औजारों से गढ़ रहे अपना भविष्य, कड़ी मेहनत बनेगी इनके उज्जवल कॅरियर का आधार
लिंब सेंटर में शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विवि के विघार्थियों की कार्यशाला।
लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। सिर्फ किताबों में नहीं, अभ्यास में छिपा है ज्ञान का खजाना। कलम संग औजारों से भी गढ़ सकते हैं भविष्य, विद्यार्थियों ने यह फलसफा जाना।। किताबी ज्ञान से बाहर की दुनिया वृहद है। अभ्यास में ढले अक्षर कामयाबी की मजबूत नींव रखते हैं। विद्यार्थी जीवन की यह मेहनत उज्जवल कॅरियर का आधार बनेगी। लिंब सेंटर, केजीएमयू में कलम संग चल रही छेनी हथौड़ी भविष्य गढ़ने में लगी है। यहा शकुंतला मिश्र राष्ट्रीय पुनर्वास विवि के विद्यार्थियों की कार्यशाला चल रही है। बेचलर ऑफ प्रोस्थेटिक्स एंड ऑथरेटिक्स (बीपीओ) के प्रथम और द्वितीय वर्ष के 13 विद्यार्थियों का दल प्रैक्टिकल कर रहा है। कृत्रिम अंगों के साथ ही सहायक उपकरण बनाने की कला सीख रहे हैं। 15 जुलाई तक कार्यशाला चलेगी।
विद्यार्थी पूर्वाह्न् 10 से 3:30 बजे तक यहा काम करते हैं। कार्यशाला इंचार्ज और सीनियर प्रोस्थेटिक्स के मार्गदर्शन में विद्यार्थी मरीजों से सीधे संपर्क में भी रहते हैं। यह संवाद मर्ज और निजात के गहन अध्ययन में सहायक है। शकुंतला मिश्र विवि में विद्यार्थियों ने अब तक सिर्फ जयपुर तकनीक (सहायक उपकरण बनाने की एक विधि) पर ही काम किया था। लिंब सेंटर में आने वाले मरीजों की विविधता के अनुसार उन्हें तमाम तकनीक सीखने का मौका मिल रहा है।
आत्मविश्वास से लबरेज होकर निकलेंगे:
- बीपीओ सेकेंड ईयर रानी यादव ने बताया कि कार्यशाला में अत्याधुनिक तकनीक सीखने को मिल रही है जो उपकरण हमें बने बनाए मिलते थे, उन्हें यहा हम खुद बना रहे हैं। वैराइटी ऑफ कास्टिंग समेत तमाम तकनीक रोचक है।
- बीपीओ फर्स्ट ईयर कुमुद श्रीवास्तव का कहना है कि दिव्यागों के बेहतर जीवन के लिए कितना कुछ किया जा सकता है, यह हमें कार्यशाला के दौरान सीखने को मिल रहा है। शुरुआत में फिजिकल वर्क थकान भरा लगता था पर अब आदत हो गई है।
- वहीं, बीपीओ सेकेंड ईयर कुमारी पूनम बताती हैं कि मेडिकल लाइन में किताबों के साथ फील्ड वर्क बहुत अहमियत रखता है। थ्योरी को अभ्यास में ढालने का अनुभव अनूठा है।
- बीपीओ सेकेंड ईयर अविनाश वर्मा के मुताबिक, स्पाइन सपोर्ट बेल्ट और नी ब्रेस के साथ तमाम सहायक उपकरण बनाना सीख रहे हैं। वहीं फ्लैट फुट समेत बच्चों की तमाम बीमारियों में उपचार के तरीके जानने को मिल रहे हैं।
इनके मार्गदर्शन में मिल रहा ज्ञान:
- इंचार्ज लिंब सेंटर अरविंद निगम का कहना है कि यहा की कार्यशाला समृद्ध है, इसलिए विद्यार्थियों को यहा सीखने का मौका दिया गया। अत्याधुनिक तकनीकों के साथ दिव्यागों के पुनर्वास के हर तरीके अपनाए जाते हैं। - केजीएमयू के सीनियर प्रोस्थेटिस्ट डीपीएमआर शगुन सिंह बताते हैं कि विद्यार्थियों ने किताबें तो पढ़ी हैं पर प्रैक्टिकल ज्ञान नहीं है। कल्पनाशीलता का भी अभाव है। काम के तरीके भी सीमित हैं। यहा उनको एक्सपोजर मिल रहा है, जो आगे की पढ़ाई और कॅरियर में सहायक होगी।
सहायक उपकरण बनाना सीख रहे :
दुर्घटनावश अंगों का कट जाना या गंभीर क्षति जीवन दुष्कर कर देता है। दिव्यागता के साथ आगे की जिंदगी काटना मुश्किल हो जाता है। इलाज के साथ-साथ मरीज में इच्छाशक्ति भी जागृत करनी होती है। वहीं सहायक उपकरण जीवन को कुछ हद तक सरल बनाते हैं। कार्यशाला में विद्यार्थी कृत्रिम अंगों के साथ-साथ सहायक उपकरण भी बनाना सीख रहे हैं।
विद्यार्थियों का दल :
रानी यादव, कुमुद श्रीवास्तव, कुमारी पूनम, अविनाश वर्मा, कुलदीप, गुलशन, नरेंद्र, अंशु, चंद्रेश, अपूर्वा, सृष्टि, अनामिका और रिदिमा। सीख रहे ये काम :
मरीज की हिस्ट्री लेना, असेसमेंट, मेजरमेंट, कास्टिंग, नोटिफिकेशन, पैडिंग, मोडीफिकेशन, लैमिनेशन, ट्रायल, फाइनल प्रोसीजर। यहा लगती ड्यूटी:
- प्रोस्थेटिक्स (कृत्रिम अंग)
- आथरेटिक्स (सहायक उपकरण)
- लेदर सेक्शन (शूज, बेस्ट आदि)
- बीके सॉकेट (घुटने के नीचे का कृत्रिम अंग)
- एके सॉकेट (घुटने के ऊपर का कृत्रिम अंग)
- नी ब्रेस
- शू मोडिफिकेशन
- हैंड स्पि्लंट
- कैलिपर
- स्पाइनल ब्रेस
- सर्जिकल ब्रेस