Pollution: रोग बांट रही ये 'बीमार हवा', जब घबराने लगे जिया तो हो जाएं सचेत- जानें कौन सा मास्क करेगा मदद Lucknow News
प्रदूषित हवा से सामान्य व्यक्ति भी बीमारियों की चपेट में। लोगों के फेफड़ों में पैबस्त हो हो रहे हवा में मौजूद प्रदूषित कण।
लखनऊ [संदीप पांडेय]। शहर कई दिनों से स्मॉग के आगोश में है। हवा में मौजूद प्रदूषित कण लोगों के फेफड़ों में पैबस्त हो रहे हैं। साथ ही, ब्लड के जरिए शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंच रहे हैं। लिहाजा, लोगों की सेहत दांव पर है। केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के अध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक, प्रदूषण सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन है। यह अस्थमा, सीओपीडी व हार्ट के मरीजों में जहां खतरा बढ़ा रहा है। वहीं, लगातार प्रदूषित हवा के अंदर जाने से सामान्य व्यक्ति भी कई बीमारियों की जद में आ रहे हैं। ऐसे में शहर में छाई धुंध बीमारियों का बोझ है।
किस प्रदूषण से कौन-सी बीमारी
- वायु प्रदूषण : नाक की एलर्जी, गले की एलर्जी, अस्थमा, सीओपीडी, लंग कैंसर, आंख की एलर्जी, क्रॉनिक सिरदर्द, माइग्रेन, ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक, प्री-मैच्योर बेबी, लो बर्थ बेबी, बच्चों में बर्थ डिफेक्ट, पुरुषों में नपुंसकता, महिलाओं में बांझपन की समस्या।
- ध्वनि प्रदूषण : ब्लड प्रेशर का बढ़ना, माइग्रेन, सिर दर्द, अवसाद, तनाव, श्रवणशक्ति का कमजोर होना
- जल प्रदूषण : डायरिया, पेट के विभिन्न अंगों के कैंसर, कुपोषण को बढ़ावा, बच्चों में बर्थ डिफेक्ट, पुरुषों में नपुंसकता, महिलाओं में बांझपन की समस्या।
- मृदा प्रदूषण : प्रदूषित जल से कृषि की सिंचाई, रासायनिक खाद व कीटनाशक का इस्तेमाल भूमि को खराब कर रहा है। ऐसे में पेट संबंधी कैंसर, जन्मजात विकृत वाले बच्चों का जन्म व पेट संबंधी तमाम विकार बढ़ रहे हैं।
प्रदूषण में कौन-सा मास्क कारगर ?
डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक, स्मॉग में मास्क बचाव के लिए बेहद कारगर हैं। मगर, इसमें सही मास्क चयन जरूरी है। कारण, इस प्रदूषण में वही मास्क कारगर हैं जो पीएम-10 व पीएम 2.5 कणों को रोक सकें। यह मास्क मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध हैं।
सर्जिकल मास्क : प्रदूषण से बचाव में सामान्य सर्जिकल मास्क कारगर नहीं है। इसके अलावा सामान्य मास्क भी प्रदूषित कणों को रोकने में सक्षम नहीं हैं। यह पांच से दस रुपये के आते हैं। ऐसे में जो भी मास्क खरीदें, उसमें फिल्टर और पहने के लिए दो इलास्टिक होनी चाहिए। एक इलास्टिक वाले मास्क में कई खुली जगह छूट जाती है।
हनीवेल मास्क : ये मास्क कई रंग और डिजाइन में आते हैं। इनकी कीमत सौ रुपये तक होती है। वहीं, लेयर भी डबल होती है। ये मास्क एक निश्चित समय तक ही इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
एन-95 मास्क : इसमें कई तरह के फिल्टर उपलब्ध हैं। एन-95 मास्क 95 प्रतिशत प्रदूषण को फेफड़ों तक जाने से रोक देते हैं। साथ ही, यह वायरस को भी रोकने में सक्षम हैं।
कैंब्रिज मास्क : यह कार्बन फाइबर के फिल्टर वाले मास्क हैं। यह प्रदूषित कणों को फेफड़ों तक पहुंचने से 99 फीसद तक रोकने में सक्षम हैं। इनकी कीमत हजार रुपये से अधिक होती है। इनको साफ किया जा सकता है।अस्थमा एक्शन प्लान बनाएं अस्थमा रोगी को अटैक से बचाने के लिए परिवारीजन उसके एक्शन प्लान का ध्यान रखें। डॉक्टर के संपर्क में रहेंं, मेडिकल इमरजेंसी नंबर रखें, नमक डाल कर गुनगुने पानी से गरारा करें, सामान्य स्थिति में प्रिवेंटर इनहेलर लें, स्थिति गड़बड़ाने पर रिलीवर इनहेलर की डोज दें। दवा का प्रभाव न होने पर एंबुलेंस से मरीज को अस्पताल शिफ्ट कराएं।
