देश के उत्कृष्ट संस्थानों की दौड़ से बाहर हुआ केजीएमयू
रैकिंग गिरने से इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस का दर्जा मिलने पर फिरा पानी। एसजीपीजीआइ करेगा दावेदारी एक हजार करोड़ मिलता है बजट।
लखनऊ, जेएनएन। नेशनल रैकिंग गिरने से केजीएमयू की उम्मीदों को बड़ा झटका लगा। वह अब इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस (उत्कृष्ट संस्थान) की दौड़ से बाहर हो गया है। वहीं शहर का एसजीपीआइ मजबूत दावेदारी पेश करने का खाका तैयार करने में जुट गया है।
दरअसल, राष्ट्रपति ने देश के प्रतिष्ठित संस्थानों की सोमवार को रैंकिंग जारी की। इसमें नेशनल इंस्टीट्यूट रैकिंग फ्रेम वर्क (एनआइआरएफ) में चिकित्सा संस्थानों में एसजीपीजीआइ ने चौथा स्थान पर कब्जा जमाया। वहीं रैकिंग में दो वर्ष से पांचवें नंबर पर काबिज केजीएमयू को बड़ा झटका लगा। स्थिति यह रही देश-विदेश में प्रतिष्ठित संस्थान रैकिंग में दसवें नंबर पर पहुंच गया है। वर्षभर में रैंकिंग में भारी गिरावट से मानव संसाधन मंत्रालय के उत्कृष्ट संस्थानों की दौड़ से केजीएमयू बाहर हो गया है। वहीं एसजीपीजीआइ ने इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस में मजबूत दावेदारी के लिए तैयारी शुरू कर दी है।
केंद्र सरकार देती एक हजार करोड़
एसजीपीजीआइ के सीएमएस डॉ. अमित अग्रवाल के मुताबिक इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस से संस्थान को राष्ट्रीय महत्व का दर्जा मिल जाता है। इसमें आवेदन के लिए एनआइआरएफ रैकिंग काफी अहम है। इसके तहत पहले दस सरकारी व दस निजी उत्कृष्ट संस्थानों को चयन होना था। इस बार पांच सरकारी व पांच निजी संस्थानों का चयन होना है। इसके तहत चयनित उत्कृष्ट संस्थान को केंद्र सरकारी की तरफ से एक हजार करोड़ की मदद मिलेगी।
एमसीआइ की छूट, चला सकते नया कोर्स
पीजीआइ के सीएमएस डॉ. अमित अग्रवाल के मुताबिक इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस का दर्जा मिलने से चिकित्सा संस्थान पर एमसीआइ में अप्रूवल की बाध्यता खत्म हो जाती है। संस्थान खुद नए कोर्स के संचालन का फैसला ले सकता है। इसके अलावा विदेशी फैकल्टी व विदेशी छात्रों के लिए भी संस्थान के दरवाजे खुल जाते हैं। उन्होंने कहा कि पीजीआइ ने आवेदन के लिए तैयारी शुरू कर दी है।
केजीएमयू ने गत वर्ष किया था आवेदन
केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. संदीप तिवारी ने कहा कि संस्थान गत दो वर्ष से नेशनल रैकिंग में पांचवें नंबर पर था। इस दौरान इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस के लिए गत वर्ष संस्थान ने आवेदन किया गया था। मजबूती दावेदारी थी। मगर इस बार रैकिंग डाउन हो गई।
यह गलतियां पड़ी भारी
- एक वर्ष में कई सुपर स्पेशयलिटी विभागों को विलय कर खत्म किया
- नेफ्रोलॉजिस्ट, किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट व हार्ट सर्जन समेत10 डॉक्टरों ने नौकरी छोड़ी
- वर्ष 2015 में मंजूर डॉक्टरों के पद रहे डंप, निष्क्रिय हुए डिपार्टमेंट
- मेडिकल आंकोलॉजी व न्यूक्लियर मेडिसिन समेत कई विभाग नहीं हो सके शुरू
- बजट मिलने के बाद भी कई विभागों में सिर्फ ओपीडी सेवा, भर्ती रहीं बंद
- डीएम, एमसीएच नए विभागों में नहीं हो सके शुरू
- मरीज बढ़े, इलाज की गुणवत्ता घटी, आए दिन लापरवाही से मौतें
- महिला तीमारदार के साथ दुष्कर्म की घटना से साख पर लगा धक्का
- नौ सौ करोड़ का बजट, जांच व दवा के लिए भटकते मरीज ।