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International Animal Rights Day 2019 : मारने, सताने और बेसहारा छोड़ने से पहले जान लें...बेजुबां जरूर हैं, पर हमारे अधिकार तो बोलते हैं

International Animal Rights Day 2019 भारतीय दंड संहिता के मुताबिक किसी जानवर को पीटना अत्‍यधिक सवारी या बोझ लादना अपराध है।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Tue, 10 Dec 2019 10:51 AM (IST)Updated: Tue, 10 Dec 2019 10:51 AM (IST)
International Animal Rights Day 2019 : मारने, सताने और बेसहारा छोड़ने से पहले जान लें...बेजुबां जरूर हैं, पर हमारे अधिकार तो बोलते हैं
International Animal Rights Day 2019 : मारने, सताने और बेसहारा छोड़ने से पहले जान लें...बेजुबां जरूर हैं, पर हमारे अधिकार तो बोलते हैं

लखनऊ, जेएनएन। किसी जानवर को मारने, सताने और बेसहारा छोड़ने से पहले जान लें कि वो बेजुबान जरूर है, लेकिन अधिकार आपके समान ही हैं। यह अधिकार उसे हमारे संविधान ने दिए हैं। जिस तरह इंसानों के लिए कानूनी अधिकार बने हुए हैं, वैसे ही जानवरों के लिए भी कानूनी हक हैं। अगर आपके आस-पास कोई जानवरों के साथ गलत व्यवहार करता है या उसे मारता, पीटता है तो आप उस जानवर की मदद कर सकते हैं।

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पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पास जानवरों पर अनावश्यक दर्द या पीड़ा रोकने के लिए और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम के लिए पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम, 1960 लागू करने का अधिकार है। हाल ही में जुलाई 2018 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक अनोखा फैसला था। कोर्ट ने कहा था कि जानवरों को इंसानों की तरह कानूनी अधिकार मिले। यह आदेश पक्षियों और जलीय जीवों के लिए भी लागू हुआ था। 

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(ए) के मुताबिक, हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है। भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी जानवर को पीटेगा, ठोकर मारेगा, उस पर अत्यधिक सवारी और बोझ लादेगा, उसे यातना देगा कोई ऐसा काम करेगा जिससे उसे दर्द हो, दंडनीय अपराध है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम और खाद्य सुरक्षा अधिनियम में इस बात का उल्लेख है कि कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचडख़ाने में ही काटा जाएगा। बीमार और गर्भधारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा। अगर कोई व्यक्ति किसी पशु को आवारा छोड़कर जाता है तो उसको तीन महीने की सजा हो सकती है। बंदरों से नुमाइश करवाना या उन्हें कैद में रखना गैरकानूनी है।

वाइल्डलाइफ एक्ट के तहत बंदरों को कानूनी सुरक्षा दी गई है। अगर किसी क्षेत्र में कुत्तों की संख्या ज्यादा है तो कोई भी व्यक्ति या स्थानीय प्रशासन पशु कल्याण संस्था के सहयोग से आवारा कुत्तों का बर्थ कंट्रोल ऑपरेशन कर सकती है, लेकिन मार नहीं सकती क्योंकि उन्हें मारना गैरकानूनी है। पशुओं को लडऩे के लिए भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उसमें हिस्सा लेना संज्ञेय अपराध है। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स 1945 के मुताबिक जानवरों पर कॉस्मेटिक्स का परीक्षण करना और जानवरों पर टेस्ट किये जा चुके कॉस्मेटिक्स का आयात करना प्रतिबंधित है। 

 

नहीं कर सकते चिडिय़ाघर के जानवरों को परेशान 

चिडिय़ाघर और उसके परिसर में जानवरों को चिढ़ाना, खाना देना या तंग करना दंडनीय अपराध है। पीसीए के तहत ऐसा करने वाले को तीन साल की सजा, 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। पशुओं को असुविधा में रखकर, दर्द पहुंचाकर या परेशान करते हुए किसी भी गाड़ी में एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मोटर व्हीकल एक्ट और पीसीए एक्ट के तहत दंडनीय अपराध है। 

