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KGMU में रिसर्च पर लगा ब्रेक, अब अटके प्रोजेक्ट

एनिमल हाउस में पशु चिकित्सक का अभाव। हर वर्ष डीएम एमसीएच एमडी एमएस पीएचडी के चिकित्सक शोध करते हैं।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 13 Mar 2019 09:56 AM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2019 09:56 AM (IST)
KGMU में रिसर्च पर लगा ब्रेक, अब अटके प्रोजेक्ट
KGMU में रिसर्च पर लगा ब्रेक, अब अटके प्रोजेक्ट

लखनऊ [संदीप पांडेय]। केजीएमयू में एनिमल बेस्ड रिसर्च (जंतुओं पर शोध) पर रोक लग गई है। कारण, सीपीएसईए के नए मानकों को नजरंदाज करना है। ऐसे में शोधार्थियों के प्रोजेक्ट फंस गए हैं। अफसर समस्या से मुंह फेरे हुए हैं। केजीएमयू में 4400 बेड हैं। फैकल्टी 500 के करीब हैं। इनके अंडर में हर वर्ष डीएम, एमसीएच, एमडी, एमएस, पीएचडी के चिकित्सक शोध करते हैं। इसके लिए चिकित्सा छात्र ह्यूमन व एनिमल बेस्ड वर्क करते हैं। 

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वहीं, एक वर्ष से यहां पर वेटेरिनेरियंस (पशु चिकित्सक) नहीं है। उधर, एक फरवरी को केंद्र सरकार की पशुओं पर परीक्षण के नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण समिति (सीपीसीएसईए) ने नए नियम जारी कर दिए हैं। इसमें एनिमल हाउस में स्थाई या पूर्णकालिक पशु चिकित्सक की अनिवार्यता कर दी है। बगैर पशु चिकित्सक के एनिमल हाउस के लिए जंतु मुहैया कराने के साथ-साथ लैब में रिसर्च पर ही रोक है। ऐसे में तमाम शोधार्थियों के रिसर्च प्रोजेक्ट फंस गए हैं। उन्हें पशु चिकित्सक से क्लीयरेंस नहीं मिल पा रहा है। इस पर जिम्मेदार खामोश हैं।

जंतुओं का हेल्थ चेकअप रुका

जंतु लाने से पहले उन्हें सप्ताहभर आइसोलेशन में रखा जाता है। पशु चिकित्सक हेल्थ चेकअप कर उसे लैब में रिसर्च की अनुमति देता है। मगर चिकित्सक न होने से स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर नहीं मिल पा रही है। लैब में विस्टर, एसडी व सी-57बीसी चूहों पर प्रयोग किया जाता है।

क्या कहते हैं अफसर? 

केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह का कहना है कि पशु चिकित्सक की तैनाती को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं। जल्द ही समस्या का हल हो जाएगा। शोधार्थियों के फंसे रिसर्च प्रोजेक्ट को मंजूरी प्रदान की जाएगी।

एथिक्स कमेटी की बैठकें टलीं

केजीएमयू के एनिमल हाउस में पशु चिकित्सक के न होने से कई कार्य प्रभावित हो रहे हैं। इसके चलते इंस्टीट्यूशनल एनिमल एथिक्स कमेटी (आइईसी) की बैठक नहीं हो पा रही है। लिहाजा, शोधार्थियों के एनिमल बेस्ड रिसर्च प्रपोजल फंसे हुए हैं। इनके पास न होने से फंडिंग भी नहीं हो पा रही है। वहीं, पुराने छात्रों को एनओसी न मिलने से रिसर्च पेपर का पब्लिकेशन नहीं हो पा रहा है।


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