अपने रत्नों को सम्मानित कर अभिभूत हुआ एलयू, डिप्टी सीएम से लेकर प्रोफसरों ने खोले यादों के पिटारे
लखनऊ विश्वविद्यालय एल्युमनाई फाउंडेशन की ओर से आयोजित पूर्व छात्र सम्मान समारोह में वर्षो बाद साझा कीं पुरानी यादें।
लखनऊ[जागरण संवाददाता]। भीड़ में डॉक्टर भी थे, उद्यमी भी थे। न्यायाधीश भी और पत्रकार भी थे, मगर सब पुराने यार थे। मौका था, लखनऊ विश्वविद्यालय एल्युमनाई फाउंडेशन की ओर से सम्मान समारोह का। यहा अलग-अलग क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुंचे पूर्व छात्र सालों बाद एक दूसरे से मिले। शनिवार को लखनऊ विश्वविद्यालय (लविवि) के मालवीय सभागार में आयोजित समारोह में इनमें चार पूर्व छात्रों को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड व सात पूर्व छात्रों को विशेष सम्मान से नवाजा गया। अपने नायाब रत्नों को सम्मानित कर लखनऊ विश्वविद्यालय अभिभूत हुआ। अलग-अलग क्षेत्र में सफलता का शिखर हासिल करने वाले पूर्व छात्र कैंपस में आकर एकदम विद्यार्थी नजर बन गए। किसी को अपना क्लासरूम देख याद ताजा हुई तो किसी को गुरुजी की डाट याद आई। किसी ने पंडित जी चाय वाले के यहा उधारी की आदत पर ठहाके लगाए तो किसी ने गुरुजी की खटारा कार में धक्के लगाए जाने की याद ताजा की। डिप्टी सीएम ने भी खोला सुनहरी यादों का पिटारा
उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने भी अपनी सुनहरी यादों का पिटारा खोला। उन्होंने चाय की दुकान पर चुस्कियों के साथ मस्ती के किस्से हों या चुनावी माहौल का हाल। उन्होंने समारोह में मौजूद पूर्व छात्रों का नाम लेते हुए यादों को उनसे जोड़ा। विवि के कुलपति प्रो एसपी सिंह ने कहा कि जिस बुनियाद में आदर्श व मूल्य न हों, उसकी इमारत भरभराकर गिर जाती है। उन्होंने कहा बीते एक साल में प्रदेश सरकार से 18 करोड़ रुपये का सहयोग मिला है। पूर्व छात्र सम्मान समारोह में मुख्य रूप से एलुमिनाई फाउंडेशन के अध्यक्ष बलराज सिंह चौहान, दैनिक जागरण के संपादक उत्तर प्रदेश आशुतोष शुक्ल, जनरल सेक्रेटरी मुकेश शुक्ला, प्रो. विवेक सहाय, पूर्व मंत्री अरविंद सिंह गोप, भाजपा नेता दयाशकर सिंह समेत तमाम लोग मौजूद रहे।
यादें ताजा नहीं जिंदा हो गईं :प्रो. डीपी सिंह
प्रो. डीपी सिंह ने साल 1952 में पॉलिटिकल साइंस में पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई की थी। उन्हें विवि के इसी विभाग में पढ़ाने का भी मौका मिला। प्रो. सिंह वर्ष 1971 में रीजनल सेंटर फॉर अर्बन एंड एनवायरमेंटल स्टडीज के निदेशक नियुक्त हुए। वह विश्वविद्यालय ग्राट्स कमीशन (यूजीसी) से भी जुड़े रहे और सातवीं प्लानिंग कमेटी के सदस्य भी रहे। प्रो. सिंह ने कहा आज पूर्व छात्र समारोह में आकर यादें सिर्फ ताजी ही नहीं बल्कि जिंदा हो गईं। नौकरी के साथ की पढ़ाई: सुलखान सिंह
पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने अपनी यादों को साझा करते हुए बताया कि मैंने नौकरी के साथ ही एलएलबी की पढ़ाई की। एक बार परीक्षा हाल में जाने से मुडो रोक दिया गया था। इनविजिलेटर ने कहा अभिभावक परीक्षा हाल में नहीं जा सकते, तब मुझे सफाई देनी पड़ी कि मैं ही छात्र हूं। दाखिला गर्व का विषय था : विक्रमनाथ
इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस विक्रम नाथ ने बताया कि उन्हें इलाहाबाद से लखनऊ आना पड़ा और यहा 1983 में उन्हें एलएलबी में दाखिला मिला। वह उस वक्त एलयू में दाखिले को आज गर्व का विषय मानते हैं। विवि से पाई सीख : जगदीश गाधी
