तीन तलाक बिल के खिलाफ देवबंद के मौलाना, पीडि़तों ने किया स्वागत
तीन तलाक बिल का जहां पीडि़त महिलाओं ने स्वागत किया है वहीं उसका विरोध भी हो रहा है। दारुल उलूम व उलमा ने भी इसकी मुखालफत की है।
लखनऊ, जेएनएन। लोकसभा में कल हंगामे के बीच पेश तीन तलाक बिल का जहां पीडि़त महिलाओं ने स्वागत किया है, वहीं उसका विरोध भी हो रहा है। दारुल उलूम व उलमा ने भी इसकी मुखालफत की है।
तीन तलाक बिल कल एक बार फिर भारी बहस के बीच संसद में पेश हुआ। विपक्ष ने विरोध करते हुए इसे संविधान के खिलाफ बताया। दारुल उलूम व उलमा ने भी इसकी मुखालफत की है। दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने कहा कि तीन तलाक शरीयत व इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है। ऐसे में इस मसले को उलमा के ही हवाले कर देना चाहिए। इस पर कोई भी कानून शरीयत में दखलंदाजी है। देवबंद के मौलानाओं को मोदी का यह तीन तलाक कानून रास नहीं आ रहा है। देवबंद के मुफ्ती असद ने मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए इल्जाम लगाया कि यह सरकार अल्पसंख्यकों को टारगेट करना चाहती है। मुफ्ती असद ने कहा कि देश के सामने हजारों दूसरी समस्याएं हैं लेकिन ऐसी क्या वजह है कि सरकार में आते ही दस दिन के भीतर मोदी सरकार सबसे पहले तीन तलाक बिल ही पेश कर रही है। मुफ्ती असद ने यहां तक कह दिया कि इस बिल के पास होने के बावजूद भी जो मुसलमान शरीयत कानून में भरोसा रखते हैं और हो सकता है कि कानून को नहीं मानें। देवबंद के मौलाना कारी राव साजिद ने कहा कि उन्हें इस कानून से दिक्कत नहीं है बशर्ते सरकार मसौदा लाने के पहले तमाम उलेमाओं, मौलानाओं और इस्लाम के जानकारों के साथ इस मसले पर विस्तृत चर्चा करें और सब को साथ ले। देवबंद के मौलाना शाह आलम ने यहां तक कह दिया कि तीन तलाक से पीडि़त महिलाएं महज पांच फीसदी भी नहीं हैं जो तीन तलाक की खिलाफत करती हैं जबकि 95 फीसदी मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक का समर्थन करती हैं। देवबंद के एडवोकेट तहसीन खान ने कहा कि उन्हें इस कानून में तीन वर्ष की जेल के प्रावधान पर ऐतराज है क्योंकि अगर शौहर को जेल हो गई तो पत्नी को जुर्माना या भत्ता कौन देगा ऐसे में सरकार को इस कानून में बदलाव करते हुए पीडि़त महिलाओं के लिए वित्तीय मदद का प्रावधान जरूर रखना चाहिए। देश के संविधान ने सभी को अपने धर्म के मुताबिक जीवन गुजारने की आजादी दी है, लिहाजा यह हस्तक्षेप बेजा है। दारुल उलूम वक्फ के शेखुल हदीस एवं तंजीम उलमा-ए-ङ्क्षहद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अहमद खिजर शाह मसूदी ने कहा कि तीन तलाक को बेवजह मुद्दा बनाया जा रहा है। अन्य धर्मों के मुकाबले मुस्लिम समाज में तलाक का अनुपात बेहद कम है। आल इंडिया अलकुरान फाउंडेशन के अध्यक्ष मौलाना नदीमुल वाजदी ने कहा कि दीनी मसलों को आलिमों पर ही छोड़ देना चाहिए।
तीन तलाक में सजा के प्रावधान के खिलाफ है एएमयू बिरादरी
लोकसभा में पेश बहुचर्चित तीन तलाक बिल को लेकर एएमयू से जुड़े बुद्धजीवियों का मानना है कि यह सजा परिवार जोडऩे की बजाय तोडऩे का काम करेगी। सुन्नी थियोलॉजी के डॉ. मुफ्ती जाहिद अली खान का कहना है कि यह महिला विरोधी कानून है। तीन साल की सजा बहुत है। विधि विभाग के पूर्व डीन व मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पूर्व सदस्य प्रो. मोहम्मद शब्बीर ने बताया कि मोदी सरकार तीन तलाक में सुधार की भले ही बात करे, लेकिन इसमें फौजदारी की दफाएं शामिल करना गलत है। इसका हम विरोध करते हैं। सुन्नी थियोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर रेहान अख्तर का कहना था कि इस कानून के तहत मर्द अगर जेल चला जाएगा तो उसकी बीवी बच्चों की देखभाल कौन करेगा। इसके चलते ही पहले दिन से मांग की जा रही है कि सजा को हटाया जाए।
बिल पर जताई खुशी
देवबंद की रहने वाली जिस रेशमा को उसके शौहर ने व्हाट्सएप के जरिए तीन तलाक दे दिया था उसने इस बिल के संसद में दोबारा पेश होने पर खुशी जताते हुए कहा कि मुझे उम्मीद है इस कानून के बाद मेरे जैसी कई महिलाओं को इंसाफ मिलेगा और उन शौहरों को सजा होगी जो हमें बीच मझधार में छोड़ कर चले जाते हैं। रेशमा जैसी कई पीडि़तों के लिए इंसाफ की लड़ाई लडऩे वाली रशीदा और फरजाना ने भी तीन तलाक कानून पर खुशी जताई है। फरजाना ने कहा कि इस कानून के बाद मर्दों में डर बना रहेगा, जिससे तीन तलाक के मसले बेहद कम हो जाएंगे। तीन तलाक की पीडि़त महिलाओं के लिए आवाज उठाने वाली रशीदा का कहना है ज्यादातर महिलाएं समाज के डर से आवाज भी नहीं उठा पाती जबकि उनकी संख्या कहीं ज्यादा है।
संसद में नए सिरे से बिल पेश होने पर तीन तलाक पीडि़त महिलाओं और इसकी लड़ाई लडऩे वाली सामाजिक कार्यकर्ता निदा खान व फरहत नकवी ने खुशी जताई है। आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी की अध्यक्ष निदा खान ने कहा कि तीन तलाक पर सख्त कानून बने। यही हमारी मांग थी। इससे न सिर्फ तलाक की घटनाएं कम होंगी, महिलाओं को सम्मानजक जिंदगी भी मिलेगी। मेरा हक फाउंडेशन की अध्यक्ष फरहत नकवी ने कहा कि तीन तलाक का कानून बनने से इस लड़ाई में शामिल सभी महिलाओं को न्याय मिलेगा। तलाक के साथ हलाला पर भी रोक के लिए कानून बनाया जाए।
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