मख्दूम साहब दरगाह में 600 साल पुरानी गाय की मजार, जानें इसके पीछे की कहानी
अयोध्या कौमी एकता की मिसाल है यह मजार। श्रीराम में श्रद्धा रखने वाले मख्दूम साहब ने सरयू किनारे एक पैर पर खड़े होकर 40 दिन तक किया था तप।
अयोध्या [प्रहलाद तिवारी]। मंदिर-मस्जिद विवाद से दुनियाभर में चर्चित हुई अयोध्या के रुदौली में गाय की मजार कौमी एकता की मिसाल है। मख्दूम साहब दरगाह की जीनत यह मजार लोगों को गोसेवा की सीख दे रही है। सद्भाव की यह अलख छह सौ साल पहले सूफी संत मख्दूम साहब ने यहां जगाई थी।
राम-रहीम दोनों में बराबर श्रद्धा रखने वाले इस सूफी पीर को सरयू से अगाध लगाव था। इसीलिए अपनी तपस्या के लिए उन्होंने सरयू को ही चुना और रामनगरी आकर मोक्षदायिनी नदी में एक पैर पर खड़े होकर 40 दिन तक तप किया। आज भी सरयू के इस घाट को मख्दूम घाट के नाम से जाना जाता है। हर वर्ग के श्रद्धालु यहां जुटते हैं।
तो ऐसे बनी मजार ...
दरगाह के सज्जादानशीन नैयर मियां बताते हैं कि मख्दूम साहब को गोवंश से बेहद प्रेम था। उन्होंने कई गाएं पाल रखी थीं। इनमें से एक उन्हें बेहद प्रिय थी। एक दिन उसकी मृत्यु हो गई तो मख्दूम साहब बहुत दुखी हो गए। उन्होंने मौत के बाद भी उस गाय को खुद से दूर न जाने दिया और परिसर में ही उसकी मजार बनवा दी। उसकी कब्र की पहचान हो सके, इसके लिए लाल पत्थर भी लगवाया। यह कब्र आज भी मौजूद है और मख्दूम साहब के गोसेवा के संदेश को फैला रही है।
मख्दूम साहब की मजार के भी सबसे करीब..
यूं तो मख्दूम साहब की दरगाह में कुल 69 मजारें हैं, लेकिन गाय की मजार मख्दूम साहब की मजार के ठीक सामने है। इससे इसकी अहमियत समझी जा सकती है। जायरीन यहां भी जियारत करते हैं। दरगाह से जुड़े शाह हयात मसूद गजाली कहते हैं कि मख्दूम साहब ने जीवन भर इंसानियत और प्रेम का संदेश दिया। इसीलिए दरगाह में हर वर्ग संप्रदाय के लोग आते हैं। खानकाह के अंदर धूमधाम से वसंत मनाने की परंपरा भी है।