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अन्नपूर्णा यज्ञ में आहुति दे रहे लखनऊ के बाशिंदे, बर्बाद खाने के लिए छेड़ी है मुहिम

अनुराधा बताती हैं कि पहले महीने में एक बार खिचड़ी का वितरण किया जाता था, लेकिन लोगों का सहयोग बढ़ा तो अब माह में दो बार अन्नपूर्णा खिचड़ी वितरित की जा रही है।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 11 Sep 2018 06:00 AM (IST)
 अन्नपूर्णा यज्ञ में आहुति दे रहे लखनऊ के बाशिंदे, बर्बाद खाने के लिए छेड़ी है मुहिम

जागरण संवाददाता, लखनऊ।

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विवाह समारोह या अन्य किसी उत्सव पार्टी में बचा हुआ खाना न जाने कितने भूखे लोगों का पेट भर सकता है। बावजूद इसके पढ़े-लिखे लोग खाना बर्बाद करने से बाज नहीं आते। बड़ी चुनौती है यह कि कैसे इन लोगों को खाने का महत्व समझाया जाए और भोजन बर्बाद करने की आदत छुड़ाई जा सके। इस चुनौती को स्वीकार किया है राजधानी में पृथ्वी इनोवेशन संस्था की अनुराधा गुप्ता ने।

अनुराधा न केवल लोगों को भोजन की बर्बादी रोकने के लिए जागरूक कर रही हैं, बल्कि दाल-चावल का दान लेकर पौष्टिक अन्नपूर्णा खिचड़ी बनाकर गरीबों में वितरित करती हैं। उनकी टीम विभिन्न अवसरों पर लोगों को उनकी प्लेट में छोड़े गए भोजन को दिखाकर यह अहसास कराती है कि भोजन न बर्बाद करें और जितना खाना हो उतना ही परोसें।

इसी क्रम में इन्होंने अन्नपूर्णा यज्ञ, अन्नपूर्णा कोष और अन्नपूर्णा रसोई की शुरुआत की है। अनुराधा बताती हैं कि अन्नपूर्णा यज्ञ में लोग एक मुठ्ठी चावल या दाल का दान देते हैं। दान किए गए दाल-चावल को एकत्र कर उसमें सब्जियां डालकर अन्नपूर्णा रसोई में पौष्टिक 'अन्नपूर्णा खिचड़ी' तैयार की जाती है। अन्नपूर्णा खिचड़ी को मलिन बस्तियों में गरीब बच्चों और लोगों में वितरित किया जाता है।

माह में दो बार होता है खिचड़ी वितरण
अनुराधा बताती हैं कि पहले महीने में एक बार खिचड़ी का वितरण किया जाता था, लेकिन लोगों का सहयोग बढ़ा तो अब माह में दो बार अन्नपूर्णा खिचड़ी वितरित की जा रही है। दरअसल, यह प्रयास उन लोगों के लिए है जो थाली में भोजन बर्बाद करते हैं। उन्हें इस बात का अहसास कराया जा सके कि एक तरफ तो भोजन फेंका जा रहा है, वहीं दूसरी ओर न जाने कितने लोग ऐसे हैं जो भूखे पेट सोने को मजबूर हैं।

यही नहीं, लोग दाल-चावल दान कर सकें इसलिए संस्था ने मोबाइल अनाज बैंक की भी शुरुआत की है। पृथ्वी इनोवेशन का कार्यालय आइआइएम रोड स्थित एल्डिको टाउन में है। यहां भी कई लोग मदद के लिए संपर्क करते हैं।

बच्चे भी कर रहे सहयोग
इस काम में पृथ्वी मित्रों के अलावा विभिन्न स्कूलों के बच्चे भी सहयोग कर रहे हैं। इस काम में नोएल और उनकी टीम के अलावा कई समाजसेवियों का भी उल्लेखनीय सहयोग प्राप्त हो रहा है। हर महीने 45 किलो से ज्यादा खिचड़ी तैयार की जाती है। इसका वितरण मुख्य रूप से घैला पुल के पास स्थित नट बस्ती और जानकीपुरम में लखनऊ विवि के द्वितीय परिसर के पास स्थित बस्ती में किया जाता है।

संस्था में निशा भार्गव, नमिता श्रीवास्तव, एस. शुभम, अभिषेक, सूरज, जूली, रुचि, रुख़साना, विशाल सहित कई युवा स्वयंसेवक मदद करते हैं। सबका मानना है कि अन्नपूर्णा रसोई में तैयार खिचड़ी सिर्फ मुठ्ठी भर अनाज से तैयार खाद्य पदार्थ ही नहीं बल्कि शरीर और आत्मा के लिए एक अच्छा आहार है। यह आहार प्यार, दयालुता और मानवता का एक सुंदर सेतु बनाता है और हमें किसी भी कारण से भोजन बर्बाद न करने की याद दिलाता है।

अनाज का सम्मान करने की देते हैं शिक्षा
अन्नपूर्णा रसोई के माध्यम से केवल भोजन ही नहीं वितरित किया जाता, बल्कि बच्चों को भोजन से पहले छोटी प्रार्थना करने में भी मदद करते हैं। साथ ही उन्हें अन्नपूर्णा देवी के बारे में बताकर भोजन को बर्बाद न करने और अनाज का सम्मान करने की शिक्षा भी दी जाती है। इसके अलावा भोजन, स्थानीय खाद्य संस्कृति से जुड़े किस्से और दिलचस्प कहानियां भी साझा की जाती हैं। बच्चों को हाथ धोने, नाखून काटने आदि के माध्यम से स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में भी शिक्षित करते हैं।


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