मनोरंजन के लिए जानवरों को ट्रेंड करना भी है अपराध 

पीसीए एक्ट के सेक्शन 22(2) के मुताबिक भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिए ट्रेंड करना और इस्तेमाल करना गैरकानूनी है। पक्षी या सरीसृप के अंडों को नष्ट करना या उनसे छेड़छाड़ करना या फिर उनके घोंसले वाले पेड़ को काटना या काटने की कोशिश करना शिकार कहलाएगा। इसके दोषी को सात साल की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। किसी भी जंगली जानवर को पकडऩा, मारना दंडनीय अपराध है। इसके दोषी को सात साल की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

 

वन्य जीव संरक्षण कानून 

जानवरों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए भारत सरकार ने 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद वन्य जीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। इसमें 2003 में संशोधन किया गया। इसमें दंड और जुर्माना को और भी कठोर कर दिया गया है। 

भूखा भी नहीं रख सकते

प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11 (1) कहती है कि पालतू जानवर को छोडऩे, उसे भूखा रखने, कष्ट पहुंचाने, भूख और प्यास से जानवर के मरने पर आपके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है। इसपर आपको 50 रुपये का जुर्माना हो सकता है। अगर तीन महीने के अंदर दूसरी बार जानवर के साथ ऐसा हुआ तो 25 से 100 रुपये जुर्माने के साथ तीन माह की जेल सकती है।

 

कष्ट भी नहीं दे सकते 

भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के तहत अगर किसी ने जानवर को जहर दिया, जान से मारा, कष्ट दिया तो उसे दो साल तक की सजा हो सकती है। इसके साथ ही कुछ जुर्माने का भी प्रावधान है।

चार माह से कम के पालतू कुत्ते को एक जगह से दूसरी जगह नहीं ले जा सकते 

भारत सरकार के एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल (2001) के अनुसार किसी भी कुत्ते को एक स्थान से भगाकर दूसरे स्थान में नहीं भेजा जा सकता। अगर कुत्ता विषैला है और काटने का भय है तो आप पशु कल्याण संगठन में संपर्क कर सकते हैं। भारत सरकार के एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल 2001 की धारा 38 के अनुसार किसी पालतू कुत्ते को स्थानांतरित करने के लिए चाहिए कि उसकी उम्र चार माह पूरी हो चुकी हो। इसके पहले उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना अपराध है।

नहीं रख सकते घर में कैद

जानवरों को लंबे समय तक लोहे की सांकर या फिर भारी रस्सी से बांधकर रखना अपराध की श्रेणी में आता है। अगर आप जानवर को घर के बाहर नहीं निकालते तो यह भी कैद माना जाता है। ऐसे अपराध में तीन माह की जेल और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

ये भी जानें 

  • प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11 (1) के तहत अगर किसी गोशाला, कांजीहाउस, किसी के घर में जानवर या उसके बच्चे को खाना और पानी नहीं दिया जा रहा तो यह अपराध है। ऐसे में 100 रुपये तक का जुर्माना लग सकता है।
  • मंदिरों और सड़कों जैसे स्थानों पर जानवरों को काटना अवैध है। पशु बलि रोकने की जिम्मेदारी स्थानीय नगर निगम की है। पशुधन अधिनियम, 1960, वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972, भारतीय दंड संहिता आइपीसी के तहत ऐसे करना अपराध है।

पेट्स को भी चाहिए सुविधाएं :

आम और खास मिलकर करें काम

घरों में पेट्स पालना आज आम होने के साथ ही लोगों का शौक बन चुका है। पेट्स से जुड़े कुछ और भी सवाल व मुद्दे हैं, जिन पर न तो पेट्स ऑनर ध्यान देते हैं और न ही नगर निगम। विभाग पेट्स को क्या सुविधाएं दे रहा है साथ ही पेट्स के ऑनस समाज व हाईजीन को लेकर कितने जागरूक हैं। 

