Sita Jayanti: जन्मोत्सव के उल्लास में अयोध्या सीतामय, हजारों मंदिरों में बजेगी घंटा-घडिय़ाल की सामूहिक धुन
अयोध्या में श्री राम की तरह ही मां सीता का भी मनाया जाता है जन्मोत्सव। अयोध्या की पहचान श्रीराम से है लेकिन यहां के मानस पटल पर मां सीता से जुड़ी स्मृतियों को भी संजोकर रखा गया है।
अयोध्या, [रघुवरशरण]। राम नवमी के बाद अयोध्या में अब सीता नवमी मनाने का उत्साह उछाह मार रहा है। अयोध्या में चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान राम का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है तो इसके ठीक एक माह बाद वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को मां सीता का जन्मदिन मनाने की भी प्राचीन परंपरा है।
अयोध्या की पहचान श्रीराम से है, लेकिन यहां के मानस पटल पर मां सीता से जुड़ी स्मृतियों को भी भावपूर्वक संजोकर रखा गया है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से राम जन्मोत्सव की खुशी में बधाई गान की प्रस्तुति होती है, तो वैशाख शुक्ल प्रतिपदा से सीता जन्मोत्सव की भी खुशी बधाई गान से बयां होती है। नवमी को मध्याह्न 12 बजे सीता जन्मोत्सव की रस्म ठीक राम जन्मोत्सव की तर्ज पर निभाई जाती है। मध्याह्न एक साथ नगरी के हजारों मंदिरों में आरती और घंटा-घडिय़ाल की सामूहिक धुन से सीता के प्राकट््योत्सव की उद्घोषणा होती है।
मां सीता के प्रति चरम अनुरागी है अयोध्या : समूचे अवध में श्रीराम के साथ मां सीता का विग्रह अनिवार्य रूप से रहता है। रामनगरी में जनकनंदिनी की विरासत दशरथमहल, रामवल्लभाकुंज, जानकीमहल के जिक्र बिना अधूरी है। दशरथमहल के संस्थापक स्वामी रामप्रसादाचार्य के बारे में मान्यता है कि मां जानकी ने प्रत्यक्ष होकर उन्हें टीका लगाया था। रामवल्लभाकुंज अपने नाम से ही मां सीता के प्रति समर्पित है।
जानकीमहल के संस्थापक मोहन बाबू थे। यूं तो उनकी एक अन्य पुत्री भी थी, पर उपासना के तल पर वे सीता को पुत्री मानते थे। उन्होंने आठ दशक पूर्व देवरिया तथा बिहार के विभिन्न हिस्सों में अपने भरे-पूरे कारोबार का परित्याग कर अयोध्या में जानकीमहल की स्थापना की।
इस परंपरा का मां सीता से है प्रगाढ़ सरोकार : रामानंदीय वैष्णव परंपरा की उपधारा रसिक उपासना परंपरा का भी मां सीता से प्रगाढ़ सरोकार है। इस परंपरा में श्रद्धालु सीता के सखि भाव से श्रीराम की उपासना करते हैं। रसिक परंपरा की शीर्ष पीठ लक्ष्मणकिला के महंत मैथिलीरमणशरण के अनुसार यह समर्पण की चरम भावदशा है।