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शहर में घूम रहे कई फर्जी आर्मी अफसर, आए द‍िन सामने आ रहे नए मामले

यूनिटों की जगह बाजार में मिल रही है वर्दी। 1500 से 2500 में तैयार होती है वर्दी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 13 May 2019 10:36 AM (IST)Updated: Mon, 13 May 2019 04:44 PM (IST)
शहर में घूम रहे कई फर्जी आर्मी अफसर, आए द‍िन सामने आ रहे नए मामले
शहर में घूम रहे कई फर्जी आर्मी अफसर, आए द‍िन सामने आ रहे नए मामले

लखनऊ, जेएनएन। पिछले महीने 14 अप्रैल को ही हजरतगंज के एक मल्टीप्लेक्स में एक युवक फर्जी तरीके से सेना की वर्दी पहनकर फिल्म देखते धरा गया था। एक दारोगा पुत्र हर्ष विक्रम सिंह को पुलिस ने सेना और आइबी में भर्ती कराने के नाम पर पकड़ा। शहर में ऐसे कई युवक सेना की वर्दी पहन फर्जी अफसर बनकर घूम रहे हैं। शहर में आए दिन फर्जी रूप से सेना अफसर बनकर घूम रहे जालसाजों के मामले सामने आ रहे हैं।

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पिछले साल 24 अक्टूबर को फर्जी कर्नल बनकर जम्मू कश्मीर की एक युवती से शादी करने वाला अरविंद मिश्र भी पकड़ा गया था। वहीं चारबाग स्टेशन पर कैप्टन की वर्दी पहनकर घूम रहे सर्वेश कुमार को जीआरपी ने मिलिट्री पुलिस की मदद से पकड़ा था। दरअसल कैंट के अलावा चारबाग सहित कई स्थानों पर सेना की वर्दी और साजो सामान खुलेआम बिक रहे है, जिन पर रोक नहीं लग पा रही है।

नियम है कि जवानों और अफसरों को उनकी यूनिट में ही सैन्य वर्दी उपलब्ध कराई जाए। जहां वह कपड़ा लेकर उनकी सिलाई करा सके, लेकिन वर्दी की उपलब्धता और गुणवत्ता को लेकर कई बार शिकायत दर्ज करायी गई। इसके बाद तोपखाना में स्थानीय सैन्य प्रशासन ने कुछ दुकानों को सेना की वर्दी बेचने के लिए अधिकृत किया। हालांकि नियम यह है कि इन अधिकृत दुकानों पर जवानों को वर्दी का कपड़ा देते समय उनकी आईडी लेकर उसका रिकॉर्ड बनाया जाए। यह रिकॉर्ड समय समय पर स्थानीय सैन्य प्रशासन को उपलब्ध कराया जाए। इसके बावजूद सदर बाजार और अन्य इलाकों में यह वर्दी खुलेआम बिक रही है। इनका कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जा रहा है।

वर्दी का कपड़ा लेकर उसे सिलाने पर 1500 से 2500 रुपये तक का खर्च आता है, जबकि बैज, टोपी, बेल्ट, जूते व रिबन सहित अन्य सामान भी 400 से 500 रुपये में मिल जाता है। पिछले साल सैन्य प्रशासन ने कैंट में ही खुलेआम बिक रही वर्दी की बिक्री पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे, जिस पर अभी तक अमल नहीं हो सका है। 

फर्जी लेफ्टिनेंट बनकर बेरोजगारों को सेना और खुफिया विभाग में नौकरी दिलाने तथा आर्मी मेडिकल कॉलेज में दाखिले के नाम पर झांसा देकर लाखों की ठगी करने वाले दारोगा पुत्र हर्षवर्धन सिंह को पुलिस ने रविवार को गिरफ्तार कर लिया। आरोपित जालसाज को साइबर क्राइम सेल और विभूतिखंड थाने की संयुक्त टीम ने दबोचा। 

पहले खुद हुआ ठगी का शिकार फिर शुरू कर दिया ठगना 

इंस्पेक्टर विभूतिखंड राजीव द्विवेदी ने के मुताबिक पूछताछ में हर्षवर्धन सिंह ने बताया कि करीब दो साल पहले दिल्ली निवासी राठौर नाम के एक व्यक्ति से उसकी मुलाकात हुई थी। राठौर ने आर्मी मेडिकल कॉलेज में उसकी नौकरी लगवाने का झांसा दिया था। राठौर ने उससे ढाई लाख रुपये भी ले लिए थे। उसके बावजूद नौकरी नहीं लगवाई। राठौर ने रुपये भी नहीं वापस किए थे। खुद धोखा खाने के बाद हर्षवर्धन लोगों को रॉ, नेवी, खुफिया विभाग और आर्मी मेडिकल कॉलेज में नौकरी दिलाने के नाम पर ठगी करने लगा। 

तीन से पांच लाख तक करता था वसूली, धमकाता था पिता के नाम पर

साइबर क्राइम सेल के दारोगा राहुल राठौर के मुताबिक हर्षवर्धन के गिरोह में कई अन्य लोग भी शामिल हैं। गिरोह में कोई सेना का जवान बनकर बेरोजगारों को भ्रमित करता था तो कोई सैन्य अधिकारी बनकर। ये लोग प्रति व्यक्ति तीन से पांच लाख रुपये वसूलते थे। तय समय तक नौकरी न लगने पर जब पीडि़त रुपयों की मांग करते थे तो हर्षवर्धन अपने पिता के दारोगा होने का रौब दिखाकर फर्जी मामले में मुकदमा दर्ज कर जेल भिजवाने की धमकी देता था। इसके बावजूद अगर कोई व्यक्ति थाने जाने की बात कहता तो समझौता कर लेता था। 

दर्जनों बेरोजगारों को बनाया निशाना, खाते में मिले 10.50  लाख  

पुलिस की पूछताछ में पकड़े गए जालसाज ने बताया कि डेढ़ साल में उसने 30 से अधिक लोगों को ठगी का शिकार बनाया है। मिलिट्री इंटेलिजेंस और अभिसूचना में अभी तक पांच पीडि़त बेरोजगारों ने शिकायत की थी। उक्त पाचों का कहना है कि उन्होंने गिरोह को 10-10 लाख रुपये दिए थे। जांच टीम से जुड़े एक पुलिसकर्मी ने बताया कि आरोपित हर्षवर्धन के बैंक खाते में कुल साढ़े दस लाख रुपये मिले हैं।

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