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'प्रेम' के गुलशन में महक रहा वतन, 150 से ज्यादा प्रजाति के पेड़ पौधों का एक बाग

हरदोई के बागवान प्रेमकांत ने एक बाग में लगा रखे हैं देश के 150 से ज्यादा विभिन्न प्रांतों के पेड़-पौधे।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 19 Jul 2020 10:38 AM (IST)Updated: Sun, 19 Jul 2020 10:38 AM (IST)
'प्रेम' के गुलशन में महक रहा वतन, 150 से ज्यादा प्रजाति के पेड़ पौधों का एक बाग

हरदोई [पंकज मिश्रा]। बागवानी के शौकीन बहुत होंगे, पर हरदोई के विक्टोरियांगंज निवासी प्रेमकांत का शौक अलहदा है। देश के तमाम इलाकों के खास पौधे लगाना उनका शगल है। इसे वह पूरे शिद्दत से पूरा कर रहे हैं। इसके चलते अब प्रेम के गुलशन में पूरा वतन महक रहा है। उनकी बगिया में विभिन्न प्रांतों के 150 से ज्यादा प्रजातियों के पेड़-पौधे हैं।

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कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक की खुशबू समेटे किराना व्यापारी प्रेमकांत कुशवाहा के बाग ने न सिर्फ उन्हें बल्कि उनके गांव को नई पहचान दी है। अब दूर-दूर से लोग उनके बाग को देखने आते हैं। जब प्रेमकांत उन्हें अलग-अलग तरह के पेड़-पौधों को दिखाते हुए उनका नाम गिनाते हैं तो लोग चकित हो जाते हैं। एक ही बाग में कागजी सेब, बादाम, पिस्ता, अलूचा, आलूबुखारा, चेरी, मौसम्बी, लीची, माल्टा, चकोतरा, लाल अंगूर, अंजीर, चीकू, नाग, सरीफा, लौंग, बबबुगोसा, खुबानी, दालचीनी, तेेजपत्ता, अखरोट, आम काला, काफी, चंदन, मीठी इमली, अन्नास, सिंदूर, मिक्स मसाला, रबड़, लीची, नारियल, खजूर, रुद्राक्ष, हींग आदि के पेड़-पौधे देखना कभी न भूलने वाला अनुभव होता है। इस बगिया में रामदरबार भी है। जहां पर रामफल, सीताफल, लक्ष्मणफल और हनुमानफल का फल चखा जा सकता है। प्रेमकांत इन फलों का व्यापार नहीं करते, बल्कि बाग देखने आने वालों को इन्हें भेंट कर देते हैं।

विरासत में मिली बागवानी

पेड़-पौधों से प्यार प्रेमकांत के संस्कारों में है। पिता लज्जाराम कुशवाहा जहां कहीं जाते, वहां का खास पौधा लाकर बाग में लगाते। 2004 में पिता के निधन के बाद प्रेमकांत ने उनकी विरासत संभाली और गांव में चार बीघा में बाग तैयार करने में जुट गए। 2014 में प्रेमकांत के जेहन में बाग को खास बनाने का ख्याल आया। उन्होंने देश-विदेश का हर पौधा बाग में लगाने का मन बनाया।

ट्रक चालकों की ली मदद

किताबों और इंटरनेट से प्रेमकांत ने पौधों को खोजना शुरू किया। देश के कोने-कोने से पौधा मंगाने के लिए प्रेमकांत ने ट्रक चालकों का सहयोग लिया। पौधों की कीमत के अलावा पांच सौ से एक हजार रुपये देकर विभिन्न प्रांतों से वहां के खास पौधे मंगाकर लगाए। छह साल की मेहनत के बाग अब उनका खास बाग आबाद है।

बागबां प्रेमकांत कुशवाहा ने बताया कि मौसम का पेड़-पौधों पर असर पड़ता है। जैसे कोको, चीकू, जायफल आदि में फल तो आते हैं, लेकिन सर्दी शुरू होते ही गिर जाते हैं। मौसम और रखरखाव को लेकर विशेषज्ञों से जानकारी लेता रहता हूं। पेड़-पौधों की सुरक्षा के लिए जो भी उचित प्रबंध होता करता हूं।

जिला उद्यान अधिकारी डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि बाग में हर प्रजाति के पेेड़-पौधे मौजूद हैं। उद्यान विभाग की टीम ने खुद बाग देखा है। किसी व्यक्ति को पेड़-पौधों की कितनी भी प्रजातियां याद होंगी, वो सभी यहां मौजूद हैं। एक ही स्थान पर इतनी प्रजातियों के पेड़-पौधे सहेजना अनोखा और सराहनीय है।


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