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Republic Day 2021: कई दशक बाद भी लखनऊ की कई इमारतों में बाकी हैं आजादी के निशां

राजधानी में जंग-ए-आजादी का बिगुल फूंकने के लिए कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित हुआ था। 1916 में कांग्रेस के अधिवेशन में हिस्सा लेने पहली बार महात्मा गांधी राजधानी आए थे। चारबाग में महात्मा गांधी की पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात हुई थी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 26 Jan 2021 11:50 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jan 2021 11:50 AM (IST)
Republic Day 2021: कई दशक बाद भी लखनऊ की कई इमारतों में बाकी हैं आजादी के निशां
लखनऊ ने आजादी के आंदोलन में निभाई थी अहम भूमिका।

लखनऊ, जेएनएन। लखनऊ ने जिस तरह पहली जंग-ए-आजादी (स्वतंत्रता संग्राम) में भूमिका निभाई थी, उसी तरह आजादी की दूसरी निर्णायक जंग व आंदोलन में भी वह शामिल रहा। कई दशक बीतने के बावजूद आज भी शहर की कई इमारतों में आजादी के वो अक्स बाकी हैं। भले ही कई ऐतिहासिक स्थल समय के साथ गुम या धुंधले हो गए हों, लेकिन जो इमारतें कभी क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ हुआ करते थीं, वहां उनके निशान किसी न किसी रूप में अब भी मौजूद हैं। 

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गूंगे नवाब पार्क 

महात्मा गांधी आजादी के आंदोलन के तहत दूसरी बार आठ अगस्त 1921 को राजधानी आए थे और गूंगे नवाब पार्क में स्वदेशी का प्रचार किया था। गांधी ने स्वदेशी पर बल देते हुए कहा था कि हम लोग अपने देश में बनने वाली वस्तुओं का इस्तेमाल करेंगे तो अंग्रेजों के व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद होंगे। आर्थिक कमजोरी के साथ स्वदेशी मजबूती आएगी। उनके इस भाषण से प्रभावित होकर यहीं पर एक देशभक्त ने स्वदेशी के प्रचार के लिए गांधी को घड़ी भेंट की थी जिसे उन्होंने 100 रुपये में नीलाम कर दिया था। 

चारबाग स्टेशन

राजधानी में जंग-ए-आजादी का बिगुल फूंकने के लिए कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित हुआ था। 1916 में कांग्रेस के अधिवेशन में हिस्सा लेने पहली बार महात्मा गांधी राजधानी आए थे। चारबाग में महात्मा गांधी की पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात हुई थी। वर्तमान में लगा शिलापट उनके आने का गवाह है। उनकेस्वागत के लिए बाल गंगाधर तिलक के अलावा कई कांग्रेसी मौजूद थे। अधिवेशन के उपरांत राजधानी में नमक आंदोलन से लेकर असहयोग आंदोलन में तेजी आई।

अमीनाबाद पार्क 

जिस आजादी का सपना देशभक्तों ने देखा था उस आजादी की याद में अमीनाबाद पार्क में 26 जनवरी 1940 को स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था। अंग्रेजी हुकूमत की नाक के नीचे क्रांतिकारियों ने यहां तिरंगा फहराया था और आजादी की जंग को हवा दी थी। 15 अगस्त 1947 को यहां न केवल तिरंगा फहराया गया बल्कि आजादी के गीत भी गाए गए। आजादी के दिन झंडा फहराने के साथ ही 16 अगस्त 1947 को आम सभा भी हुई थी। आम सभा में उमड़ी भीड़ से चारों ओर जाम लग गया था। आजादी की पहली भीड़ लोगों को आजादी का एहसास करा रहा था। वर्तमान में भी पार्क मौजूद हैं जिसे झंडे वाले पार्क के नाम से जाना जाता है। 

लविवि बैंक्वेट हॉल 

जंग-ए-आजादी में हर कोई अपनी आहूति डालने को आतुर था तो छात्र कैसे शांत बैठते। छात्रों के अंदर आजादी की ज्वाला भड़कने लगी थी। लखनऊ विवि आजादी के जंग का गवाह बनने लगा। विवि परिसर में बने बैंक्वेट हॉल में नौ अगस्त, 1942 को आम सभा का आयोजन करके छात्रों में देश के लिए लडऩे का जज्बा पैदा किया गया। सभा में छात्रों की हिस्सेदारी से घबराए अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करने का षडयंत्र बनाया। सभा के दूसरे दिन ही विवि के दो छात्रों कृष्ण बिहारी शुक्ला व सुविधा मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया। क्रांतिकारी कृष्ण बिहारी शुक्ला के नेतृत्व में हुई सभा का गवाह बैंक्वेट हॉल आज भी मौजूद है।

जीपीओ पार्क काकोरी स्तंभ  

नौ अगस्त 1925 को काकोरी में क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां की अगुआई में ट्रेन लूटी गई थी। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 10 क्रांतिकारियों ने इस घटना को अंजाम दिया था। जीपीओ पार्क स्थित काकोरी स्तंभ काकोरी कांड के क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह व अशफाक उल्ला खां सहित अन्य क्रांतिकारियों की सुनवाई के स्थल का गवाह है।

चिनहट प्रबंधन छात्रावास 

राजधानी के हर हिस्से में आजादी की चिंगारी धधकने लगी थी। चारों ओर अंग्रेजों के प्रति आक्रोश बढ़ रहा था। इस दौरान चिनहट क्षेत्र में भी आजादी की जंग शुरू हो गई। चिनहट स्थित शहीद स्मारक स्वाधीनता आंदोलन का गवाह है। यहीं से रणबांकुरों ने अपनी जान की परवाह किए बगैर आजादी का बिगुल फूंका था। वर्तमान में डॉ. अंबेडकर प्रबंधन संस्थान परिसर स्थित शहीद स्तंभ लोगों को आजादी की याद दिलाती है। हर वर्ष यहां शहीदों को नमन करने के साथ ही पुष्पांजलि समारोह होता है। इसके अलावा साल 1920 में पूर्व माध्यमिक विद्यालय की स्थापना हुई थी और साल 1929 में  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी यहां आए थे।


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