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मुंबई के सिंडीकेट ने फैलाए उत्तर प्रदेश में पांव, ई-टिकटों में खेल से ढीली कर रहे यात्रियों की जेब

मुंबई के सिंडीकेट ने उप्र के कई जिलों में पसार रखे हैं पांव महंगी दर पर ग्राहकों को दी जाती है ई-टिकट।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 08:31 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 08:29 AM (IST)
मुंबई के सिंडीकेट ने फैलाए उत्तर प्रदेश में पांव, ई-टिकटों में खेल से ढीली कर रहे यात्रियों की जेब
मुंबई के सिंडीकेट ने फैलाए उत्तर प्रदेश में पांव, ई-टिकटों में खेल से ढीली कर रहे यात्रियों की जेब

लखनऊ, जेएनएन। बीते एक नवंबर को पत्रकारपुरम में शक्ति ट्रेवल एजेंसी पर आरपीएफ ने छापेमारी की थी। यहां कई जिलों में सक्रिय दलालों के लिए रेलवे ई-टिकट बनते पकड़े गए। इससे कुछ दिन पहले लखनऊ की टीम ने आजमगढ़ में एक दलाल के पास 39 लाख रुपये के रेलवे ई-टिकट बरामद किए थे। ई-टिकटों की इस ब्लैक मार्केटिंग के पीछे मुंबई का सिंडीकेट सामने आया था। 

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इसी सिंडीकेट ने मुंबई में बना प्रतिबंधित साफ्टवेयर उप्र के कई जिलों के दलालों तक पहुंचा दिया है।  प्रतिबंधित साफ्टवेयर मुंबई, अहमदाबाद और हैदराबाद में तैयार हो रहे हैं। प्रति यात्री की दर से हर महीने करोड़ों रुपये का ट्रांजेक्शन लखनऊ से इन तीन शहरों के बैंक खातों में हो रहा है। सिंडीकेट के लिए काम करने वाले ये दलाल रेलवे काउंटर से भी तेजी से सामान्य और तत्काल टिकट बुक करके उसे महंगे दामों में बेच रहे हैं। सक्रिय दलाल प्रतिबंधित साफ्टवेयर के जरिए पहले से ही आइआरसीटीसी की वेबसाइट पर जाकर पहले ही आवेदन फार्म भर लेते हैं। जैसे ही बुकिंग खुलती है, दलाल कंफर्म टिकट निकाल लेते हैं। फिर इन्हें ऊंची कीमत पर बेच देते हैं।

ये भी जानें-

  • मुंबई में बना है प्रतिबंधित साफ्टवेयर
  • 1.5 लाख रुपये का था कभी यह साफ्टवेयर
  • 25 हजार रुपये में अब ट्रेवल एजेंसियों मिल रहा
  • 11 लाख टिकट रोजाना स्लीपर और एसी क्लास बनते हैं
  • 07 लाख सामान्य और तत्काल के आइआरसीटीसी से बनते हैं
  •  120 दिन पहले सुबह आठ बजे सामान्य बुकिंग खुलती है
  •  01 दिन पहले 10 बजे सुबह तत्काल एसी, 11 बजे स्लीपर की बुकिंग
  • 15 मिनट बाद खुलता है अधिकृत एजेंट की बुकिंग आइडी का लिंक 
  •  06 आइआरसीटीसी की एक आइडी पर हर माह छह ई-टिकट
  •  12 ई-टिकट आधार से लिंक आइडी होने पर अपने नाम के साथ बन जाते हैं

ग्रामीणों से भी ठगी

बड़ी संख्या में ग्रामीण दलालों से सामान्य वेटिंग का भी ई टिकट बनवाते हैं। लंबी वेटिंग से ये टिकट कंफर्म नहीं हो पाते हैं। जब यात्री यात्रा कर  लखनऊ पहुंचते हैं तो यहां टीटीई से उनको पता चलता है कि टिकट कंफर्म नहीं हुआ है। इसका रिफंड सीधे दलालों के एकाउंट में चला जाता है। जबकि यात्री को फिर से जुर्माना देकर यात्रा करनी पड़ती है। 


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