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स्मृति शेष : सियासत के अजातशत्रु व भाजपा के संकटमोचक के तौर पर सदैव याद रहेंगे लालजी टंडन

स्मृति शेष उत्तर प्रदेश की राजनीति में लालजी टंडन को जो स्थान व सम्मान मिला वो चुनिंदा लोगों को ही हासिल हो पाता है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Tue, 21 Jul 2020 08:44 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 07:41 AM (IST)
स्मृति शेष : सियासत के अजातशत्रु व भाजपा के संकटमोचक के तौर पर सदैव याद रहेंगे लालजी टंडन
स्मृति शेष : सियासत के अजातशत्रु व भाजपा के संकटमोचक के तौर पर सदैव याद रहेंगे लालजी टंडन

लखनऊ [अवनीश त्यागी]। उत्तर प्रदेश की राजनीति में लालजी टंडन को जो स्थान व सम्मान मिला वो चुनिंदा लोगों को ही हासिल हो पाता है। उनको सियासत के अजातशत्रु और भारतीय जनता पार्टी के संकटमोचक के तौर पर सदैव याद किया जाएगा। उनके रिश्तों का विस्तार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाहर समाजवादी, कांग्रेसी व वामदलों में भी रहा। अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा नानाजी देशमुख के भी टंडन प्रिय थे। डॉ. राममनोहर लोहिया से लेकर चंद्रशेखर व मुलायम सिंह यादव से उनकी नजदीकी समाजवादियोंं में भी रही। 

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आपातकाल में लालजी टंडन के साथ जेल में रहे राजेंद्र तिवारी बताते है कि जब साड़ी वितरण कार्यक्रम में भगदड़ से कई महिलाओं की मृत्यु हो गई तब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे। दुर्घटना के बाद मुलायम खुद टंडन के आवास पर पहुंचे। शायद यही वजह थी कि वह प्रकरण अधिक तूल नहीं पकड़ सका। टंडनजी को सर्वप्रिय नेता बताते हुए पूर्व गृह राज्य मंत्री बालेश्वर त्यागी का कहना है, कल्याण सरकार में अयोध्या संबंधित मामलों की जिम्मेदारी होने के बावजूद मंदिर मुद्दे की आंच उन तक नहीं पहुंची।

रिश्ते निभाने में भी लालजी टंडन का कोई सानी नहीं था। वर्ष 1977 में उनका टिकट कटा तो उन पर आजाद उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने के लिए भारी दबाव था। जेपी आंदोलन में सहसंयोजक रहे टंडन अगर चुनाव लड़ जाते तो जीत तय मानी जा रही थी परंतु नानाजी देशमुख के समझाने पर उन्होंने कदम वापस खींच लिए। बाद में वर्ष 1978 में पार्टी कोटे से उन्हें व मधुबन सिंह को विधान परिषद भेजा गया। त्रिलोकीनाथ रोड पर स्थित उनका सरकारी आवास भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों को ठिकाना रहा। सरकार किसी दल रही परंतु उनकी सुरक्षा व आवासीय सुविधा यथावत बनी रही।

छह-छह माह की सरकार के फार्मूले में अहम भूमिका : नब्बे के दशक में जब भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पा रही थी तब बसपा से गठजोड़ के लिए छह-छह माह सरकार के फार्मूले को अंजाम तक पहुंचाने में लालजी टंडन की अहम भूमिका रही। मायावती से धर्मभाई का रिश्ता बना। मुख्यमंत्री रहते बसपा प्रमुख राखी बंधाने टंडन के घर भी गईं। हालांकि बाद में इन रिश्तों में कड़वाहट आई। एक समय वो भी आया जब 2003 में अल्पमत होने के बावजूद मुलायम सरकार बनी थी। इसमें भी टंडन की भूमिका पर्दे के पीछे अहम थी।

रूठे कल्याण सिंह को मनाया : बसपा से गठबंधन सरकार बनने से कल्याण सिंह बेहद नाराज थे और अंतत अलग भी हुए। 1998 से पार्टी में शुरू हुई घड़ेबाजी ने भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचाया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी कहते है कि कल्याण सिंह की पार्टी में वापसी कराने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी को राजी कर लालजी टंडन ने डैमेज कंट्रोल करने में मदद की। पार्टी ने उनकी महत्ता को देखते हुए वर्ष 2018 में पहले बिहार और बाद में मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया।


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