परित्यक्त मां-बाप को वृद्धा आश्रम से निकालने पर लखनऊ हाई कोर्ट ने लगाई रोक, यहां पढ़ें पूरा मामला
इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गायत्री परिवार ट्रस्ट की ओर से शहर के आदिल नगर में चल रहे समर्पण वृद्धा आश्रम से एक वृद्ध माता-पिता को निकालने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने इस सबंध में सिविल जज द्वारा पारित आदेश को बहाल रखा है।
लखनऊ, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने गायत्री परिवार ट्रस्ट की ओर से शहर के आदिल नगर में चल रहे समर्पण वृद्धा आश्रम से एक वृद्ध माता-पिता को निकालने पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने इस सबंध में सिविल जज द्वारा पारित आदेश को बहाल रखा है। यह आदेश जस्टिस जसप्रीत सिंह की एकल पीठ ने वृद्धों की ओर से दाखिल रिट याचिका पर पारित किया। कोर्ट ने कहा कि रहने, खाने व बिजली के बिल के रूप में ये याचीगण वृद्धा आश्रम के प्रबंधतंत्र को 12 हजार रुपये प्रति माह जमा करेंगे जिसे सिविल विचारण के निस्तारण के समय समायोजित किया जायेगा।
याची वृद्ध माता-पिता को उनके अपने ही बच्चों ने बेसहारा छोड़ दिया है। इसके बाद उन्होने शहर के आदिल नगर में चल रहे समर्पण वृद्धा आश्रम में शरण ली। यह आश्रम गायत्री परिवार संचालित कर रहा है। इसके लिए नगर निगम ने पट्टे पर जमीन दी है। आश्रम में रहने के लिए नियमों के मुताबिक याचियों ने 75 हजार रुपये की रकम बतौर पेशगी भरी व प्रति माह नियमित चार्ज देने की शर्त मान ली। इसके बाद उन्हेंं कमरा नंबर 108 आवंटित कर दिया गया। 2019 में आश्रम के प्रबंधतंत्र ने याचियों पर आश्रम खाली करने का दबाव बनाना प्रारंभ कर दिया और आरोप लगाया कि वे कर्मचारियों व अन्य अंत:वासियेां से दुव्र्यवहार करते हैं। इस पर याचियों ने सिविल जज जूनियर डिवीजन की अदालत में दीवानी मुकदमा दायर कर दिया। सिविल जज ने सात दिसंबर 2019 को उनके निष्कासन पर रोक लगा दी। बाद में आश्रम की अपील पर अपर जिला जज ने 20 अक्टूबर 2020 को सिविल जज के आदेश केा खारिज कर दिय जिसके खिलाफ याचियों ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की।