स्मॉग और फॉग में समझें भेद
- फॉग : रसायन शास्त्र के लेक्चरर डॉ. दिनेश कुमार के मुताबिक फॉग (कोहरा) तब बनता है, जब वातावरण में मौजूद वाष्प हवा में मिल जाती है। साथ ही, पानी की बूंदें हवा में तैरती रहती हैं। यह एक सफेद चादर की तरह पूरी हवा को ढक लेती हैं। रासायनिक भाषा में इसे सेमी सॉलिड वाटर मॉलीक्यूल भी कह सकते हैं। यानी यह पानी के अणु होते हैं, जो न पूरी तरह बर्फ होते हैं और न ही तरल।
- स्मॉग : डॉ. दिनेश कुमार के मुताबिक, स्मॉग में जहरीली गैस की मौजूदगी होती है। इसमें खतरनाक गैसें सल्फर डाइऑक्साइड, कॉर्बन डाई ऑक्साइड होती हैं। यह फॉग से रिएक्शन करके केमिकल कंपाउंड बनाती हैं जिससे स्मॉग बनता है। यानी गैसों के मॉलीक्यूल हवा में नमी के चलते ऊपर नहीं जा पाते हैं। वहीं, नमी की वजह से मॉलीक्यूल एक-दूसरे के नजदीक आ जाते हैं। वह हवा में चिपक जाते हैं। भारी मात्रा में मॉलीक्यूल वायुमंडल के निचली सतह पर एकत्र हो जाते हैं। इसे रेस्परेटरी जोन कहते हैं। ऐसे में सांस लेना दुश्वार हो जाता है।
ऐसा हो तब हो जाएं अलर्ट
- सांस लेने में दिक्कत होना
- जल्दी-जल्दी सांस लेना
- लगातार छींके आना
- गले में खिचखिच, नाक में खुजली होना
- गले से घरघराहट की आवाज, सीटी जैसा बजना
- सीने में दर्द, सीना में जकड़न होना
- चलने-फिरने में सांस-फूलना,
- घबराहट व तेज सांस चलना
- सोते वक्त उलझन महसूस होना
- लगातार खांसी आना
सांस रोगी रखें ध्यान
- स्मोकिंग बिल्कुल न करें
- स्मोकिंग कर रहे व्यक्ति के पास न खड़े हों
- रोगी घर में अगर बत्ती, धूप बत्ती का धुआं न करें
- तीक्ष्ण गंध वाले उत्पादों के प्रयोग से बचें
- घर की नियमित सफाई करें
- बिस्तर को प्रत्येक सप्ताह धूप में डालें
- रोगी के कमरे में नमी बिल्कुल न रहे
- सोने वाले कमरे में अधिक सामान न हो, वहीं वेंटिलेशन की व्यवस्था बेहतर हो
- घर में कोयले की अंगीठी जलाकर न तापें। हीटर का भी कम प्रयोग करें
- सुबह टहलने के समय में बदलाव करें। साथ ही, पूरे बदन को ढककर ही बाहर जाएं
- हरी साग-सब्जी व मौसमी फलों का सेवन करें
- मसालेदार व तैलीय खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें
- पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें। संभव हो तो उसे गुनगुना कर लें।
प्रदूषण के कारक
शहर में रेंगता व अव्यवस्थित ट्रैफिक, बढ़ती वाहनों की संख्या, वर्षों पुराने संचालित डीजल वाहन,लगातार कम हो रही हरियाली, कंस्ट्रक्शन कार्य में बेतहाशा वृद्धि, कूड़ा जलाना, कारखानों व जनरेटर का धुआं प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं।
प्रदूषण कम करने के सुझाव
- यातायात सुगम करने के लिए चौराहों की बनावट सही की जाए
- प्रमुख सड़कों व चौराहों को चौड़ा किया जाए
- सड़कें अतिक्रमण मुक्त की जाएं,फुटपाथ बनाए जाएं
- निजी भवनों में पार्किंग सुविधा पर जोर हो
- सार्वजनिक परिवहन सुविधा शहर में बढ़ाई जाए,यातायात व्यवस्था दुरुस्त हो
- समय-समय पर जागरूकता के कार्यक्रम चलाए जाएं, सड़क किनारे कूड़े की डंंपिंग पर रोक लगे
- खाली जगहों पर पौधारोपण किया जाए, सीएनजी स्टेशन बढ़ें, ताकि पेट्रो उत्पादों की खपत कम हो
- बैट्री से संचालित वाहनों को बढ़ावा दिया जाए, जेनरेटर की जगह सोलर एनर्जी को बढ़ावा दिया जाए
- टायर, सूखी पत्तियों, कूड़े, को जलाने पर रोक लगे
- शहर में मेट्रो का विस्तार हो, लोग खुद के वाहन का प्रयोग कम करेंं।