Kakori Kand: 4600 रुपये की लूट के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने खर्च किए थे 10 लाख
नौ अगस्त 1925 को हुआ था काकोरी लूट कांड क्रांतिकारियों ने इस घटना को अंजाम देकर पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध एक नई क्रांति के बिगुल का सूत्रपात किया था।
लखनऊ[जितेंद्र उपाध्याय]। स्वतंत्रता आंदोलन में राजधानी के काकाेरी कांड की घटना स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। क्रांतिकारियों ने इस घटना को अंजाम देकर पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध एक नई क्रांति के बिगुल का सूत्रपात किया था। काकोरी कांड ने अंग्रेजी हुकूमत को किस कद्र हिला दिया था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि घटना को अंजाम देने वाले क्रांतिकारियों को पकडऩे के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। महज 4600 रुपये लूटने वाले इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने के लिए करीब 10 लाख रुपये खर्च किए थे।
नौ अगस्त 1925 को काकोरी में अंग्रेजों के लूटे गए खजाने से स्वतंत्रता आंदोलन को गति मिली थी। देश को आजादी दिलाने के लिए ब्रिटिश राज के खिलाफ छिड़ी जंग में क्रांतिकारियों को हथियार खरीदने थे, जिसके लिए अंग्रेजी सरकार के खजाने को लूटने की योजना बनाई गई थी। इस घटना से बौखलाई अंग्रेजी सरकार ने अपनी पूरी ताकत लगा दी और क्रांतिकारियों पर सरकार के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेडऩे, सरकारी खजाना लूटने और हत्या करने का केस चलाया। करीब दस महीने मुकदमा चला। फिर क्रांतिकारियों को सजा सुनाई गई थी।
पांच हजार रुपये इनाम की घोषणा
काकोरी शहीद स्मारक आयोजन समिति के महामंत्री उदय खत्री ने बताया कि क्रांतिकारियों को पकड़वाने के लिए पांच हजार रुपये के इनाम की घोषणा की गई थी। लेकिन, कांड से उत्साहित जनता की क्रांतिकारियों के प्रति सहानुभूति और गहरी हो गई थी। खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अंग्रेज अधिकारी आरए हार्टन को इस घटना की विवचेना का इंचार्ज बनाया गया। आठ डाउन ट्रेन के यात्रियों के बयान और घटना के स्वरूप को देख हार्टन को शुरू से ही यह समझ में आ गया था कि, इस घटना को क्रांतिकारियों ने ही अंजाम दिया है। क्योंकि, इसमें केवल सरकारी खजाना ही लूटा गया था, यात्रियों को कोई नुकसान तक नहीं पहुंचा था।
राजधानी लाए गए थे सभी क्रांतिकारी
26 सितंबर को पूरे प्रांत में गिरफ्तारियों और तलाशियों का दौर चल पड़ा। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, प्रेम किशन खन्ना, हरगोविंद व तीन अन्य लोग शाहजहांपुर से गिरफ्तार किए गए। जबकि, सुरेश चंद्र भट्टाचार्य, दामोदर स्वरूप सेठ, मन्मथ नाथ गुप्त, राम नाथ पांडे व दो अन्य लोग बनारस से और गोविंद चरण कर व शचींद्र नाथ विश्वास लखनऊ से गिरफ्तार किए गए। इसी तरह कानपुर से राम दुलारे त्रिवेदी के साथ ही प्रदेश के विभिन्न नगरों से दस अन्य लोगों को गिरफ्तार किया गया। सभी को लखनऊ जिला जेल लगाया गया। इन गिरफ्तारियों की भनक लगते ही अशफाक उल्ला खां शाहजहांपुर से और शचींद्रनाथ बख्शी बनारस से फरार हो गए। जबकि, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी बम बनाने का प्रशिक्षण लेने पहले ही कलकत्ता चले गए थे। पर जल्द ही वह आठ अन्य क्रांतिकारियों के साथ पड़के गए। 18 अक्टूबर को स्वामी गोविंद प्रकाश उर्फ श्री राम कृष्ण खत्री को पूना से गिरफ्तार कर लखनऊ लाया गया।
दो चरणों में चला मुकदमा
दिसंबर 1925 से अगस्त 1927 तक लखनऊ के रोशनद्दौला कचहरी फिर बाद में रिंंक थियेटर में यह मुकदमा दो चरणों में चला। काकोरी षडयंत्र केस और पूरक केस। इस मुकदमे में एक खासबात यह थी कि इसमें वह एक्शन भी शामिल कर लिए गए, जिनका काकोरी कांड से कोई संबंध नहीं था। जैसे 25 दिसंबर 1924 को पीलीभीत जिले के बमरौला गांव में, फिर नौ मार्च 1925 को बिचुरी गांव में और 24 मई 1925 को प्रतापगढ़ जिले के द्वारकापुर गांव में किए गए एक्शन। गिरफ्तार किए गए कई क्रांतिकारी ऐसे थे, जो काकोरी कांड की घटना में शामिल तक नहीं थे।