जमघट 2019: जब जमीन नहीं आकाश में लड़ाए जाते हैं पेंच, जानें क्यों खास है ये पर्व Lucknow News
प्रकाश पर्व यानी दीपावली के बाद सोमवार को जमघट का त्योहार मनाया जाएगा।
लखनऊ, जेएनएन। नवाबी शहर में दीपावली पर आतिशबाजी ही नहीं पतंगबाजी का क्रेज भी लोगों के सर चढ़कर बोलता है। दीपावली पर्व के अगले दिन जमघट (अन्नकूट) पतंगपर्व के रूप में सदियों से उल्लास के मनाया जा रहा है। शहर में सजी पतंग की दुकानों पर शौकीनों का जमावड़ा अभी से लगना शुरू हो गया है।
प्रकाश पर्व यानी दीपावली के बाद सोमवार को जमघट का त्योहार मनाया जाएगा। इस बार आसमान में योगी और मोदी की तस्वीर वाली पतंगे दिखाई देंगी। पतंगबाज एक दूसरे के पेंच काटने के लिए दांव लगाएंगे।
दुकानों पर पतंगबाजों की भीड़
गुजरते पलों के साथ शहर में पतंगबाजी का खुमार छाने लगा है। आसमानी जंग छेडऩे के लिए पतंगों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। शनिवार रात से ही दुकानों पर पतंगबाजों की भीड़ जुटने लगी है। पुराना शहर हो या फिर नई कालोनी। सुबह के साथ ही हर जगह आसमान में पतंगों की सतरंगी छटा बिखर जाएगी। बड़ा हो या बच्चा। मैदान से लेकर घरों की छतों तक जिसको जहां जगह मिलेगी शुरू हो जाएगा इस अनोखी जंग में। त्योहार की मस्ती में हर कोई उम्र के बंधन से दूर पतंगबाजी का लुत्फ उठाता नजर आएगा। पुराने शहर के लाजपत नगर और नीबू पार्क के सामने बुद्धा पार्क के पास सुबह से ही आसमान में पतंगों का लगा जमघट देर शाम तक लगा रहेगा।
कुछ यही नजारा सआदतगंज, हैदरगंज, चारबाग व आलमबाग सहित अन्य जगह भी देखने को मिलेगा। गली-मुहल्लों में अपने-अपने घरों की छतों पर चढ़कर लोग पतंगबाजी करेंगे। जमघट के दिन आसमान में भले ही पतंगों की जंग छिड़ेगी, लेकिन उनकी बनावट एकता और भाईचारे का संदेश देगी।
पतंग लखनऊ की, मांझा बरेली का
राजेंद्रनगर काइट क्लब के उमेश शर्मा ने बताया कि वैसे तो अपने शहर में भी पतंग के मांझे बनते हैं, लेकिन बरेली के मांझे की बात ही अलग है। जबकि, पतंग यहां की पसंद की जाती है। शहर में कारीगर के नाम पर पतंगों की मांग होती है। हमेशा की तरह इसबार भी लखनऊ की पतंग और बरेली का मांझे की मांग सबसे ज्यादा है। हर शौकीन पतंगबाजों को बरेली का मांझा ही पंसद आता है। पुराने शहर के वजीरबाग के दरीवाला, सआदतगंज के बीबी गंज, मोनीपुरसा व हुसैनगंज सहित कई इलाकों में चल रहे छोटे-बड़े कारखानों में दिनरात पतंग बनाने का काम चल रहा है। इसके अलावा सैकड़ों घरों में भी महिलाएं व पुरुष पतंग बनाने का काम कर रहे हैं। जहां में 70 से 200 बड़ी पतंग बनाई जा रही है, जो एक 20 से 50 रुपए में बिकती है।
बढ़ गए पतंगों के दाम
पतंगबाजी का शौक लगातार महंगा होता जा रहा है। इसबार बाजार में बिक रही पतंगों के दाम पिछली बार से ज्यादा है। जिसका कारण है बांस के काप का महंगा होना। कारीगर शंकर बताते हैं कि तुलसीपुर से यह काप आते हैं। पहले जो काप 1500 रुपये में थी, वह अब 1800 की हो गई है। तीन सौ रुपये कीमत बढऩे की वजह से पतंग के दामों में भी दो रुपये से पांच रुपए तक की बढ़ोत्तरी हुई है।
ताकि न कटे जीवन की डोर
जमघट के दिन आसमान सतरंगी होगा। लेकिन इस बात का ध्यान रखे कि पतंग उड़ाने में चाइनीज मांझे व लोहे के तारों का प्रयोग न करें। चाइनीज मांझा बहुत ही हानिकारक होता है। चाइनीज मांझे का विरोध करें। शहर में कई हादसे चाइनीज मांझे व लोके के तारों से हो चुके हैं। पर्व को खुशहाली के साथ सुरक्षित तरीके से मनाएं।
पतंगों के दाम
आड़ी- पांच रुपये
मंझोली -सात से दस रुपये
सवा की तीन- आठ से दस रुपये
पौना- 10-15 रुपये
खास है ये पर्व
पतंगबाजी और लखनऊ का काफी पुराना रिश्ता रहा है। पतंगबाजी को नवाबों का शौक कहा जाता है। कहा जाता है कि नवाबों के दौर में पतंगें दुल्हन की तरह सजायी जाती थीं, जिनमें अक्सर सोने और चांदी के तारों की झलझली बंधी होती थी। ये पतंगे जिसकी छत पर कट कर गिरती थीं। उसके घर उस दिन पुलाव बनता था।
ये हैं पुराने अड्डे
वजीरबाग, डालीगंज, चौक ये कुछ ऐसे अड्डे हैं जहां आपको हर तरह के पतंग जैसे तावा, ढाया, तीन, चार पौनताई बनचों और पैसुल्ची मिल जाएंगे। लखनऊ में पतंग के टूर्नामेंट भी होते रहे हैं जिसमें बढ़-चढ़कर लोग हिस्सा लेते रहे हैं।