सीएमएस संस्थापक डॉ. जगदीश गाधी कहते हैं कि विवि में पढ़ाई के माहौल ने ही उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि आज शिक्षा से जोड़कर समाज को बेहतर आकार देने का प्रयास कर रहा हूं। उन्होंने साल 1959 में कामर्स में स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी। वह बीते 20 सालों से शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दे रहे हैं। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में सबसे बड़े स्कूल के रूप में उनके विद्यालय सीएमएस का नाम दर्ज हुआ है। सबसे सुखद क्षण : जस्टिस खेमकरन
जस्टिस खेमकरन कहते हैं कि यह जीवन का सुखद क्षण है। हरदोई जिले के रहने वाले जस्टिस खेमकरन ने लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई पूरी की और 1969 में स्टेट ज्युडिशियल सर्विसेज ज्वाइन किया। वह वर्ष 2005 तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहे। बाद में कई अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भी तैनात रहे। शिक्षण संस्थान ही नहीं विवि मेरे घर जैसा : धमर्ेंद्र सोती
बैडमिंटन खिलाड़ी धर्मेद्र सोती ने कहा कि गुरुओं से जीवन में उन्हें कभी हिम्मत न हारने की नसीहत मिली। यह संस्थान मेरे घर जैसा है। साल 2001 में एसजीपीजीआइ में उनकी किडनी ट्रासप्लाट हुई। बावजूद इसके उन्होंने राष्ट्रीय स्तर बैडमिंटन खेल में टीम को पदक दिलाने में अपना योगदान दिया।
वर्षो बाद अपनों के बीच : गौरी
विद्यार्थी को यदि शिक्षा का बेहतर प्लेटफार्म मिले तो निश्चित तौर पर वह अपने क्षेत्र में अच्छी भूमिका निभा सकता है। गौरी पशु सेवी हैं और उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं। गौरी राष्ट्र्रीय स्तर पर पहचान पाने वाली महिला हैं। पुरानी यादें ताजा: राजीव कुमार
समारोह में शामिल होकर 35 साल पुरानी यादें ताजा हो गईं। सफलता का श्रेय मेरे गुरुओं को है। विवि में करीब छह साल का वक्त गुजरा। कुछ खठ्ठे तो कुछ मीठे पल थे। कैंटीन में दोस्तों के साथ चाय और समोसे बाटने के कुछ किस्से आज भी जेहन में ताजा हैं। मा, पिता और गुरुओं का आर्शीवाद दिलाती है सफलता
डॉ सलिल टंडन यूरोलॉजिस्ट व एंड्रोलाजिस्ट हैं। वह कहते हैं कि जीवन में यदि माता पिता और गुरुओं का आर्शीवाद साथ हो तो हर परेशानी घुटने टेक देती है। सफलता खुद आपके दरवाजे पर दस्तक देती है। भावुक क्षण हैं : रवींद्र शर्मा
ऐसे समारोह में खुशी और गम पीछे छूट जाते हैं और भावुकता हावी हो जाती है। रवींद्र उद्यमी हैं। और करीब 28 साल पहले विवि से पढ़ाई पूरी की। वह कहते हैं कि दोस्तों के साथ बिताए खूबसूरत लम्हे जिंदगी में दोबारा लौट कर नहीं आते। न ही शिक्षकों की डाट दोबारा मिलती है, जिससे सिर्फ और सिर्फ हित जुड़ा रहता है। सम्मान से जीवन सार्थक : शिशिर दुबे
प्रो. शिशिर कुमार दुबे कहते हैं कि गुरुकुल में सम्मान मिले तभी जीवन सार्थक है। प्रो. शिशिर दुबे मौजूदा समय में एमिटी विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति हैं। उन्होंने लविवि से पोस्टग्रेजुएट व पीएचडी डिग्री हासिल की। इन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट
- जस्टिस खेमकरन, सेवानिवृत्त न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय
- प्रो. डीपी सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष, लोकप्रशासन विभाग, लविवि1' डॉ. जगदीश गाधी, संस्थापक सिटी मोंटेसरी स्कूल
- प्रो. शिशिर कुमार दुबे, कुलपति, एमिटी विवि, जयपुर
इन्हें विशिष्ट सम्मान
- राजीव कुमार, मुख्य सचिव, उप्र
- सुलखान सिंह, पूर्व डीजीपी, यूपी
- जस्टिस विक्त्रम नाथ, न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय लखनऊ बेंच
- धर्मेद्र सोती, बैडमिंटन खिलाड़ी
- गौरी मौलेखी, पशु सेवी
- रवींद्र शर्मा, एनआरआई उद्यमी
- सलिल टंडन, चिकित्सक।