LG of Jammu and Kashmir: घाटी की ऊंची कुर्सी पर बैठे मनोज सिन्हा, भाजपा के लिए संवरेगी बिहार की रणभूमि!
LG of Jammu and Kashmir भूमिहार समाज के इस कद्दावर नेता को घाटी में ऊंची कुर्सी पर बिठाए जाने के पीछे बिहार विधानसभा चुनाव की रणभूमि संवारने की मंशा भी मानी जा रही है।
लखनऊ [अजय जायसवाल]। उत्तर प्रदेश को देश की राजनीति का गेट-वे कहा जाता है तो यहां के नेताओं की भी संगठन में वह अहमियत है। बेहद मुश्किल मोर्चों और चुनौतियों के लिए यहां के नेताओं पर भरोसा जताकर भाजपा, देश के विभिन्न राज्यों में समीकरण साधती रही है।
अब मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बनाया गया है। भूमिहार समाज के इस कद्दावर नेता को घाटी में ऊंची कुर्सी पर बिठाए जाने के पीछे बिहार विधानसभा चुनाव की रणभूमि संवारने की मंशा भी मानी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर एक चुनौती के लिए सूबे के नेता पर भरोसा जताया है। गाजीपुर के पूर्व सांसद तथा केंद्रीय मंत्री रहे मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर जैसे चुनौतीपूर्ण प्रदेश में उपराज्यपाल नियुक्त किया गया है। सिन्हा वर्तमान में प्रदेश के सातवें नेता हैं, जिनके पास राज्यपाल या उपराज्यपाल की जिम्मेदारी है। इसके अलावा राजस्थान, केरल, बिहार, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड व गोवा में भी उत्तर प्रदेश के मूल निवासी नेता राज्यपाल या उपराज्यपाल पद पर नियुक्त हैं।
नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में मनोज सिन्हा दूसरे राजनेता हैं, जिन्हें मिशन जम्मू-कश्मीर में लगाया गया है। इससे पहले बागपत जिले के सत्यपाल मलिक को जम्मू- कश्मीर में माहौल सामान्य कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। मलिक के कार्यकाल में ही यहां अनुच्छेद 370 व 35- ए को खत्म किया गया। हालांकि मलिक अपने कई विवादित बयानों के कारण चर्चा में भी रहे। मलिक अब गोवा के उपराज्यपाल का दायित्व संभाले हुए हैं।
वहीं, राजस्थान की राजनीतिक उठापटक में राज्यपाल कलराज मिश्र की भूमिका भी अहम बनी है। केरल में आरिफ मोहम्मद खान व अरुणाचल में बीडी मिश्रा का दायित्व भी राजनीतिक नजरिए से काफी महत्वपूर्ण है। बिहार में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं। वहां प्रदेश के अनुभवी नेता फागू चौहान राज्यपाल हैं।
माना जा रहा है पूर्वांचल से फागू चौहान के बाद मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल नियुक्त होने से बिहार के विधानसभा चुनाव में सामाजिक संतुलन का संदेश जाएगा। भूमिहार बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले सिन्हा की ससुराल बिहार में है। जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक माहौल बहाल करने के साथ पूर्वांचल के प्रवासी श्रमिकों से भी उनकी तैनाती को जोड़कर देखा जा रहा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में उलटफेर के लिए पूर्व राज्यपाल स्व. लालजी टंडन को याद किया जाएगा। इसी तरह पश्चिम बंगाल में केसरीनाथ त्रिपाठी को भी भेजा गया था।
साफ छवि के कद्दावर नेता
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में संचार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) व रेल राज्यमंत्री रह चुके मनोज सिन्हा विवादों से दूर रहने वाले स्वच्छ छवि के नेता माने जाते हैं। एक जुलाई 1959 को गाजीपुर के मोहनपुरा गांव में जन्मे मनोज बनारस ङ्क्षहदू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रह चुके हैं। 1982 से राजनीतिक जीवन की शुरूआत करने वाले सिन्हा पहली बार वर्ष 1996 में लोकसभा सदस्य निर्वाचित हुए। बीएचयू से बीटेक व एमटेक डिग्रीधारी मनोज सिन्हा 1999 व 2014 में भी सांसद निर्वाचित हुए, लेकिन वर्ष 2019 में वोट फीसद बढऩे के बावजूद सपा-बसपा गठबंधन प्रत्याशी से चुनाव हार गए थे। पूर्वांचल, खासकर गाजीपुर में कराए विकास कार्यों से उन्हें अलग पहचान मिली। गत विधानसभा चुनाव के बाद मनोज सिन्हा मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में चर्चा में आए थे। वर्ष 2017 केे चुनाव में भाजपा के बहुमत हासिल करने के बाद मुुख्यमंत्री के पद के लिए मनोज सिन्हा का नाम लगभग तय माना जा रहा था।
उप्र निवासी राज्यपाल व उपराज्यपाल
जम्मू-कश्मीर- उप राज्यपाल-मनोज सिन्हा
गोवा- उपराज्यपाल-सत्यपाल मलिक
राजस्थान- राज्यपाल- कलराज मिश्र
केरल- राज्यपाल-आरिफ मोहम्मद खान
बिहार- राज्यपाल- फागू चौहान
उत्तराखंड- राज्यपाल- बेबी रानी मौर्य
अरुणाचल प्रदेश- राज्यपाल- बीडी मिश्रा।
यह भी देखें: J&K के पूर्व उपराज्यपाल G C Murmu बने देश के नए CAG, Rajiv Mehrishi की लेंगे जगह