्तर प्रदेश को अपनी कर्मभूमि बनाकर गोंडा के एक छोटे से गांव को विकसित कर दिया। नानाजी के नाम से विख्यात चंडिकादास अमृतराव देशमुख को राष्ट्रऋषि की उपाधि मिली। नानाजी देशमुख ने शिक्षा के साथ ही लोगों को स्वास्थ्य, सदाचार व स्वावलंबन की ओर प्रेरित किया।
शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनको जब नौ अगस्त 2019 को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया तो उनकी कर्मभूमि गोंडा के जयप्रभा ग्राम में असीम खुशी का माहौल था। एकात्म मानव दर्शन के शिल्पकार नानाजी देशमुख की कर्मस्थली के रूप में ग्रामोदय प्रकल्प जयप्रभा ग्राम,अब सिर्फ गोंडा व देवीपाटन मंडल में ही नहीं पूरे प्रदेश में अपनी खुशबू बिखेर रही है।
देवीपाटन मंडल मुख्यालय गोंडा से 27 किमी दूर गोंडा-बलरामपुर मार्ग पर अवस्थित राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख का दीनदयाल शोध संस्थान जयप्रभा ग्राम शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन व सदाचार की खुशबू से महकता है। ग्राम स्वराज को जमीन पर उतारने वाले नानाजी की कर्मभूमि में जन प्रेरणा का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यहां गौशाला, रसशाला, भक्ति धाम मंदिर के साथ ही थारू जनजाति के बच्चों के रहने और उनकी नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। मुख्य द्वार पर नानाजी का जीवन सूत्र वाक्य ''मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं। अपने वे हैं, जो पीडि़त और उपेक्षित हैं।" लोगों को प्रेरणा देता है।
मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं
जयप्रभा ग्राम के मुख्य द्वार पर नानानजी का जीवन सूत्र वाक्य मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं, अपने वे हैं जो पीडि़त और उपेक्षित है लोगों को प्रेरणा देता है। दीनदयाल शोध संस्थान जयप्रभा के नाम से स्थापित प्रकल्प में नाना जी की कुटिया, अरविंद कुटी,चिन्मय कुटी, पोषक वाटिका व मानस झील के दर्शन के साथ नौका विहार भी होता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण व उनकी पत्नी प्रभावती की स्मारिका मंदिर के अलावा सामाजिक समरसता का प्रतीक भक्ति धाम चारों धाम के दर्शन होते हैं।
जयप्रभा ग्राम में हैं काफी प्रेरक चीजें
दीनदयाल शोध संस्थान जयप्रभा के नाम से स्थापित प्रकल्प में नाना जी की कुटिया, अरविंद कुटी, चिन्मय कुटी, पोषक वाटिका और मानस झील के दर्शन के साथ नौका विहार भी होता है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती की स्मारिका मंदिर के अलावा सामाजिक समरसता का प्रतीक भक्ति धाम चारों धाम के दर्शन होते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र, थारू जनजाति सहित संस्थान के 10 प्रकल्प स्थापित हैं। पद्म विभूषण और अन्य कई सम्मान पा चुके नानाजी का जीवन काफी सादगी भरा रहा। कठोर परिश्रम ने ही नानाजी को इस मुकाम तक पहुंचाया। 25 वर्षों की राजनैतिक सेवा के बाद 60 वर्ष की आयु में 8 अप्रैल 1978 को उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया।
पांच सौ गांवों में किया बदलाव
नानाजी देशमुख के संस्थान ने शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन और सदाचार के आधार पर गोंडा-बलरामपुर के पांच सौ गांवों में बदलाव ला दिया। तमाम रोजगार परक अवसर भी मुहैया कराए। अब तक करीब 60 हजार से अधिक युवक-युवतियों को संस्थान ने विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षण देकर स्वावलंबी बनाया। इसके साथ ही थारू जनजाति के 10 हजार से अधिक बच्चों को शिक्षित किया गया। तीन सौ से अधिक महिलाओं के समूह का गठन कर उन्हें स्ववालम्बी बनाया गया। देवीपाटन मण्डल में ही नहीं बल्कि नानाजी की शाखाएं कई प्रदेशों में अपनी अलख जगा रहीं है। उनके कार्यकर्ता मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के बीड़, नागपुर, दिल्ली और चित्रकूट तक फैले हैं।
