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लखनऊ के बाबूजी बिहार के महामहिम

लालजी टंडन का सार्वजनिक जीवन नगर महापालिका के सभासद के रूप में 1962 से शुरू हुआ था। सर्वसुलभ नेता हैं लालजी टंडन।

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 01:51 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 01:51 PM (IST)
लखनऊ के बाबूजी बिहार के महामहिम
लखनऊ के बाबूजी बिहार के महामहिम

लखनऊ[अजय श्रीवास्तव]। 'बाबूजी के घर जाना है।' लखनऊ में यह पहचान हर कोई जानता है कि टंडन जी ने बुलाया है। चौक के सोंधी टोला से राजनीति का ककहरा सीखने वाले लालजी टंडन की पहचान भाजपा में बाबूजी के रूप में ही है। सरल स्वभाव और कार्यकर्ताओं के लिए सर्वसुलभ उपलब्ध रहने वाले टंडन जी के घर पर तब भी दरबार सजता था, जब प्रदेश में गैरभाजपाई सरकारें थीं और कोई भी काम लेकर उन तक सहज तरह से पहुंच जाता था। सुबह सोंधी टोला आवास पर और शाम चार बजे के बाद वह त्रिलोकनाथ रोड पर सरकारी आवास पर उपलब्ध रहते थे। कार्यकर्ताओं के लिए मठरी, चाय और लक्ष्या का इंतजाम रहता है। लखनऊ के बाबूजी अब बिहार के महामहिम बन गए हैं तो सालों से मंडली जमाने वालों को खुशी तो बहुत है, लेकिन अब अकेलापन महसूस करेंगे। मंडली लगाना उसका शौक है और फिर बुजुर्गो के साथ वह अतीत में खो जाते हैं। लखनऊ की गलिया, खानपान और रहन-सहन उनके दिलो दिमाग में बसा है और उनकी पुस्तक 'अनकहा लखनऊ' में लखनऊ का अतीत दिखता है। पक्षियों का भी उन्हें खासा शौक है और मंत्री रहते हुए भी वह कभी-कभी नक्खास के पक्षी बाजार पहुंच जाते थे।

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सरल के स्वभाव के साथ ही निर्णय लेने में उनका कड़कपन भी लोगों ने देखा है। शहर के विकास में बाधा बन रहे अतिक्रमण पर उन्होंने नगर विकास मंत्री रहते बुलडोजर भी चलवा दिया था। कई बड़े और प्रभावशाली लोगों के अवैध निर्माण जमींदोज कराए तो उन्हें पार्टी में भी विरोध झेलना पड़ा था लेकिन वह अपने निर्णय से पीछे नहीं हटे। आवागमन में बाधा बनी चौक की दो बुर्जिया उन्होंने भारी विरोध के बीच देर रात चार बुलडोजर से तुड़वा दिया था। सभासदी से सार्वजनिक जीवन:

लालजी टंडन का सार्वजनिक जीवन नगर महापालिका के सभासद के रूप में 1962 से शुरू हुआ था। 1960 में हुए सभासद चुनाव में तत्कालीन काग्रेसी सभासद महेश चंद्र शर्मा के निधन के बाद हुए उप चुनाव में लालजी टंडन जनसंघ के उम्मीदवार के रूप में उतरे और जीत हासिल की।

वैसे लालजी टंडन के पूर्वज पुराने लखनऊ के सआदतगंज के निवासी थे, लेकिन कलातार में उनके पिता शिव नारायण जी सआदतगंज छोड़कर चौक के सोंधी टोला में आ गए थे। चार भाइयों व पाच बहनों वाले लालजी टंडन की प्रारम्भिक शिक्षा खत्री पाठशाला में हुई थी और फिर कालीचरण इंटर कॉलेज से पढ़ाई की। शिक्षक मोहन लाल सक्सेना का प्रभाव टंडन जी पर काफी पड़ा था। इंटर पास करने के बाद ¨हदी, राजनीति शास्त्र और इतिहास विषय में बीए में दाखिला लिया था। लॉ में भी दाखिला लिया था लेकिन परीक्षा नहीं दे सके थे। सामाजिक कार्य में व्यस्तता के चलते बीए में उपस्थिति कम हो गई थी और परीक्षा में न बैठने की स्थिति आ गई थी। तब वाइस चासलर अय्यर की विशेष अनुमति से परीक्षा दी और पास हो गए। अपने भाइयों में सबसे छोटे लालजी टंडन का विवाह 1959 में सोंधी टोला निवासी कृष्णा से हुआ था।


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