Jai Hind: मातृभूमि के लिए यतेन्द्र की पुकार, सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ रहे बच्चों और युवाओं को
Jai Hind महामारी के दौरान जब देश ने पुकारा तो भी जरूरतमंदों की मदद के लिए अंग्रिम पंक्ति में खड़े आए नजर।
लखनऊ, (दुर्गा शर्मा)। यतेन्द्र सिंह, उम्र 21 वर्ष। किसान पिता का युवा बेटा अांखों में उच्च शिक्षा का सपना पाले 2016 में मैनपुरी से लखनऊ आया। बचपन से ही महापुरुषों के संदेश और उनका जीवन वृत्तांत प्रभावित करता। खासकर स्वामी विवेकानंद की प्रेरक बातें। 2017 में विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी के उत्तर प्रदेश प्रांत द्वारा "मातृभूमि की पुकार" पुस्तक के आधार पर सांस्कृतिक प्रतियोगिता हुई। उसके बाद लखनऊ में चार दिवसीय शिविर का आयोजन हुआ, जिसमें यतेंन्द्र ने हिस्सा लिया। यतेन्द्र ने मातृभूमि काे समर्पित इस मुहिम से प्रेरित होकर दो फरवरी 2017 को केंद्र के जीवनव्रती कार्यकर्ता अश्विनी से मुलाकात की। इस मुलाकात के बाद यतेन्द्र विवेकानंद केंद्र से जुड़ गए।
बीते साढ़े तीन वर्षों में अपनी पढ़ाई के साथ ही बच्चों के लिए संस्कार वर्ग, युवाओं के लिए स्वाध्याय वर्ग, वरिष्ठजन के लिए योग वर्ग और तीनों वर्गों में आने वालों के लिए केंद्र वर्ग का आयोजन किया। बच्चों के चरित्र निर्माण के लिए व्यक्तित्व विकास शिविर, युवाओं के लिए कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर, नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर होने वाले सामूहिक सूर्य नमस्कार में प्रशिक्षण आदि के अगुवा रहे। स्वामी विवेकानंद द्वारा 11 सितंबर 1893 को शिकागो में दिए गए उद्बोधन की वर्षगांठ पर प्रतियोगिता को आयोजित कराना समेत तमाम गतिविधियों के जरिए बच्चों और युवाओं को अपने देश के गौरवशाली आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने का प्रयास किया।
महामारी के दौरान जब देश ने पुकारा तो भी यतेन्द्र अंग्रिम पंक्ति में खड़े नजर आए। जरूरतमंद लोगों को राशन, पका भोजन और पुलिसकर्मियों को काढ़ा वितरित किया। केंद्र के कार्यकर्ताओं के सहयोग से नकद सहायता राशि भी पहुंचाई। करीब 61 हजार जरूरतमंद लोग इससे लाभांवित हुए। यतेन्द्र बताते हैं, कोरोना काल में कई अनुभव हुए, जिसमें से एक द्वितीय चरण में लगे लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों का उत्तर प्रदेश में आना रहा। कई लोग महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, पंजाब, राजस्थान तथा अन्य प्रदेशों से पैदल या साइकिल से अपने घर जा रहे थे। इसमें से कई ऐसे थे जिनके पास कुछ भी खाने-पीने की वस्तु नहीं थी।
एक शाम भोजन वितरण करने शहीद पथ गया। चलते-चलते कुछ लोग सड़क के किनारे बैठे मिले। उनसे पूछा कि आप लोगों को भोजन मिला है क्या? तो वह कुछ नहीं बोले। दोबारा पूछने पर उन्होंने कहा कि नहीं बाबू! अभी कुछ भी नहीं मिला, अगर हो तो दे दीजिए। उन्हें भोजन के पैकेट दिए फिर थोड़ी देर बाद मैंने पूछा कि आपको भोजन की और आवश्यकता है क्या? तो उन्होंने कहा कि एक और पैकेट मिल जाता तो अच्छा होता दो-तीन दिन से कुछ भी नहीं खाया है। कई लोगों के पैरों में चप्पल भी नहीं थी, मन द्रवित हो उठा। हम रात दिन संकट की इस घड़ी में अपने बहन-भाई के सहायतार्थ वहीं डटे रहे। हमें देखकर आस-पास के अन्य लोगों ने भी सहायता देनी प्रारंभ कर दी। यतेन्द्र कहते हैं कि परिवर्तन के लिए युवाओं का आगे आना जरूरी है। मैं विशेषकर युवाओं का आह्वान करता हूं कि वो सामाजिक दायित्व काे जरूर पूरा करें।