यहां कॉफी की महक संग होते हैं सियासी चकल्लस
हजरतगंज स्थित कॉफी हाऊस में राजनीति और राजनीतिज्ञों को लेकर इतिहास रहा है।
लखनऊ,[अजय श्रीवास्तव]। मैं हजरतगंज का कॉफी हाउस हूं। आज भी मेरी एक टेबल दोपहर बाद सज जाती है। राजनीति पर चर्चा गर्म रहती है। चेहरे बदल गए हैं, लेकिन टेबल पर हो रही चर्चा पुराने समय से मिलती-जुलती है। आज भी यहां लोकसभा चुनाव के दूरगामी परिणाम पर चर्चा होती देखी जा सकती है। कई उम्मीदवार तो अभी घोषित नहीं हुए, लेकिन दलीय स्थिति का आकलन यहां शुरू हो गया है।
किसका टिकट कटेगा। अखिलेश-मायावती का गठबंधन कितना कारगर होगा? शिवपाल की भूमिका कैसी होगी? भाजपा कितने चेहरे बदल देगी? सरकार किसकी बनेगी? मंदिर मुद्दा और सर्जिकल स्टाइल चुनाव में कितना प्रभाव डालेगा? प्रियंका की हवा कांग्रेस को किस ऊंचाई पर ले जाएगी? पीएम फिर से मोदी ही बनेंगे कि खिचड़ी सरकार में कोई और दावेदारी करेगा? यह सारे सवाल मेरे कोने-कोने में काफी की महक के साथ तैर रहे हैं। चर्चाओं में ही यहां कोई सरकार बनाता है तो कोई सरकार गिराता है। प्रदेश की सियासत से लेकर दिल्ली दरबार तक की चर्चा यहां चुस्कियों संग परवान चढ़ती है।
यहां टेबल चर्चा में शामिल हर कोई अपने तर्क और आंकड़ों को मजबूती से रखता है। बहस भी गर्मागर्म होती है, लेकिन संजीदगी के साथ। कई दशक से यहां आ रहे पूर्व महापौर डॉ. दाऊजी गुप्ता आज भी बैठकी करते हैं। वह कॉफी तो नहीं पीते, लेकिन हमारी शोभा जरूर बने हैं। मुङो वे दिन भी याद हैं, जब हमारी लकड़ी की टूटी कुर्सियों पर वे लोग बैठते थे, जो बाद में देश की राजनीति का चेहरा बने। डॉ. राम मनोहर लोहिया, जनेश्वर मिश्र, राज नारायण, फिरोज गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नाडीज, पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, नारायण दत्त तिवारी और आचार्य नरेंद्र देव ने हमारी शोभा बढ़ाई। साहित्यकार अमृतलाल नागर, यशपाल, मजाज लखनवी, पूर्व नगर प्रमुख डॉ.पीडी कपूर, मदन मोहन सिद्धू ने भी यहां की रौनक रहे। कुछ तो नियमित थे, जिसमें वीर बहादुर सिंह भी थे। कभी-कभी मुलायम सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी को भी देखा है मैंने। आज भी पुराने पत्रकार और बुजुर्ग कांग्रेसी नेता अमीर हैदर दोपहर बाद आ जाते हैं। सीपीआइ नेता अतुल अंजान तो लंबे समय से आ रहे हैं। मकड़ी के जालों से घिरी छत और लकड़ी की टूटी कुर्सियां पहले मेरी पहचान थी। वक्त के साथ अब मेरे हालात बदले हैं। हाल वातानुकूलित है और माहौल गर्म रहता है।
मैं लखनऊ का कॉफी हाउस हूं, मैंने राजनीति और राजनीतिज्ञों को बहुत करीब से देखा है
पूर्व महापौर डॉ. दाऊजी गुप्ता ने कहा कि चुनाव हो और हजरतगंज के कॉफी हाउस पर चर्चा न हो तो बात अधूरी रह जाती है। यहां के मग में काफी के साथ राजनीति भी तैरती है। कभी-कभी तो बहस इतनी गर्म हो जाती है कि ताजा कॉफी भी ठंडी पड़ जाती है। आइए पढ़ते हैं कॉफी हाउस का संस्मरण उसी की जुबानी।
आज दूसरे मंचों जब मुद्दों पर बहस होती है तो वह नैतिकता की सीमा पार कर जाती है। काफी हाउस में अलग-अलग विचारधारा के लोग जुटते थे और सार्थक बहस करते थे। तर्क पर बात होती थी। यहां आज भी ऐसा ही माहौल है।