लखनऊ की रेनू ने छेड़ रखी है महिलाओं के शोषण के खिलाफ जंग
आधी आबादी को बराबरी का दर्जा देने की महज बात हो रही है लेकिन अकेली महिला को सड़क पर देखकर लोगों की सोच बदल जाती है।
स्वतंत्रता का अधिकार हर व्यक्ति को मिला है। सभी अपने हिसाब से जिंदगी जी भी रहे हैं, लेकिन समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो दूसरों की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। राजधानी की रेनू मिश्रा खुद महिला होने के नाते महिलाओं की पीड़ा बखूबी समझती हैं। इसीलिए उन्होंने महिलाओं के शोषण के विरुद्ध जंग छेड़ी है। वह शोषित नारियों को मुफ्त में कानूनी सलाह देती हैं और उनके अधिकारों की लड़ाई न्यायालय में लड़ती भी हैं। उनका मकसद है कि आधी आबादी को सम्मान के साथ पूरी सुरक्षा भी मिले।
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आलमबाग निवासी रेनू मिश्रा महिलाओं के अधिकारों को लेकर सजग रही हैं। बचपन से युवा होने तक उन्होंने नारियों का उत्पीडऩ करीब से देखा, पर खुद भी उत्पीडऩ का शिकार हुईं तो सबक मिल गया। उत्पीडऩ करने वालों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए किसी सहारे की जरूरत थी।
ऐसे में 2002 में एसोसिएशन फॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनीसिएटिव (आली) से जुड़ीं, लेकिन कानूनी जानकारी न होने के चलते शोषण के विरुद्ध लड़ाई में सक्रिय नहीं हो पाईं। तब वर्ष 2007 में एलएलबी किया और बार काउंसिल से पंजीयन कराने के बाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में प्रैक्टिस शुरू की। इसके साथ ही 'आली' के कार्यकारी निदेशक का पदभार भी संभाला। तब से शोषित महिलाओं की लड़ाई लड़कर उन्हें अधिकार और सम्मान दिला रही हैं।
शोषित महिलाओं की मदद को चला रहीं अभियान
संविधान में समानता का अधिकार तो है, लेकिन बच्चों व महिलाओं का एक बड़ा तबका अब भी खुद के वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। आधी आबादी को बराबरी का दर्जा देने की महज बात हो रही है, लेकिन अकेली महिला को सड़क पर देखकर लोगों की सोच बदल जाती है। न्याय की आस में दर-दर भटक रहीं महिलाओं की मदद के लिए रेनू दस वर्षों से अभियान चला रही हैं। फैमिली कोर्ट में सुविधाओं का अभाव देखकर रेनू ने आवाज उठाई, जिसके बाद वहां में सुधार किया गया।
हक की आवाज उठाना चाहती हूं
महिला होने के नाते मैं महिलाओं की पीड़ा समझती हूं। नारी का जब शोषण होता है तो वह दिलोदिमाग से टूट जाती है। आस-पास की महिलाओं का उत्पीडऩ होते देखा तो उनकी मदद के लिए आवाज उठाई। 'आली' के साथ जुड़कर मैं आधी आबादी के हक की लड़ाई लड़ रही हूं। इसके लिए मुझे वर्ष 2015 में प्रदेश सरकार द्वारा महिला सुरक्षा सम्मान भी दिया था।
-रेनू मिश्रा, कार्यकारी निदेशक, 'आली'
आली से मिला सहारा
परिवार में मेरे साथ वह सब हुआ जो एक सभ्य महिला पसंद नहीं करेगी। मैं उत्पीडऩ से मानसिक रूप से टूट चुकी थी। ऐसे में 'आली' ने सहारा दिया। रेनू ने मुझे मुफ्त में कानूनी सलाह दी और न्यायालय तक मेरी लड़ाई लड़ी। आज मैं परिवार से अलग रहकर सम्मान से जीवन यापन कर रही हूं।
- घरेलू उत्पीडऩ की शिकार महिला।
दस हजार महिलाओं को दिलाया सम्मान और सुरक्षा
रेनू जिस संस्था 'आली' से जुड़ी हैं, उसमें केवल महिलाएं हैं, जो महिलाओं के हित में कार्य कर रही है। वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने 'आली' के प्रार्थना पत्र पर विवाह के चयन में अधिकार सुनिश्चित करने का निर्णय दिया था। इंदिरानगर निवासी एक युवती को उसके परिजनों द्वारा प्रताडि़त करने का मामला संज्ञान में आने के बाद रेनू ने युवती को न केवल आजाद कराया बल्कि उसे न्याय भी दिलवाया।
वह महिलाओं को गतिशीलता का अधिकार दिलाने के पक्ष में हैं और उनके अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं। अभी तक दस हजार से ज्यादा मामलों में महिलाओं व बच्चों को न्याय दिला चुकी हैं।
हर मोड़ पर मिलीं चुनौतियां
महिलाओं के अधिकारों को लेकर जब-जब रेनू ने आवाज उठाई, कोई न कोई परेशानी अवश्य सामने आ गई। वह बताती हैं कि शहर में एक चचेरे भाई द्वारा बहन से दुष्कर्म के मामले में आरोपी को सलाखों के पीछे पहुंचाने में बहुत पापड़ बेलने पड़े। बड़ी मुश्किल से साक्ष्य जुटाया और आरोपी को न्यायालय में खड़ा किया। आखिरकार युवती को न्याय दिलाने में कामयाब रहीं। ऐसे घटनाक्रम अक्सर सामने आते हैं।
ये हो तो बने बात
-सरकार लोगों के संवैधानिक हितों की रक्षा करे। इसके लिए कानूनी विशेषज्ञों का सहायता प्रकोष्ठ गठित किया जा सकता है।
- यदि लोग जागरूक होंगे तो अपराध करने से डरेंगे। इसके लिए लोगों को कानून की जानकारी देने का अभियान चलाया जाए।
-सरकार अक्सर नए कानून अमल में लाती है। विधि विशेषज्ञों के अलावा आम लोगों को भी इसके बारे में बताया जाए।
-महिलाओं के केस में पुलिस का रवैया संवदेनशील होना चाहिए। इसके लिए पुलिस को विशेष प्रशिक्षण दिलाया जाए।
-महिलाओं के उत्पीडऩ में शीघ्र जांच व कार्रवाई नहीं हो पाती। इस व्यवस्था को सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
-बाल अपराध बढ़ रहे हैं। ऐसे में आरोपी बच्चों की विशेष काउंसिलिंग कराई जाए।
- स्कूलों में बच्चों को अपराध करने पर उसके दंड के बारे में कराया जाना चाहिए। यह शिक्षा में भी शामिल हो।
-अपराधियों को दंड देने के साथ उन्हें उनके अपराधों का एहसास भी कराया जाना चाहिए। ताकि फिर ऐसे काम न करें।
-रेनू मिश्रा
(कार्यकारी निदेशक, 'आली')
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