काशी से हुई थी अटलजी के पत्रकारिता जीवन की शुरुआत
पत्रकार बनाए नहीं जाते, वो लड़ाई के जज्बे का गुण लेकर पैदा होते हैं। ऐसी ही धार अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व को बनारस ने दी थी।
वाराणसी (जेएनएन)। पत्रकार बनाए नहीं जाते, वो लड़ाई के जज्बे का गुण लेकर पैदा होते हैं, हां उनके इस गुण में धार जरूर दी जा सकती है। ऐसी ही धार अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तित्व को बनारस ने दी थी। बनारस ने ही उनके अंदर के पत्रकार को पहचाना था और उसे मंच प्रदान किया था। उनके पत्रकारिता जीवन की शुरुआत वाराणसी के 'समाचार' नामक अखबार से हुई थी। यह अखबार 1942 में भईया जी बनारसी ने शुरू किया था। उस समय इस अखबार का कार्यालय चेतगंज स्थित हबीबपुरा मोहल्ले में था। अटल जी ने 1977 में एक चुनावी रैली में इस बात की जानकरी दी थी। इस अखबार के लिए नानाजी देशमुख और बाला साहब देवरस भी लिखा करते थे।
बिस्मिल्ला खां से लगाव
अटल जी की ही सरकार ने उस्ताद बिस्मिल्ला खां को भारत रत्न से सम्मानित किया था। इतना ही नहीं, शहनाई सम्राट के आग्रह पर वाजपेयी जी ने उनको इलाज के लिए आर्थिक मदद भी मुहैया कराई थी।
खचाखच भर गया था विद्यापीठ मैदान
उनका बनारस कई बार आना हुआ। 1996 में तेरह दिन की सरकार गिर जाने के बाद 1998 में उन्होंने चुनावी अभियान काशी से ही शुरू किया। वर्ष 1998 में काशी विद्यापीठ के मैदान में उनकी ऐतिहासिक रैली हुई। उस दौरान विद्यापीठ के खेल मैदान खचाखच भर गया था। अटल जी का भाषण सुनने के लिए आचार्य नरेंद्रदेव, लालबहादुर शास्त्री छात्रावासों के छतों पर चढ़ गए थे। पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह बताते हैं कि अटल बिहारी का भाषण सुनने के लिए तमाम लोग मैदान के चारों ओर की सड़कों पर भी घंटों खड़े रहे। खास बात यह कि भीड़तंत्र में भाजपा के ही नहीं अन्य दलों के भी नेता व कार्यकर्ता भाषण सुनने आए थे।
ठंडई, खिचड़ी और मूंग की दाल के मुरीद थे
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वादिष्ट व्यंजन के भी बेहद शौकीन थे। उन्हें हर शहर में खाने के उम्दा ठिकाने मालूम थे। बनारसी कचौड़ी-जलेबी हो या फिर ठंडई अथवा मूंग की दाल या खिचड़ी, ये सब उन्हें बहुत भाते थे। उनके साथ वर्षों काम करने वाले सुभाष गुप्ता बताते हैं कि उनकी सादगी हर कार्यकर्ता को संजीवनी देती थी। जब आते सामान्य कार्यकर्ता के यहां ही भोजन करते। शिक्षक पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री, लोकसभा में नेता विपक्ष और फिर प्रधानमंत्री बने। समय के साथ व्यस्तता बढ़ती गई लेकिन, जुबां से व्यंजनों का स्वाद नहीं उतरा। काशी में उनकी अंतिम सभा 2005 में कचहरी पर हुई है। इससे पूर्व कई बार उनका काशी आगमन हुआ। वे जब बनारस आए ठंडई का स्वाद लेना नहीं भूले। सादा भोजन को तवज्जो देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी मूंग की दाल व खिचड़ी बड़े चाव से खाते थे। अटल जी के पुराने साथी भाजपा एमएलसी अशोक धवन बताते हैं कि काशी प्रवास के दौरान उनका मेरे आवास पर कुल पांच बार ठहरना हुआ। घर का ही भोजन करते और रसोईघर में भी सहजता से पहुंच जाते। उन्हें बनारसी ठंडई बहुत पसंद थी इसलिए उनके सेवा-सत्कार में ठंडई को जरूर स्थान दिया जाता। जाते-जाते बच्चों से मिलना कभी नहीं भूलते।
रोकती रह गई एसपीजी, खा गए मिठाई
बात 1998 की है जब तत्कालीन पीएम अटल जी वाराणसी आए। दोपहर का भोजन हर्षपाल कपूर के आवास पर रखा गया था। हर्षपाल कपूर के बेटे वैभव बताते हैं कि अटल जी, वर्तमान में केंद्रीय रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा, अशोक धवन समेत कुछ चुनिंदा लोगों के लिए अलग से भोजन की व्यवस्था की गई थी। अटल जी के भोजन का परीक्षण कराने के बाद एसपीजी ने उसे अपने कब्जे में ले लिया था। इस बीच मनोज सिन्हा उठे और एक मिठाई खाने लगे। यह देख अटल जी खुद को रोक नहीं सके और वैभव को इशारा करते हुए मिठाई मंगाई। मिठाई लेकर जैसे ही वैभव कमरे की ओर बढ़े, एसपीजी ने रोक दिया। अटल जी ने मंगाया है कहने पर भी एसपीजी ने मिठाई अंदर नहीं ले जाने दिया। थोड़ी देर बाद अचानक अटल जी को फिर मिठाई की याद आई तो उन्होंने पूछ लिया 'क्या मिठाई सिर्फ मनोज जी के लिए है' इतना सुनते ही सबलोग हड़बड़ा गए। आनन-फानन मिठाई उनके सामने रख दी। उधर, एसपीजी के अधिकारी रोकते रह गए और अटल जी मिठाई का स्वाद ले लिए।
रख दिया नाम 'आपातकालीन'
भाजपा के वरिष्ठ नेता और यूपी सरकार में वित्त मंत्री रहे दिवंगत हरिश्चंद्र श्रीवास्तव के परिवार से अटल जी की कई यादें जुड़ी हैं। उन्हीं यादों में एक सबसे रोचक वाकया है आपातकाल के दौर का। इमरजेंसी के दो महीने बाद अगस्त में अटल जी का वाराणसी आगमन हुआ था। उधर, आठ अगस्त 1975 में हरिश्चंद्र श्रीवास्तव को बेटा पैदा हुआ। अटल, आडवाणी समेत अन्य वरिष्ठ नेता भोजन पर हरिश्चंद्र श्रीवास्तव के यहां पहुंचे थे। हरीश जी ने बेटे को अटल जी की गोद में रखते हुए नामकरण करने को कहा। अटल जी ने कहा आपातकाल में पैदा हुआ है 'आपातकालीन' नाम बढिय़ा रहेगा। यह सुनते ही सब लोग ठहाका मार दिए। आज उस 'आपातकालीन' को लोग विधायक कैंट सौरभ श्रीवास्तव के नाम से जानते हैं।