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जब किंग जॉर्ज ने रणभूमि में दिया था पहले भारतीय को विक्टोरिया क्रॉस

आज प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त हुए पूरे हो जाएंगे 100 साल। नायक दरबान सिंह नेगी ने किया था ब्रिटिश-भारतीय सेना का नेतृत्व।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 03:31 PM (IST)Updated: Tue, 13 Nov 2018 10:22 AM (IST)
जब किंग जॉर्ज ने रणभूमि में दिया था पहले भारतीय को विक्टोरिया क्रॉस

लखनऊ[निशांत यादव]। रविवार को प्रथम विश्व युद्ध के विराम को 100 साल पूरे हो जाएंगे। यह ऐसा युद्ध था जिसमें दुनियाभर की फौजें शामिल थीं, लेकिन भारतीय सैनिकों के साहस और वीरता ने पूरी दुनिया में एक अलग छाप छोड़ी। जब फ्रांस में ब्रिटिश सैन्य टुकडिय़ों के बीच दीवार बनी जर्मनी की सेना को कोई हिला नहीं पा रहा था, तब गढ़वाल के नायक दरवान सिंह नेगी के नेतृत्व वाली ब्रिटिश-भारतीय सेना ने रातोंरात इस दीवार को ढहा दिया।

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इस अप्रतिम विजय के लिए ब्रिटेन के किंग जॉर्ज ने स्वयं रणभूमि में जाकर उन्हें विक्टोरिया क्रॉस दिया था। वह पहले भारतीय थे जिसे यह सम्मान मिला। आज उनकी तीसरी पीढ़ी भारतीय सेना में शामिल है। उनके बेटे बीएस नेगी अब कर्नल पद से रिटायर होकर लखनऊ के इंदिरानगर में रहते हैं। दरवान सिंह नेगी का पौत्र भी भारतीय सेना का हिस्सा है।

अपूर्व साहस का वह दौर

अगस्त 1914 में भारत से 1/39 गढ़वाल और 2/49 गढ़वाल राइफल्स की दो बटालियन को प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने भेजा गया। अक्टूबर 1914 में दोनो बटालियन फ्रांस पहुंची। वहां भीषण ठंड में दोनों बटालियन को जर्मनी के कब्जे वाले फ्रांस के हिस्से को खाली कराने का लक्ष्य दिया गया। यह वह इलाका था जिस पर जर्मनी के कब्जे के कारण ग्रेट ब्रिटेन के नेतृत्व वाली दो टुकडिय़ां आपस में नहीं मिल पा रही थीं। नायक दरवान सिंह नेगी के नेतृत्व में 1/39 गढ़वाल राइफल्स ने 23 और 24 नवंबर 1914 की मध्यरात्रि हमला कर जर्मनी से सुबह होने तक पूरा इलाका मुक्त करा लिया।

 

इस युद्ध में दरवान सिंह नेगी बुरी तरह घायल हुए लेकिन वह लगातार आगे बढ़ते रहे। उनकी बहादुरी ने इस युद्ध में विरोधियों पर नियंत्रण करने में आ रही बाधा को दूर कर दिया। उनकी वीरता के कारण ही किंग जॉर्ज पंचम ने सात दिसंबर 1914 को जारी हुए गजट से दो दिन पहले पांच दिसंबर 1914 को ही लड़ाई के मैदान में आकर एक विशेष समारोह में नायक दरवान सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस प्रदान किया। 

गढ़वाल रायफल्स का बढ़ाया मान

नायक दरवान सिंह नेगी की वीरता ने उनकी गढ़वाल रायफल्स का मान बढ़ाया। गढ़वाल राइफल्स को बैटल आफ फेस्टूवर्ट इन फ्रांस का खिताब दिया गया। उत्तराखंड के लैंसडाउन में स्थापित मुख्यालय में एक संग्रहालय बनाया गया है।