बांस की कुटी में रहते थे नानाजी
जयप्रभाग्राम के मानस झील के सामने नानाजी देशमुख बांस की कुटी बना कर रहते थे। सादगी भरे इस जीवन में नानाजी केवल लोगों के लिए आर्थिक निर्भरता व सामाजिक पुनर्रचना में ही लगे रहे। उन्होंने मृत्यु से पहले अपने शरीर को एम्स में दान देने की बात कही थी। नानाजी देशमुख ने 27 फरवरी 2010 को अंतिम सांस ली।
माता-पिता की पांचवीं संतान थे नानाजी
महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कड़ोली गांव में अक्षर ज्ञान से वंचित और लोकज्ञान में दक्ष दंपति अमृतराव देशमुख और उनकी पत्नी राजाबाई के घर पांचवीं संतान के रूप में 11 अक्टूबर 1916 में नानाजी देशमुख ने जन्म लिया। दो भाई और तीन बहनों का परिवार था। माता-पिता ने अल्पायु में ही साथ छोड़ दिया। आसपास कोई विद्यालय ना होने के कारण नाना जी को 11 वर्ष की आयु तक अक्षर ज्ञान नहीं हुआ। इसके बाद तो अक्षर ज्ञान के लिए उन्हें रिसोड़ नामक जगह पर जाना पड़ा। 1937 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद नानाजी संघ के डॉ. हेडगेवार के अलावा बाबा साहेब आपटे से बेहद प्रभावित हुए और संघ के कार्यों में लग गए।
1977 में राजमाता बलरामपुर को चुनाव में हराया
25 नवंबर 1978 को जयप्रभाग्राम प्रकल्प की स्थापना हुई। बलरामपुर संसदीय सीट से 1977 में राजमाता बलरामपुर को चुनाव हराकर नानाजी देशमुख लोकसभा के लिए चुने गए। ऐसा बताया जाता है कि चुनाव हारने के बाद जानकी नगर ग्राम पंचायत की करीब 50 एकड़ जमीन को राजमाता ने नाना जी को दान के रूप में दे दिया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के दर्शन को व्यवहारिक धरातल पर उतारने के लिए नानाजी देशमुख ने सामाजिक-आर्थिक पुनर्रचना की प्रयोगशाला के तौर पर दीनदयाल शोध संस्थान जयप्रभा ग्राम की स्थापना की। वहां पर हर हाथ को काम और हर खेत को पानी देने की पीड़ा उठाकर नाना जी ने 25 नवंबर 1978 में ग्राम उत्थान के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से कई परियोजनाओं को संचालित कराया और 25 हजार से अधिक बास बोरिंग करा कर किसानों को खुशहाल बनाया।
कैसे नाम पड़ा जयप्रभाग्राम
लोकनायक जयप्रकाश नारायण और उनकी पत्नी प्रभावती ने समग्र क्रांति के नाम से कार्य प्रारंभ किया। इनके कार्यों से नाना जी काफी प्रभावित हुए। जिसमें नानाजी भी शामिल हुए हैं और इस क्रांति के आंदोलन में नानाजी महामंत्री रहे। दोनों प्रख्यात समाज सेवी दंपती के नाम के पहले अक्षर से जय प्रभा ग्राम की कल्पना की, जो आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है।
25 नवम्बर 1978 को हुई जयप्रभा की स्थापना
जयप्रभाग्राम प्रकल्प की स्थापना 25 नवंबर 1978 को हुई। बलरामपुर संसदीय सीट से 1977 में राजमाता बलरामपुर को चुनाव हराकर नानाजी देशमुख लोकसभा के लिए चुने गए। चुनाव हारने के बाद जानकी नगर ग्राम पंचायत के करीब 50 एकड़ जमीन को राजमाता ने नाना जी को दान के रूप में दे दी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के दर्शन को व्यवहारिक धरातल पर उतारने के लिए नानाजी देशमुख ने सामाजिक-आर्थिक पुनर्रचना की प्रयोगशाला के तौर पर दीनदयाल शोध संस्थान जयप्रभा ग्राम की स्थापना की।
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