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अयोध्या में युगों बाद भी जीवंत है सीता-राम विवाह की स्मृति

रामनगरी में उसकी स्मृति युगों बाद भी जीवंत है। रामानुरागी संत प्रति वर्ष अगहन शुक्ल पंचमी के दिन सीता-राम विवाह का उत्सव पूरे भव और वैभव से मनाते हैं।

By Ashish MishraEdited By: Published: Fri, 02 Dec 2016 01:20 PM (IST)Updated: Fri, 02 Dec 2016 01:27 PM (IST)

अयोध्या [रघुवरशरण] । मां सीता एवं भगवान राम का विवाह त्रेता में हुआ था पर रामनगरी में उसकी स्मृति युगों बाद भी जीवंत है। रामानुरागी संत प्रति वर्ष अगहन शुक्ल पंचमी के दिन सीता-राम विवाह का उत्सव पूरे भव और वैभव से मनाते हैं। इस मौके पर अवध एवं मिथिला की लोक संस्कृति के अनुरूप विवाह की सभी रस्में होती हैं। विवाह का मंडप सजता है, माड़व गड़ता है, तिलक चढ़ता है, बरात निकलती है, द्वारचार के उपरांत सप्तपदी और कलेवा होता है।

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रामनगरी में ऐसा करने वाले संतों की भरी-पूरी धारा है, जिन्हें रसिक अथवा मधुर उपासना परंपरा का माना जाता है। वे मां सीता के बिना आराध्य राम की कल्पना भी नहीं करते और ऐसे में सीता-राम विवाह की स्मृति उनके लिए पूरी गहनता से अक्षुण है। युवा रामकथा मर्मज्ञ आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण के अनुसार यह मात्र परंपरा का पालन ही नहीं है, बल्कि सीता-राम विवाहोत्सव में अपूर्व तात्विकता भी निहित है। संतों की मान्यता है कि सीता-राम विवाह भक्ति का भगवान से परिणय है। वे विवाहोत्सव की स्मृति के साथ भगवान से अपने संबंधों को पुष्ट करते हैं।

ऐसी कोशिश कितनी व्यापक एवं समर्पण की मिसाल होती है, इसके लिए रामकथा के अप्रतिम वक्ता माने जाने वाले स्वर्गवासी लक्ष्मणकिलाधीश स्वामी सीतारामशरण का उदाहरण समीचीन है। यद्यपि किला की परंपरा के अनुरूप वे प्रत्येक वर्ष राम विवाहोत्सव पूरे धूम-धाम से मनाया करते थे पर 1974 में एक ऐसा अवसर आया, जब उन्होंने राम विवाह को वास्तविकता के करीब लाने के उद्देश्य से अयोध्या से मिथिला तक राम बरात निकालने का प्रबंध किया। बरात में दर्जनों वाहन और सैकड़ों श्रद्धालु शामिल हुए। मिथिला के एक प्रतिष्ठित मंदिर में बरात की ऐसी अगवानी की गई, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है।


राम विवाहोत्सव का जिक्र होने पर विअहुतिभवन का नाम बरबस उभरता है। करीब सात दशक पूर्व इस मंदिर की स्थापना वीतरागी संत रामशंकरशरणने की। जैसा कि नाम से ध्वनित है, उनके द्वारा स्थापित मंदिर सीताराम विवाहोत्सव के प्रति समर्पित रहा। आज भी यह परंपरा कायम है। विअहुति भवन में प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी के अवसर पर सीता-राम विवाहोत्सव की रस्म निभती है पर जिस माह की पंचमी के दिन सीता-राम विवाह हुआ, उस अवसर का कहना ही क्या। हजारों की संख्या में दूर-दराज तक के श्रद्धालु यहां विवाहोत्सव के साक्षी बनते हैं।

विभिन्न मंदिरों में भी सीता-राम विवाहोत्सव यादगार होता है। अगहन शुक्ल पक्ष पंचमी के हिसाब से इस बार राम विवाहोत्सव की तारीख चार दिसंबर को तय है। इस दिन दर्जन भर के करीब स्थानों से रामबरात निकलेगी, तो विवाह की रस्म का संपादन शुरू भी हो चुका है। हनुमानबाग एवं जानकीमहल में प्रात: रामार्चा पूजन एवं सायं विवाह गीत के साथ उत्सव का शुभारंभ हुआ। दशरथ महल में विवाह पर केंद्रित प्रवचन के साथ राम विवाह की लीला का भी मंचन संचालित हो रहा है।


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