कल्चर में लानी होगी साफ-सफाई

विदेशों में तो लोग अपने पेट्स को जब घुमाने ले जाते हैं, तो साथ में डिस्पोजबल बैग भी रखते हैं। जहां कहीं उनके पेट्स को डेसक्रैशन करना होता है, उसे वह कराते हैं और बैग को उचित जगह पर डिस्पोज कर देते हैं। जिला पशुचिकित्सालय के संयुक्त निदेशक डॉ. अरविंद राव कहते हैं, लोग इसे अपने कल्चर में लाएं या पेट्स को इतना ट्रेंड कर दें कि वह घर के टॉयलेट में या उनके लिए बनाए गए किसी उचित स्थान पर करें। पेट्स के लिए एक पार्क, कार्नर और बेरिअल ग्राउंड की सुविधा तो होनी ही चाहिए।

लॉस्ट एंड फाउंड सेल बने

पेट्स लवर शिवानी आनंद कहती हैं, कुत्ता खो जाने पर उसकी एफआइआर लिखाने के लिए थाने जाना पड़ता है। नगर निगम एक ऐसी सेल बनाए जहां, 'लॉस्ट एंड फाउंड' की सुविधा हो। इसके अलावा विभाग डॉग के शरीर में उसके ऑनर का नाम-पता लिखा माइक्रोचिप लगाने की भी सुविधा दे, जिससे डॉग के चोरी या गुम होने पर स्कैन करते ही उसके असली मालिक का पता चल जाए। 

स्ट्रीट डॉग के लिए बने होम

पेट्स ऑनर को अगर सुविधाएं मिलने लगेंगी, तो हर कोई लाइसेंस भी बनवाएगा और विभाग को पूरा सहयोग देगा। एडवोकेट मधुरेंद्र कहते हैं, मैंने तीन डॉग पाल रखे हैं। नगर निगम स्ट्रीट डॉग के लिए एक होम बनवाए जहां उनके रहने और खाने-पीने की सुविधा ताकि इनकी आबादी पर रोक लगे। 

मुफ्त में कराएं अपने पेट्स का इलाज

  • अक्सर पेट्स के बीमार होने पर आप उसे इलाज के लिए प्राइवेट डॉक्टर के पास ले जाते हैं जबकि सरकारी हॉस्पिटल में यह सुविधा मुफ्त में मिलती है। पेट्स ओनर कोशिश करें कि बीमार होने पर अपने पेट्स को सरकारी हॉस्पिटल में ही दिखाएं। यहां एक्स-रे, हाई बीपी, कंट्रारेडियोग्राफी और सर्जरी आदि की सुविधा बिल्कुल फ्री होती है। दस रुपए रजिस्ट्रेशन के लिए जाते हैं और सिर्फ वैक्सीन उन्हें बाहर से लानी पड़ती है। 
  • पेट्स ओनर को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरुक होना चाहिए और हमेशा पेट्स को डेसक्रैशन के लिए बस्ती से दूर, किसी सुनसान या ऐसी जगह पर ले जाना चाहिए जो डंप चीजों के लिए ही बनाई गई हो। हर कहीं गंदगी कराने से लोगों को इंफेक्शन का खतरा रहता है।
  • पेट्स ओनर को फूड, ब्रीडिंग, मैनेजमेंट और डिसीज कंट्रोल इन चार मुख्य बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। यानी पेट्स की उम्र के अनुसार उन्हें खाना खिलाएं, समय पर ब्रीडिंग कराएं, उनकी स्वच्छता व रख-रखाव पर ध्यान दें और समय-समय पर वैक्सीनेशन कराएं। 
  • मां का दूध एक पपी के लिए भी ठीक उतना ही फायदेमंद है, जितना कि एक इंसान के बच्चे के लिए उसकी मां का होता है। जन्म के बाद पपी को तीन महीने तक दिन में चार बार डाइट दें जिसमें दूध के साथ सेरेलॅक या दूसरे हेल्थ पाउडर मिलाकर दें।
  • छह महीने बाद दिन में दो बार सॉलिड डाइट दी जाए और यह डाइट उसके शरीर के वजन के अनुसार होनी चाहिए। यानी डाइट की मात्रा उसके शरीर का 1/20वें हिस्से के अनुसार हो।

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