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'कोख में कत्ल' के कारोबार पर कर रहीं कानूनी वार, कन्या भ्रूण हत्या रोकने का उठाए बीड़ा Lucknow News

प्रैक्टिस के दौरान समझा खेल बेटियों को बचाने को उठाई अवाज।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Tue, 01 Oct 2019 06:39 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 07:21 AM (IST)
'कोख में कत्ल' के कारोबार पर कर रहीं कानूनी वार, कन्या भ्रूण हत्या रोकने का उठाए बीड़ा Lucknow News
'कोख में कत्ल' के कारोबार पर कर रहीं कानूनी वार, कन्या भ्रूण हत्या रोकने का उठाए बीड़ा Lucknow News

लखनऊ [संदीप पांडेय]। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीलम सिंह ने प्रैक्टिस शुरू की तो नारियों की अजीब-ओ-गरीब सोच 'बेटे की चाह' ने झकझोरा। बदलाव का प्रण लेकर उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज बुलंद की। खुद तो कोशिश की ही, 'कोख में कत्ल' का कारोबार रोकने के लिए शासन-प्रशासन से पीसीपीएनडीटी कानून को सख्ती से लागू करने की पैरवी की। अब बेटी बचाओ के साथ बेटी पढ़ाओ की भी अलख जगा रही हैं।

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वर्ष 1958 में जन्मीं अलीगढ़ निवासी डॉ. नीलम सिंह वर्ष 1975 में लखनऊ आईं। केजीएमयू में एमबीबीएस दाखिला लेने के बाद गाइनी एंड ऑब्स में एमडी की। 1985 में इंदिरानगर में बाल रोग चिकित्सक पति डॉ. एसएन सिंह के साथ प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू की। डॉ. नीलम कहती हैं, तमाम शिक्षित महिलाएं भी भ्रूण लिंग की पहचान के लिए जोर देती थीं। ऐसे में उन्होंने खुद के पास अल्ट्रासाउंड की सुविधा न होने का हवाला देकर लौटाना शुरू कर दिया। महिलाएं फिर भी नहीं मानतीं और दूसरे जांच केंद्रों के विकल्प का सुझाव देने के लिए कहतीं। बावजूद नीलम अपने मिशन पर अडिग रहीं। 10 वर्ष तक महिलाओं को क्लीनिक में बेटा-बेटी समान होने की सीख देती रहीं। उन्हें भ्रूण लिंग जांच व हत्या से सामाजिक असंतुलन के खतरे के बारे में भी आगाह करतीं।

पति की प्रेरणा से शुरू की मुहिम

आखिर में इस कुरीति के खिलाफ डॉ. नीलम को पति ने वृहद स्तर पर आवाज बुलंद करने की प्रेरणा दी। इस बीच पति की असमय मृत्यु भी हो गई, मगर उनकी प्रेरणा को जीवंत करने व बेटियों को जीने का अधिकार देने के लिए 1995 में वात्सल्य संस्था का गठन किया। लोगों के बीच जाकर कन्या भ्रूण हत्या के बारे में जागरूक करना शुरू किया। इसके अलावा वर्ष 2011 से गांवों में स्वच्छता टोली (वाश ब्रिगेड) को बनाना शुरू किया। यह टोली लोगों को स्वच्छता के जरिए बीमारी के प्रति सजग कर रही है। इसमें स्कूली बच्चों से लेकर गांव के सजग नागरिक भी शामिल हैं।

अल्ट्रासाउंड सेंटरों पर कसा शिकंजा

डॉ. नीलम सिंह के संघर्षो से यूपी में पीसीपीएनडीटी एक्ट प्रभावी तरीके से लागू न होने का मामला कोर्ट में गया। कोर्ट की सख्ती के बाद अल्ट्रासाउंड सेंटर का पंजीकरण शुरू हुआ। ऐसे में वर्ष 2000 में पहली अल्ट्रासाउंड मशीन एसजीपीजीआइ की पंजीकृत की गई। अब हर मशीन का पंजीकरण अनिवार्य है। इसके लिए 500 से अधिक प्रशिक्षण और वर्कशॉप कराने वाली डॉ. नीलम अब इस कानून की राष्ट्रीय निगरानी एवं अनुश्रवण समिति की सदस्य हैं। वह अवैध कार्य में लिप्त करीब 100 अल्ट्रासाउंड सेंटर के खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति कर चुकी हैं।


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