लखनऊ के बटुक भैरव नाथ मंदिर में होगी घुंघरुओं की पूजा, बाबा के सामने लगेगी नृत्य से हाजिरी
कथकाचार्य गुरु कालिका बिंदादीन ने अपने तीनों बेटे अच्छन महाराजशंभू महाराज और लच्छू महाराज को सबसे पहले बटुक भैरव नाथ मंदिर में घुंघरू प्रदान किया था और उन्होंने पूजा कर देश-विदेश में कथक को अलग पहचान दिलाई थी।
लखनऊ, जितेंद्र उपाध्याय। तहजीब के शहर-ए-लखनऊ में कथक की अपनी अलग पहचान है। 1972 में कथक संस्थान की स्थापना के साथ ही कथक को जो पहचान मिली उसका आगाज गुइन रोड के बटुक भैरव नाथ मंदिर से ही हुई थी। कथकाचार्य गुरु कालिका बिंदादीन ने अपने तीनों बेटे अच्छन महाराज,शंभू महाराज और लच्छू महाराज को सबसे पहले इसी मंदिर में घुंघरू प्रदान किया था और उन्होंने पूजा कर देश-विदेश में कथक को अलग पहचान दिलाई थी। एक बार फिर 19 सितंबर को आस्था के इस मंदिर में प्रतिबंधों के बीच घुंघरुओं की पूजा के साथ पुरानी परंपरा का जयकारा लगेगा।
हर वर्ष भादो महीने के अंतिम रविवार को गुइन रोड स्थित बटुक भैरव नाथ मंदिर में कथक गुरु और शिष्यों की परंपरा का निर्वाहन होता है। लच्छू महाराज की प्रथम शिष्या श्रृंगारमणि कुमकुम आदर्श शिष्यों को न केवल घुंघरू प्रदान करेंगी बल्कि उनकी पूजा कर शिष्याओं ने बाबा के दर पर नृत्य के माध्यम से हाजिरी भी लगाएंगी। गुरु-शिष्य परंपरा के इस समागम के दौरान श्रद्धालुओं का भी जमावड़ा लगेगा।
फिर लौटेगी घुंघरुओं की रात: यशभारती पुरस्कार प्राप्त श्रृंगारमणि कुमकुम आदर्श ने भी इसी मंदिर से कथक की शुरुआत की थी। कथक गुरु लच्छू महाराज की प्रथम शिष्या कुकुम आदर्श ने 1974 में यहां कथक किया था। उसके बाद से उनकी ओर से यहां हर वर्ष पूजा की जाती है। उन्होंने बताया कि कथक गुरु कालिका बिंदादीन ने अपने तीनों लड़कों अच्छन महाराज, शंभू महाराज और लच्छू महाराज को इसी मंदिर में घुंघरु प्रदान किया था और तीनों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कथक को पहचान दिलाई थी। अच्छन महाराज के पुत्र बिरजू महाराज ने भी देश-विदेश में कथक को अलगमंदिर की अध्यक्ष बीना गिरि ने बताया कि राजधानी समेत प्रदेश के कई जिलों से भी श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।