1915 में बने ऑफिसर

नायक दरवान सिंह 1915 में ऑफिसर बनाए गए। उनको जमादार पद मिला। उनके कमीशंड होने का प्रमाण पत्र भी जारी किया गया। उन्होंने 1924 में समय से पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। सन 1946 में आखिरी कमांडर इन चीफ जॉर्ज आचिन लेक वायसराय के वापस ब्रिटेन जाने का समय आया तो वह दरबान सिंह नेगी से मिलने लैंसडाउन गए।

 

लगातार लेते रहे मोर्चा

फ्रांस से आने के बाद दरवान सिंह नेगी और दोनो बटालियन को नवंबर 1915 में इजिप्ट भेजा गया। वहां एक साल तक लड़ाई लडऩे के बाद दोनों बटालियन 1916 में भारत वापस आयीं। इनको एक साल के भीतर अफ्रीका के मेसोपोटामिया में चल रही लड़ाई में भेजा गया। वहां से 1918 में दोनो बटालियन वापस आईं। सन 1918 में उनको वर्मा भेजा गया जहां से 1921 में वह वापस आए। 

फ्रांस में इतनी हुई क्षति

प्रथम विश्व युद्ध में गढ़वाल रायफल्स की दोनो बटालियन के 480 जवान मारे गए जबकि 1100 से अधिक घायल हुए। इस लड़ाई में दोनो बटालियन को 40 मेडल मिले, जिसमें 32 गढ़वाली सैनिकों को दिए गए जबकि संबद्ध दल के आठ ब्रिटिश अफसरों को मेडल मिले। नायक दरवान सिंह के बाद 2/49 गढ़वाल के रायफलमैन गबर सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस दिया गया।

ऐसे बनता था विक्टोरिया क्रॉस

क्रीमिया वार के दौरान ब्रिटेन की सेना ने रूस की कई बंदूकें अपने कब्जे में ले ली थीं। उन बंदूकों को पिघलाकर ही वीरता पदक विक्टोरिया क्रॉस बनाया जाता था। 

 

तीसरी पीढ़ी भी सेना में 

दरवान सिंह नेगी की मृत्यु 24 जून 1950 को सत्तर वर्ष की आयु में हुई। उनके तीन बेटे थे। बड़े बेटे पृथ्वी सिंह नेगी उत्तराखंड में एडीएम पद से सेवानिवृत्त हुए और उनका देहांत हो गया। दूसरे बेटे डॉ. दलबीर सिंह नेगी अमेरिका के स्टेनफर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट में हैं। जबकि छोटे बेटे कर्नल बीएस नेगी हैं। कर्नल नेगी को उसी गढ़वाल रायफल्स में 1964 में कमीशन मिला जिसमें दरवान सिंह नेगी थे। दरवान सिंह नेगी के पौत्र कर्नल नितिन नेगी को भी 1994 में गढ़वाल रेजीमेंट में कमीशंड किया गया। 

अपने लिए कुछ नहीं मांगा

विक्टोरिया क्रॉस मिलने पर जब अंग्रेज अफसरों ने उनसे कहा कि मांगो जो भी चाहते हो, हम देंगे। इस पर दरवान सिंह नेगी ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा। उन्होंने कहा कि वह गढ़वाल मंडल के कर्ण प्रयाग से आते हैं, जहां कोई स्कूल नहीं है। उन्होंने एक इंग्लिश मीडियम स्कूल की स्थापना करने और ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने की इच्छा जताई। गढ़वाल रायफल्स की दोनों बटालियन की 87 प्रतिशत आबादी इन इलाकों से आती थी। अंग्रेजों ने सन 1918 में कर्ण प्रयाग मिडिल स्कूल की स्थापना की। उत्तराखंड सरकार ने अब इसको इंटर तक कर दिया। इसका नाम वीरचक्र दरवान सिंह राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज रखा गया। सन 1918 से 1924 तक रेलवे लाइन बिछाने का सर्वे हुआ। हालांकि तब जमीन की कमी के कारण यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका।


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