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लखनऊ : एलडीए व निजी बिल्डरों को भाने लगीं फ्लाई ऐश ईंटे, जान‍िए इसमें क्‍या है खास

एलडीए ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की गाइड लाइनों का पालन करते हुए करोड़ों रुपये फ्लाई ऐश ईंटों का इस्तेमाल करके बचाए। मुख्य अभियंता इन्दु शेखर सिंह कहते हैं कि समय की बचत होने के साथ ही भूजल दोहन फ्लाई ऐश ईंट बचा रही है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 24 Nov 2020 07:07 PM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 06:27 AM (IST)
बिल्डिंगों के निर्माण में फ्लाई ऐश ईंट बनी पर्यावरण की मददगार। इससे प्रधानमंत्री आवास के 4512 मकान बनवा रहा एलडीए।

लखनऊ, जेएनएन। राजधानी में पर्यावरण की गति थामने में लखनऊ विकास प्राधिकरण के साथ-साथ निजी काेलोनाइजर भी कंधे से कंधा मिलाने का काम कर रहे हैं। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने बसंत कुंज और शारदा नगर में फ्लाई ऐश ईंटों का इस्तेमाल करके 4512 फ्लैट बनवा रहा है। इसके लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण को ब्यूरो ऑफ इनर्जी इफिशिएंसी से जहां पांच स्टार की रेटिंग का खिताब मिला है, वहीं ग्रीन बिल्डिंग से गोल्ड शील्ड। यही नहीं शहीद पथ स्थित भारत का सबसे बड़ा लू लू मॉल हो या लखनऊ की सबसे बड़ी टाउन शिप अंसल। इनमें फ्लाई ऐश ईटों का प्रयोग होने के साथ ही बने बनाए बाक्स पर्यावरण को नियंत्रित करने में मददगार साबित हो रहे हैं। पानी, समय, कीमत, निर्माण में बचत हो रही है। 

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एलडीए ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की गाइड लाइनों का पालन करते हुए करोड़ों रुपये फ्लाई ऐश ईंटों का इस्तेमाल करके बचाए। मुख्य अभियंता इन्दु शेखर सिंह कहते हैं कि समय की बचत होने के साथ ही भूजल दोहन फ्लाई ऐश ईंट बचा रही है। एलडी आने वाली योजनाओं में भी फ्लाई ऐश ईंट को प्राथमिकता देगा। खराब पदार्थों से तैयार हो रही फ्लाई ऐश ईंटें को तरी करने की जरूरत नहीं पड़ती, इनमें सीमेंट की खपत सामान्य मैटेरियल से साठ फीसद कम होती है। यही नहीं मजबूती में सामान्य बिल्डिंगों से कही मजबूत होती है। सिहं कहते हैं कि सामान्य ईंट को उपयोग फिलहाल एलडीए नहीं कर रहा है।

वहीं अंसल एपीआइ के प्रोजेक्ट हेड अरुण मिश्रा ने बताया कि शहीद पथ पर स्थित अंसल की टाउन शिप में फ्लाई ऐश का ही उपयोग हुआ है। मिश्रा कहते हैं कि पर्यावरण में फ्लाई ऐश की ईंटे सहायक है। एनजीटी की गाइडलाइन का पालन करने में यह निर्माण सामग्री मदद करती है। जापान की कंपनी डीएमआइ असंल में इन्हीं निर्माण सामग्री पर अपने चार टॉवर खड़ी कर रही है, वहीं गोल्फ रिज, गोल्फ विस्टा अपार्टमेंट फ्लाई ऐश ईंट का प्रयोग करके बनाए जा रहे हैं।

क्या क्या होती है ऐसी बिल्डिंगों को बनवाने से बचत

  • भूजल दोहन 50 फीसद कम होता है
  • बिल्डिंग निर्माण में चालीस फीसद समय कम लगता है।
  • लागत में दस से बीस फीसद तक बचत
  • मजबूती में सबसे मजबूत
  • बिल्डिंग नहीं होती है फ्लाई ऐश ईट से भारी
  • पर्यावरण चालीस फीसद तक कम होता है।

एलडीए ने बनवा दी खराब प्लास्टिक से 80 किमी. रोड

लखनऊ विकास प्राधिकरण ने खराब प्लास्टिक से अस्सी किमी. रोड शहर के अलग अलग हिस्सों में बनवा डाली। एक के बाद एक एलडीए ने यह काम जारी रखा है। मुख्य अभियंता इन्दु भूषण सिंह ने बताया कि पुलिस मुख्यालय के पास कई किमी. की रोड या फिर शाहनजफ रोड। एलडीए ने इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के सामने, शहीद पथ की सर्विस लेन, जानकीपुरम सहित कानपुर रोड पर भी प्लास्टिक रोड आज अपनी मजबूती व पर्यावरण को बेहतर बनाने में सहयोग दे रही हैं।  

क्या है फ्लाई ऐश ईंट

फ्लाई ऐश ईट राख की बनाई जाती है। सामान्य ईंटों से यह हल्की होती है और साइज में थोड़ी बड़ी होती है। इन ईंटों को जोड़ने में सीमेंट जहां कम लगती है वहीं पानी का इस्तेमाल आधे से भी कम होता है। राख के साथ ही कम सीमेंट का भी प्रयोग होता है। इसे बनाने के लिए आधुनिक मशीन का प्रयोग किया जाता है यानी भटठे का प्रयोग नहीं होता, अमूमन सामान्य ईंटों की तरह इसे पकाने की जरूरत नहीं।


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