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सौ साल में बसा ये शहर: माय सिटी माय प्राइड, विश्व गुरु से विश्व प्रबंधक तो बने हम पर सर्वशिक्षित होना अब भी शेष है!

निश्चित रूप से भारत में साक्षरता का स्तर काफी बढ़ा है और शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार देखा गया है। देश में प्रबंधन और तकनीकी शिक्षा के लिए आईआईटी-आईआईएम जैसे संस्थानों को तेजी से खोला जा रहा है। इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों की संख्या को काफी बढ़ाया गया है।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Thu, 05 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 27 May 2019 06:35 PM (IST)
सौ साल में बसा ये शहर: माय सिटी माय प्राइड, विश्व गुरु से विश्व प्रबंधक तो बने हम पर सर्वशिक्षित होना अब भी शेष है!

नई दिल्ली (राजेश उपाध्याय)। नालंदा-तक्षशिला जैसे विख्यात ज्ञान केंद्रों की बदौलत कभी विश्वगुरु का रुतबा रखने वाला भारत शिक्षा की बदौलत ही अब फिर धाक जमा रहा है। पूरी दुनिया के हर बड़े संस्थानों में भारतीय बड़े ओहदों पर कार्यरत हैं। हम विश्वगुरु से विश्व प्रबंधक तो बन गए, लेकिन सबके लिए शिक्षा और रोजगार आज भी सबसे बड़ी चुनौती है।

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भारत में दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले ज्यादा युवा हैं, जिनको शिक्षित और प्रशिक्षित करके देश-दुनिया के विकास में उनका योगदान बढ़ाया जा सकता है। एक बेहतर इंसान ही बेहतर राष्ट्र का निर्माण करता है और बेहतर इंसान के निर्माण की बुनियाद शिक्षा है।

निश्चित रूप से भारत में साक्षरता का स्तर काफी बढ़ा है और शिक्षा की गुणवत्ता में भी सुधार देखा गया है। देश में प्रबंधन और तकनीकी शिक्षा के लिए आईआईटी-आईआईएम जैसे संस्थानों को तेजी से खोला जा रहा है। इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों की संख्या को काफी बढ़ाया गया है।

कई राज्यों में एम्स जैसे विश्वस्तरीय चिकित्सा संस्थानों की स्थापना की गई है। लेकिन अब भी क्वालिटी एजुकेशन और प्रशिक्षण को लेकर हमारे सामने कुछ बड़ी चुनौतियां हैं। निजी-सरकारी क्षेत्र में ऐसे अनेक संस्थान हैं, जिनमें बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर की समस्या है। वहां शिक्षकों की कमी है या उनकी योग्यता पर सवाल उठते हैं।

शिक्षा आम तौर पर किंडर गार्डन, प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय और फिर कॉलेज- विश्वविद्यालय जैसे औपचारिक भागों में विभाजित होती है। प्राइमरी एजुकेशन ऐसा क्षेत्र है जहां पर सबसे ज्यादा काम करने की जरूरत है। इस समय देश के कई राज्यों में शिक्षक और छात्र अनुपात बहुत कम है। देश के कई राज्यों में 60 बच्चों पर एक शिक्षक है जो कि मानक से काफी कम है।

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आर्थिक विकास में शिक्षा की मुख्य भूमिका है। शिक्षा व्यक्ति के जीवन में बड़ा परिवर्तन लाती है, जिसमें यदि उनकी शुरुआती शिक्षा पर ध्यान दिया जाए तो वे देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने में योगदान देते हैं। इसका सकारात्मक असर समाज-परिवार पर होता है। इसीलिए बेहतर शिक्षा व्यवस्था सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारियों में है।

इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कदम दिख भी रहे हैं। सरकार प्राइमरी शिक्षा की स्थिति में सुधार करने के लिए शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून लेकर आई है। इससे कक्षा आठ तक नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देश के हर बच्चे को प्राप्त हो सकेगी।

इसके अनुसार, 30 बच्चों पर एक शिक्षक का अनुपात होना चाहिए। इस कानून के सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नए स्कूल खुले हैं और प्राइमरी विद्यालयों में बच्चों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। खासतौर पर लड़कियों की संख्या में।

सरकार ने ‘सबको शिक्षा, अच्छी शिक्षा’ का संकल्प लिया है। इसी को ध्यान में रखते हुए नीतियां बनाई जा रही है। यह एक क्षेत्र है, जिसमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्र को मिल कर काम करना होगा। अच्छे शिक्षक तैयार करने होंगे, जो अच्छे चरित्र, ज्ञान और पेशेवर दक्षता वाले इंसान तैयार कर सकें।

अब आप बताएं, आपके शहर में शिक्षा व्यवस्था के क्या हाल हैं? इससे जुड़े कुछ सवाल आपके सामने हैं। देखिए, आपका शहर इन मानकों पर कहाँ ठहरता है ?

1. आप अपने शहर में स्कूलों की उपलब्धता को कैसा मानते हैं?

2. आप अपने शहर के स्कूल को शिक्षकों की उपलब्धता के लिहाज से कैसा मानते हैं?

3. सरकारी कॉलेज/विश्वविद्यालय की शिक्षा गुणवत्ता को आप कैसा मानते हैं?
4. सरकारी कॉलेज/विश्वविद्यालय की संकाय गुणवत्ता को आप कैसा मानते हैं?
5. छात्र और शिक्षक के अनुपात को आप अपने शहर में कैसा मानते हैं?
6. क्या आप मानते हैं कि आपके शहर के स्कूल और कॉलेज में खेलों के प्रशिक्षण की पर्याप्त सुविधा है?
7. आपके शहर के कॉलेज कैम्पस कितने सुरक्षित, जीवंत और कॉस्मोपॉलिटन हैं।
8. आप अपने शहर के सरकारी स्कूलों की सफाई व्यवस्था को कैसा मानते हैं?
9. उच्च अध्ययन के लिए आप अपने शहर में उन्नत पाठ्यक्रमों और कॉलेजों की उपलब्धता को कैसा मानते हैं?

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