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जन्मभूमि तो नहीं-उनकी कर्मभूमि बन गई थी राजधानी, यहीं से उन्होंने लड़ा था अपना पहला चुनाव

चुनावी सभा में भाजपा को हवा देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी और लखनऊ के बीच खासा नाता हो गया था। भाजपा से गुरेज रखने वाले मुसलमानों को नहीं चूभते थे अटल जी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 17 Aug 2018 11:56 AM (IST)Updated: Fri, 17 Aug 2018 05:23 PM (IST)
जन्मभूमि तो नहीं-उनकी कर्मभूमि बन गई थी राजधानी, यहीं से उन्होंने लड़ा था अपना पहला चुनाव
जन्मभूमि तो नहीं-उनकी कर्मभूमि बन गई थी राजधानी, यहीं से उन्होंने लड़ा था अपना पहला चुनाव

लखनऊ[अजय श्रीवास्तव]। 'चिट्ठी न कोई संदेश, जाने कौन सा देश, जहां तुम चले गए। यह पक्तियां आज फिर याद आ गई। इन पंक्तियों के पीछे छिपी है अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर। ऐसी तस्वीर थी, जिसे लखनऊ से लगाव था और लखनऊवालों को भी उनसे अतीत प्रेम था। प्रधानमंत्री बनने से पहले भी अटल से लखनऊवासियों को अटूट प्रेम था और वह सर्वसुलभ नेता थे। अमृत लाल नागर द्वारा संचालित चक्कलस कार्यक्रम हो या फिर राम नवमी का जुलूस। अटल जी उसमें नजर आते थे।

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लखनऊ जन्मभूमि तो अटल की नहीं थी, लेकिन कर्मभूमि जरूर हो गई थी। मलिन बस्तियों तक विकास की गंगा बहाने वाले अटल ने पुराने शहर को भी नहीं भूला था। पुराने लखनऊ से उनका खासा नाता था। भाजपा से गुरेज रखने वाले मुसलमानों को अटल नहीं चूभते थे। यह अटल का ही जादू था कि लोकसभा चुनाव की वैतारिणी पार करने के लिए वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में लालजी टंडन को उनकी 'खड़ाऊ' संदेश का सहारा लेना पड़ा था। यह संदेश भी भाजपा के लिए जादूई करिश्मा साबित हुआ था। चुनावी सभा में भाजपा को हवा देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी और लखनऊ के बीच खासा नाता हो गया था। मुस्लिम परिवारों तक उनकी छाप थी। यही कारण था कि एजाज रिजवी उनसे इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने भाजपा का झंडा उठा लिया था। अटल जी का उनके घर आना जाना था और पिता के साथ ही एजाज की बेटी डॉ. शीमा रिजवी का भी भाजपा से लगाव हो गया था यह तब की बात है, जब मुसलमान भाजपा से जुड़ने में परहेज करता था। जनसंघ के समय से लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के नवाबी शहर में कई ठिकाने भी बन गए थे। 40 कैंट रोड पर विश्व हिन्दू परिषद के नेता पुरूषोत्तम दास भार्गव के घर उनका खास आना जाना था। वहां वह कार्यकर्ताओं से भी मिलते थे। अपना पहला चुनाव भी उन्होंने भार्गव के घर से लड़ा था। दीनदयाल उपाध्याय के साथ जब अटल बिहारी वाजपेयी ने अखबार निकाला तो कागज के व्यवसायी पुरूषोत्तम दास भार्गव ही उन्हें कागज उपलब्ध कराते थे। पुराना किला में 92/98-1 स्मृति भवन में भी अटल जी प्रवास करते थे और निकाय चुनाव की मतदाता सूची में आज भी उनका नाम इसी पते पर दर्ज है।

25 अप्रैल 2007 से नाता टूट गया था:

अटल जी ने 25 अप्रैल 2007 को कपूरथला चौराहे पर भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन में एक चुनावी संबोधित किया था और उसके बाद उनका लखनऊ से नाता टूट गया था। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में वह वोट डालने भी लखनऊ नहीं आ पाए थे। नवल किशोर रोड पर विष्णु नारायण इंटर कॉलेज उनका मतदान केंद्र था। स्वास्थ्य ठीक न होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी ने वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था।

अपने चुनाव की नहीं रहती थी फिक्र :

लोकसभा चुनाव में देश में कमल खिलाने में अटल बिहारी वाजपेयी इतना बिजी हो जाते थे कि उन्हें अपनी लोकसभा याद ही नहीं रहती थी। उनका चुनाव तो असल में कार्यकर्ता ही लड़ते थे। चुनाव में दो दिन ही वह लखनऊ को देते थे।

अटल ने कहा था 'हमें झाड़ू ही दे दो' :

अटल ने चुनावी सभा में कहा था ' राजपाट तो कांग्रेस को दे दिया है हमें झाड़ू ही दे दो।' वर्ष 1960 में कारपोरेशन (नगर महापालिका के सभासद) चुनाव में अटल ने छोटी-छोटी सभाएं कर इन भाषणों से जनता का दिल जीतने का काम किया था।


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